इलाहाबाद हाईकोर्ट: धारा 148 के तहत 20% मुआवजा जमा करना अनिवार्य नहीं, न्यायालय के पास विवेकाधिकार
प्रयागराज। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हाल ही में स्पष्ट किया कि परक्राम्य लिखत अधिनियम, 1881 (NI Act) की धारा 148 के तहत मुआवजा राशि का न्यूनतम 20% जमा करने की शर्त अनिवार्य नहीं है। अपीलीय अदालत को यह सुनिश्चित करना होगा कि यह शर्त अन्यायपूर्ण न हो और अपीलकर्ता के अपील के अधिकार से उसे वंचित न करे।
अपीलीय अदालत के पास छूट देने का विवेकाधिकार
न्यायमूर्ति अरुण कुमार सिंह देशवाल की पीठ ने अपने निर्णय में सुप्रीम कोर्ट के जंबू भंडारी बनाम एमपी स्टेट इंडस्ट्रियल डेवलपमेंट कॉरपोरेशन लिमिटेड (2023) और मुस्कान एंटरप्राइजेज बनाम पंजाब राज्य (2024) मामलों का हवाला देते हुए कहा कि धारा 148(1) के तहत 20% मुआवजा जमा करने की शर्त स्वचालित रूप से लागू नहीं होती है।
“न्यायालय को धारा 148 के तहत आदेश पारित करते समय यह सुनिश्चित करना होगा कि मुआवजा जमा करने की शर्त अनुचित या अन्यायपूर्ण न हो। अपीलीय अदालत के पास इसे कम करने या छूट देने का अधिकार है।”
मामले की पृष्ठभूमि
प्रतिपक्षी संख्या 2 ने आवेदक के खिलाफ धारा 138 एनआई अधिनियम के तहत चेक बाउंस की शिकायत दर्ज कराई थी। ट्रायल कोर्ट ने आवेदक को दोषी ठहराते हुए सजा सुनाई, जिसे आवेदक ने अपीलीय अदालत में चुनौती दी।
अपीलीय अदालत ने सजा पर अंतरिम रोक प्रदान करते हुए आवेदक को 20% मुआवजा जमा करने का निर्देश दिया। इस आदेश को आवेदक ने धारा 482 सीआरपीसी के तहत हाईकोर्ट में चुनौती दी।
हाईकोर्ट का निर्देश: 10% जमा करने की छूट
हाईकोर्ट ने 20% की शर्त को अनुचित मानते हुए, मामले को अपीलीय अदालत में भेजा और मात्र 10% जुर्माना जमा करने की अनुमति दी। इसके बाद, आवेदक ने मुआवजे के 20% जमा करने की छूट के लिए आवेदन दिया, जिसे ट्रायल कोर्ट ने खारिज कर दिया और आवेदक को पिछले 5 वर्षों का ITR व आय के स्रोत दाखिल करने का निर्देश दिया।
आय विवरण दाखिल करने की अनिवार्यता पर सवाल
आवेदक ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले (मुस्कान एंटरप्राइजेज बनाम पंजाब राज्य, 2024) पर भरोसा करते हुए हाईकोर्ट में पुनः अपील दायर की। इस फैसले में आय के स्रोत की जानकारी अप्रासंगिक मानी गई थी और ट्रायल कोर्ट को यह तय करना था कि 20% की शर्त अनुचित थी या नहीं।
हाईकोर्ट ने माना कि हालांकि 10% मुआवजा जमा किया जा चुका था, लेकिन ट्रायल कोर्ट ने उचित छूट देने के लिए आय के स्रोत का विवरण मांगा, जो सुप्रीम कोर्ट के दिशा-निर्देशों के अनुरूप था।
निष्कर्ष: न्यायालय को उचित छूट देने का अधिकार
अंततः हाईकोर्ट ने ट्रायल कोर्ट के आदेश को बरकरार रखते हुए कहा कि धारा 148 के तहत अंतिम आदेश पारित करते समय न्यायालय को विचार करना होगा कि 20% की शर्त अन्यायपूर्ण तो नहीं है।
इस फैसले से यह स्पष्ट होता है कि अपीलीय अदालत के पास 20% की शर्त को कम करने या पूरी तरह से छूट देने का अधिकार है, बशर्ते कि मामला न्यायोचित हो।
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