जजों को धरती पर भगवान के रूप की संज्ञा दी जाती रही है, जो हमारे गुनाहो के बारे में फैसला लेता है और बेहुनाहो को आजाद करता है। उनके आदेश से ही कोई आरोपी बेगुनाह साबित होकर आजाद हो जाता है, तो कोई को दोषी साबित होकर जेल में दिन काटने पड़ते हैं। जघन्य अपराधों के मामले में तो आरोपी की जिंदगी-मौत का फैसला भी इन्हीं जज के हाथों होता है।
हालांकि अब कर्नाटक हाईकोर्ट के जज ने कहा कि वह भी इंसान हैं और उनसे भी गलती हो जाती है। यह कहते हुए उन्होंने 10 जुलाई 2024 को दिए गए कर्नाटक हाईकोर्ट के एक आदेश को वापस ले लिया है।
दरअसल कोर्ट ने पहले फैसला सुनाया था कि ऑनलाइन चाइल्ड पोर्नोग्राफी Child Pornography देखने वाले किसी व्यक्ति पर सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम (आईटी एक्ट) की धारा 67बी के तहत मुकदमा नहीं चलाया जा सकता है।
ज्ञात हो की जस्टिस एम नागप्रसन्ना की बेंच ने आईटी एक्ट IT Act की धारा 67 बी (बी) को लेकर एक चूक को स्वीकार करने के बाद अपना पिछला आदेश वापस ले लिया।
इससे पहले अदालत ने इनायतुल्ला एन के खिलाफ आरोपों को खारिज करते हुए तर्क दिया था कि महज अश्लील सामग्री तक पहुंच धारा 67 बी के तहत आवश्यक ‘सामग्री का प्रकाशन या प्रसारण’ नहीं है। हालांकि, राज्य सरकार द्वारा फैसला वापस लेने के लिये दायर आवेदन पर अदालत को एहसास हुआ कि उसके पहले के फैसले में धारा 67बी(बी) की उपेक्षा की गई थी।
इस धारा में कहा गया है कि बच्चों को अश्लील तरीके से चित्रित करने वाली सामग्री बनाना, एकत्र करना, खोजना, ‘ब्राउज करना’, डाउनलोड करना, विज्ञापन करना, प्रचार करना, आदान-प्रदान करना या वितरित करना धारा 67बी के दायरे में आता है। अदालत ने कहा, ‘IT Act धारा 67बी(बी) इस मामले के लिए प्रासंगिक है।’