सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि राज्य अथवा उसके किसी उपक्रम द्वारा निजी भागीदारी के साथ किए गए अनुबंधों के मामलों में न्यायिक समीक्षा का दायरा सीमित होता है, विशेष रूप से कार्य और वित्तीय दायित्वों की परिधि को लेकर।
यह फैसला मद्रास हाईकोर्ट के आदेश के खिलाफ एक निजी कंपनी द्वारा दायर सिविल अपीलों में सुनाया गया, जिसमें हाईकोर्ट ने चेन्नई, तमिलनाडु में आयोजित फॉर्मूला 4 रेसिंग के संबंध में दायर विभिन्न जनहित याचिकाओं (PILs) पर विचार करते हुए कुछ निर्देश जारी किए थे।
स्पोर्ट्स अथॉरिटी के अनुबंधों में हस्तक्षेप नहीं कर सकता न्यायालय: सुप्रीम कोर्ट
न्यायमूर्ति पी. एस. नरसिम्हा और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की दो-न्यायाधीशों की पीठ ने कहा,
“स्पोर्ट्स डेवलपमेंट अथॉरिटी एक राज्य का उपक्रम है, जो खेलों को बढ़ावा देने और खिलाड़ियों के कल्याण के लिए कार्य करता है। किसी पक्ष ने यह दावा नहीं किया है कि यह प्राधिकरण किसी को अनुचित लाभ पहुंचा रहा है, सार्वजनिक धन का दुरुपयोग हो रहा है या वित्तीय अनियमितता हुई है। ऐसे मामलों में न्यायिक समीक्षा का दायरा सीमित होता है, जो कि इस न्यायालय के कई पूर्ववर्ती निर्णयों से भी स्पष्ट है।”
पीठ ने कहा कि जब हाईकोर्ट इस निष्कर्ष पर पहुंच चुका था कि खेल आयोजन से संबंधित निर्णय एक नीतिगत मामला है, तो उसे राज्य सरकार और निजी कंपनी के बीच समझौता ज्ञापन (MoU) की विशिष्ट शर्तों में हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए था।
इस मामले में, अपीलकर्ता रेसिंग प्रमोशंस प्राइवेट लिमिटेड की ओर से एओआर गौरव सिंह ने पक्ष रखा, जबकि प्रतिवादियों की ओर से एओआर डी. कुमानन पेश हुए।
मामले के तथ्य
अपीलकर्ता रेसिंग प्रमोशंस प्राइवेट लिमिटेड कंपनी फॉर्मूला 4 चैंपियनशिप आयोजित करती है। कंपनी ने तमिलनाडु स्पोर्ट्स डेवलपमेंट अथॉरिटी (SDAT) के साथ 2023 में तीन वर्ष के लिए एक समझौता ज्ञापन (MoU) किया था।
समझौते की प्रमुख शर्तें:
- अपीलकर्ता (निजी कंपनी): ₹202 करोड़ खर्च करने के लिए बाध्य
- SDAT (राज्य एजेंसी): ₹42 करोड़ खर्च करने के लिए बाध्य (लाइसेंस शुल्क, संचालन व्यय, सड़क सौंदर्यीकरण और अन्य खर्चों के लिए)
चेन्नई में फॉर्मूला 4 रेसिंग के पांचवें चरण के आयोजन के निर्णय के बाद, तमिलनाडु सरकार ने प्रेस विज्ञप्ति जारी की, जिसके बाद हाईकोर्ट में कई जनहित याचिकाएं दायर की गईं।
जनहित याचिकाओं में उठाए गए मुद्दे
- सार्वजनिक असुविधा
- सुरक्षा उपायों की कमी
- ध्वनि प्रदूषण और पर्यावरणीय क्षति
- राज्य सरकार द्वारा सार्वजनिक धन के उपयोग में पारदर्शिता की कमी, जिससे निजी संस्था को लाभ हो रहा था।
हाईकोर्ट ने हालांकि सरकार की नीतिगत स्वतंत्रता में हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया, लेकिन यह अवलोकन किया कि आयोजन का संचालन मुख्य रूप से निजी कंपनी कर रही है और सरकार की भूमिका केवल सुविधा प्रदान करने तक सीमित है।
MoU के अनुसार राज्य सरकार को किसी प्रकार का राजस्व या लाभ नहीं मिलेगा, जबकि अपीलकर्ता को पूरा व्यावसायिक लाभ प्राप्त होगा। इस संदर्भ में, हाईकोर्ट ने कुछ निर्देश जारी किए थे, जिन्हें सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई।
सुप्रीम कोर्ट का निष्कर्ष
सुप्रीम कोर्ट ने अपने निर्णय में कहा,
“सार्वजनिक संसाधनों का न्यायोचित वितरण सुनिश्चित करने और लोक कल्याण को बढ़ावा देने के लिए राज्य को नीतिगत निर्णय लेने का अधिकार है। प्रारंभिक दौर में सरकारें अपने संसाधनों को बढ़ाने के लिए निजी संपत्तियों का राष्ट्रीयकरण भी कर चुकी हैं, लेकिन अनुभव बताता है कि सरकारी संसाधन अपर्याप्त रहे और उनका प्रबंधन प्रभावी नहीं था।”
अदालत ने यह भी माना कि यह मामला खेल आयोजन के संचालन से संबंधित है, जिसमें राज्य की एजेंसियां और निजी संस्थान एक सहयोगी प्रयास में शामिल हैं।
“अनुबंध के तहत खर्च के विभाजन जैसी आपसी बाध्यताओं की न्यायिक समीक्षा जनहित याचिका के दायरे से बाहर है।”
सुप्रीम कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि सरकार को खेल आयोजनों की पूरी जिम्मेदारी अपने ऊपर लेने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता, क्योंकि लोक-निजी भागीदारी (PPP मॉडल) एक वैश्विक प्रशासनिक सिद्धांत बन चुका है, जो सीमित संसाधनों और दक्षता संबंधी आवश्यकताओं को ध्यान में रखता है।
अंततः, सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट द्वारा जारी निर्देश (iv), (v), (vi) और (vii) को गलत ठहराते हुए रद्द कर दिया और आंशिक रूप से अपील स्वीकार कर ली।
वाद शीर्षक – रेसिंग प्रमोशन प्राइवेट लिमिटेड बनाम डॉ. हरीश एवं अन्य
Leave a Reply