‘न्यायिक अधिकारी को कोर्ट में गाली देने वाले वकील की सजा में सुप्रीम कोर्ट ने नहीं दी राहत, कहा — ‘इस व्यवहार को बर्दाश्त नहीं किया जा सकता’

सुप्रीम कोर्ट

‘न्यायिक अधिकारी को कोर्ट में गाली देने वाले वकील की सजा में सुप्रीम कोर्ट ने नहीं दी राहत, कहा — ‘इस व्यवहार को बर्दाश्त नहीं किया जा सकता’

नई दिल्ली | विधि संवाददाता
सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को दिल्ली की कड़कड़डूमा अदालत में महिला न्यायिक अधिकारी को धमकी देने और अश्लील भाषा का प्रयोग करने वाले वकील संजय राठौर की 18 महीने की सजा को बरकरार रखते हुए उसकी याचिका खारिज कर दी। न्यायमूर्ति प्रशांत कुमार मिश्र और न्यायमूर्ति मनमोहन की पीठ ने स्पष्ट शब्दों में कहा कि ऐसे व्यवहार को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता, विशेषकर जब वह एक महिला न्यायिक अधिकारी के खिलाफ हो और वह भी खुले न्यायालय में।


“आज दिल्ली की न्यायपालिका में अधिकांश महिलाएं हैं…”

पीठ ने कहा,

“आज दिल्ली में हमारे अधिकांश न्यायिक अधिकारी महिलाएं हैं… यदि ऐसे व्यवहार पर कोई दंड नहीं हो तो वे काम नहीं कर पाएंगी।”

याचिकाकर्ता के वकील ने तर्क दिया कि हाईकोर्ट ने दोषी की परिस्थितियों को पर्याप्त नहीं समझा और सजा में नरमी बरती जानी चाहिए, लेकिन जस्टिस मनमोहन ने दो टूक कहा,

“बस वह अभिव्यक्ति देखिए जो इस्तेमाल की गई है… हम उसे खुले कोर्ट में दोहरा भी नहीं सकते।”


“आप न्यायाधीश को गाली नहीं दे सकते, हम यह याचिका नहीं सुन सकते”

जब याचिकाकर्ता ने यह कहते हुए माफी मांगी कि वे केवल प्रोबेशन (परिहार) की मांग कर रहे हैं, तो कोर्ट ने कड़ा रुख अपनाते हुए कहा,

“ऐसे मामलों में कोई प्रोबेशन नहीं होता… आप कोर्ट में आकर न्यायाधीश को गाली नहीं दे सकते।”

जब वकील ने दावा किया कि सबसे अपमानजनक शब्द बाद में रिकॉर्ड में जोड़े गए, तो पीठ ने उस तर्क को खारिज कर दिया।

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याचिकाकर्ता ने छोटे बच्चों और वृद्ध माता-पिता की बात करते हुए सजा घटाने की प्रार्थना की, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने उसे खारिज करते हुए कहा:

“अब आप और कुछ तर्क नहीं दे सकते… ऐसे व्यवहार पर कोई सहानुभूति नहीं हो सकती।”


क्या था मामला?

यह घटना 2015 में कड़कड़डूमा कोर्ट की है। आरोपी वकील ने एक सुनवाई के दौरान जब उसे बताया गया कि उसका मामला स्थगित हो गया है, तो उसने जज के खिलाफ गाली-गलौज, चिल्लाना और धमकियां देना शुरू कर दिया
FIR के अनुसार, उसने कहा:

  • “ऐसा करो, मैटर ट्रांसफर कर दो CMM को…”
  • “मैं कल खुद जाऊंगा हाईकोर्ट, मैं देखता हूं अब तुम्हें…”
  • और सबसे आपत्तिजनक वाक्य था: “चड्ढी फाड़ कर रख दूंगा”, जो IPC की धारा 509 के तहत मुख्य आरोप बना।

उस पर IPC की धाराएं 186, 189, 228, 354A, 509 और 353 के तहत मामला दर्ज किया गया। ट्रायल कोर्ट ने उसे दो साल की साधारण कैद सुनाई थी (सजा एक के बाद एक चलनी थी)। बाद में दिल्ली हाईकोर्ट ने सजा को घटाकर 18 महीने की सजा कर दी, जो कि साथ-साथ चलेगी।


दिल्ली हाईकोर्ट ने भी सख्त टिप्पणी की थी

दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा था:

“ऐसे मामलों में नरमी दिखाना न्याय के साथ अन्याय होगा… यदि न्यायिक अधिकारी को भी न्याय न मिले, तो इससे उसकी गरिमा पर असहनीय चोट पहुंचेगी।”


सुप्रीम कोर्ट ने क्या आदेश दिया?

  • सुप्रीम कोर्ट ने सजा में कोई छूट देने से इनकार किया।
  • दो सप्ताह में आत्मसमर्पण करने का आदेश दिया गया।
  • याचिका खारिज कर दी गई।
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निष्कर्ष: न्यायपालिका की गरिमा से कोई समझौता नहीं

यह मामला स्पष्ट करता है कि न्यायपालिका की गरिमा और संस्थागत सम्मान के खिलाफ कोई भी अपमानजनक व्यवहार, विशेष रूप से महिला न्यायाधीशों के प्रति, कड़े दंड का पात्र है। सुप्रीम कोर्ट ने एक उदाहरण प्रस्तुत किया है कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का दुरुपयोग कर न्यायाधीशों का अपमान करने वालों के लिए कोई सहानुभूति नहीं होगी।

मामले का शीर्षक: Sanjay Rathore v. State (Govt. of NCT) & Anr. (SLP(Crl) No. 8930/2025)

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