सुप्रीम कोर्ट ने बलात्कार व एससी-एसटी एक्ट की झूठी FIR रद्द की, शिकायतकर्ता के व्यवहार को बताया कारण

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सुप्रीम कोर्ट ने बलात्कार व एससी-एसटी एक्ट की झूठी FIR रद्द की, शिकायतकर्ता के व्यवहार को बताया कारण

झूठे आरोपों का पुलिंदा बताते हुए सुप्रीम कोर्ट ने बलात्कार और एससी-एसटी एक्ट के तहत दर्ज एफआईआर को रद्द किया, कहा — शिकायतकर्ता की आक्रामक यौन प्रवृत्ति व प्रतिशोधी व्यवहार के कारण विवाह से पीछे हटना आरोपी का औचित्यपूर्ण कदम था

सुप्रीम कोर्ट ने बलात्कार के झूठे वादे और अनुसूचित जाति-अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम के तहत दर्ज एफआईआर को “झूठ और दुर्भावनापूर्ण आरोपों का पुलिंदा” करार देते हुए रद्द कर दिया है।

न्यायमूर्ति विक्रम नाथ और न्यायमूर्ति संदीप मेहता की पीठ ने यह भी कहा कि जब आरोपी को शिकायतकर्ता की आक्रामक यौन प्रवृत्ति और जुनूनी व्यवहार का पता चला, तो घबराकर विवाह से पीछे हटना उसके लिए पूरी तरह न्यायसंगत था।

यह अपील तेलंगाना हाईकोर्ट के आदेश के विरुद्ध दायर की गई थी, जिसमें याचिकाकर्ता द्वारा दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 482 के तहत एफआईआर रद्द करने की मांग खारिज कर दी गई थी। उक्त एफआईआर में भारतीय दंड संहिता की धारा 376(2)(n) और एससी-एसटी SC-ST (अत्याचार निवारण) अधिनियम की धारा 3(2)(v) के तहत आरोप दर्ज किए गए थे।

सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी:

पीठ ने कहा, “हमारे विचार में, जब आरोपी को शिकायतकर्ता की यौन आक्रामकता और जुनूनी प्रवृत्ति का पता चला, तो विवाह से पीछे हटना उसका पूर्णतः उचित निर्णय था।” न्यायालय ने यह भी कहा कि रिकॉर्ड पर मौजूद तथ्यों से स्पष्ट होता है कि शिकायतकर्ता का व्यवहार प्रतिशोधात्मक और चालाकीपूर्ण था, जो इस विवाद में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

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पृष्ठभूमि:

द्वितीय प्रतिवादी (शिकायतकर्ता) ने आरोप लगाया था कि आरोपी ने पहले शिकायत के दौरान विवाह का वादा किया था, लेकिन बाद में वह और उसकी मां पीछे हट गए। एक प्राथमिकी में दावा किया गया था कि आरोपी ने शादी की आड़ में शारीरिक संबंध बनाए और फिर उसकी जाति का हवाला देकर विवाह से इनकार कर दिया।

2022 की एफआईआर में भी ऐसे ही आरोप लगाए गए, जो पहले दर्ज 2021 की एफआईआर FIR से पूरी तरह भिन्न थे। कोर्ट ने पाया कि 2021 में सिर्फ एक शारीरिक संबंध की बात कही गई थी, जबकि 2022 की शिकायत में 4-5 घटनाओं का उल्लेख किया गया था — वो भी पूर्व-तिथि में।

कोर्ट को यह भी बताया गया कि शिकायतकर्ता ने पूर्व में भी ओस्मानिया विश्वविद्यालय के एक असिस्टेंट प्रोफेसर के खिलाफ समान प्रकृति की एफआईआर दर्ज करवाई थी। व्हाट्सएप चैट्स में यह बात सामने आई कि शिकायतकर्ता “ग्रीन कार्ड होल्डर” प्राप्त करने के लिए चालाकी से काम कर रही थी और आरोपी को “नेक्स्ट विक्टिम” के लिए छोड़ने की योजना बना रही थी।

पीठ ने कहा, “मान भी लें कि आरोपी ने विवाह का वादा वापस ले लिया, तब भी यह नहीं कहा जा सकता कि उसने झूठे वादे के तहत यौन संबंध बनाए या शिकायतकर्ता की अनुसूचित जाति की पृष्ठभूमि के कारण कोई अपराध किया।”

निर्णय:

सुप्रीम कोर्ट ने पाया कि शिकायतकर्ता की ओर से लगाए गए आरोप तथ्यात्मक रूप से असंगत, विरोधाभासी और बदले की भावना से प्रेरित हैं। अतः न्यायालय ने एफआईआर संख्या 103/2022 और 2021 में दर्ज की गई प्राथमिकी को रद्द करते हुए याचिका को स्वीकार कर लिया।

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प्रकरण शीर्षक: Batlanki Keshav (Kesava) Kumar Anurag बनाम State of Telangana & Anr.
तटस्थ उद्धरण: 2025 INSC 790
याचिकाकर्ता की ओर से पेश हुए: एडवोकेट ऑन रिकॉर्ड अमीश अग्रवाला
प्रतिवादी की ओर से पेश हुए: अधिवक्ता कुमार वैभव

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