न्यायमूर्ति एम आर शाह और न्यायमूर्ति सी टी रवि कुमार के पीठ ने अपने आदेश की अवहेलना पर मणिपुर हाईकोर्ट को कड़ी फटकार लगाई है और अवमानना का नोटिस जारी कर दिया है।
हाईकोर्ट की एक कर्मचारी के प्रमोशन से जुड़ी याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट में न्यायमूर्ति एम आर शाह ने कहा कि लगता है कि हाईकोर्ट अपने आप को सुप्रीम कोर्ट से बड़ा मानने लगा है। चीफ जस्टिस से कह दीजिए कि इसे ईगो का इश्यू ना बनाएं। यह बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है कि हाईकोर्ट हमारे आदेश ही समझ नहीं पाया।
क्या है पूरा मामला?
प्रस्तुत मामला मणिपुर हाईकोर्ट की एक असिस्टेंट रजिस्ट्रार की याचिका से जुड़ा है। याचिकाकर्ता ने अर्जी लगाई थी की सीनियरिटी और मेरिट के आधार पर उसे प्रमोट किया जाना चाहिए था, लेकिन उसके ACR (Annual Confidential Report) को आधार बनाते हुए प्रमोशन (PROMOTION) नहीं दिया। याचिकाकर्ता के मुताबिक 2016-17 व 2019-20 के एसीआर को नजरअंदाज कर दिया जाए तो भी 5 साल की अवधि के जो बाकी एसीआर हैं, उस आधार पर प्रमोशन मिलना चाहिए था।
इस अर्जी पर सुनवाई करते हुए 24 फरवरी, 2023 को सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट को निर्देश दिया था कि वह याचिकाकर्ता के 5 सालों में से तीन एसीआर को नजरअंदाज करते हुए दो एससीआर के आधार पर प्रमोशन दे दे। लेकिन सुप्रीम कोर्ट के आदेश का मामला नहीं हुआ।
सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा?
सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान न्यायमूर्ति एम आर शाह ने हाईकोर्ट की तरफ से पेश वकील से सवाल किया, ‘अब आप लोग 8 अन्य लोगों के लिए नए DPC (Departmental Promotion Committee) क्यों बुला रहे हैं? अपने हाईकोर्ट को कह दीजिए कि हमारा आदेश बिल्कुल साफ था। हमने कहा था कि 5 सालों में से तीन एसीआर को नजरअंदाज करना है और 2 को कंसीडर करना था। ऐसे में याचिकाकर्ता को प्रमोशन दिया जाना था…इसे ईगो का इश्यू मत बनाइए। हाईकोर्ट, प्रशासन का काम देख रहा है तो सबके लिए पारदर्शी व्यवस्था होनी चाहिए। अपने चीफ जस्टिस को जाकर कह दें…इसे ईगो का ईश्यू न बनाएं।
न्यायमूर्तिशाह ने सवाल किया-
दूसरे लोगों को कंसीडर करने का दबाव कहां था? सिर्फ याचिकाकर्ता के केस को कंसीडर किया जाना था। हाईकोर्ट हमारा आदेश नहीं समझता है क्या? हमारा आदेश तो बिल्कुल साफ था। चीफ जस्टिस को कह दीजिए कि याचिकाकर्ता के केस को कंसीडर करें। कन्फ्यूजन की कोई बात ही नहीं है। हमें इस बात से मतलब नहीं है कि 6 पोस्ट हैं या 60 या 600 पोस्ट हैं। अच्छे सिर्फ मूल याचिकाकर्ता से मतलब है और हमने अपने आदेश में कहा था कि उसके तीन एसीआर को इग्नोर करना है’।
वकील का कहना – आदेश समझ नहीं आया तो बिफरे न्यायमूर्ति
न्यायमूर्ति शाह की इस टिप्पणी पर हाईकोर्ट की तरफ से पेश वकील ने कहा कि शायद हाईकोर्ट, सुप्रीम कोर्ट का आदेश ढंग से समझ नहीं पाया। इस पर जस्टिस शाह ने दोहराया- हमारा आदेश बिल्कुल क्लियर था। समाचार-पत्र के मुताबिक जस्टिस शाह ने आगे कहा- ‘क्या चाहते हैं कि हम अवमानना की कार्यवाही शुरू करें? हमारा आदेश तो बिल्कुल क्लियर था… ऐसा लगता है कि हाईकोर्ट अपने आप को सुप्रीम कोर्ट से बड़ा मानने लगा है। हम अवमानना का नोटिस जारी कर रहे हैं…’।
न्यायमूर्ति सी टी रवि कुमार ने टिप्पणी की –
‘सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में जो शब्द इस्तेमाल किया था, उसमें लिखा था कि याचिकाकर्ता के मामले को नए सिरे से कंसीडर किया जाना चाहिए। इसमें कंफ्यूजन की कहां है? कोई कंफ्यूजन है ही नहीं। सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट को निर्देश दिया है कि वह 2 सप्ताह के भीतर उसके आदेश का पालन करे और पूरी रिपोर्ट जमा करे।
न्यायालय की अवमानना क्या है ?
न्यायालय की अवमानना यानी Contempt of Courts का मतलब है न्यायालय की प्रतिष्ठा या अथॉरिटी के प्रति असम्मान प्रकट करने का अपराध। यह न्यायालय अवमानना अधिनियम 1971 के तहत आता है। कंटेंप्ट ऑफ कोर्ट को दो हिस्सों में बांटा गया है- सिविल और क्रिमिनल। सिविल कंटेंप्ट का मतलब है कि न्यायालय के किसी आदेश का जानबूझकर पालन न करना। आपराधिक कंटेम्प्ट का मतलब है न्यायालय को अपमानित करना या कामकाज में दखल देना या प्रभावित करना।