अनुच्छेद 370 के मामले पर सुप्रीम कोर्ट सिर्फ इस मुद्दे तक ही सीमित रहेगा कि कोई संवैधानिक उल्लंघन हुआ है या नहीं : चीफ जस्टिस

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जम्मू कश्मीर में अनुच्छेद 370 समाप्त करने के मामले दायर याचिकाओं पर सातवें दिन की सुनवाई सुप्रीम कोर्ट में हुई

अनुच्छेद 370 के मामले पर सुप्रीम कोर्ट में गुरुवार को सातवें दिन की सुनवाई हुई. सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले पर बड़ी टिप्पणी की. चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा, इस मामले में न्यायिक समीक्षा की अनुमति है. यह इस मुद्दे तक ही सीमित रहेगा कि कोई संवैधानिक उल्लंघन हुआ है या नहीं, और यदि कोई संवैधानिक उल्लंघन है तो यह अदालत निश्चित रूप से हस्तक्षेप कर सकती है. हम 370 निरस्त करने के फैसले के अंतर्निहित विवेक की जांच करेंगे.

चीफ जस्टिस ने याचिकाकर्ता के वकील दुष्यंत दवे से कहा, क्या आप अदालत को 370 को निरस्त करने पर सरकार के फैसले के विवेक की समीक्षा करने के लिए आमंत्रित कर रहे हैं? आप कह रहे हैं कि न्यायिक समीक्षा में सरकार के फैसले के आधार का पुनर्मूल्यांकन किया जाना चाहिए कि धारा 370 को जारी रखना राष्ट्रीय हित में नहीं था?

चीफ जस्टिस ऑफ़ इंडिया ने इस बात पर जोर दिया कि न्यायिक समीक्षा संवैधानिक उल्लंघन तक ही सीमित रहेगी और इसमें कोई संदेह नहीं है. अनुच्छेद 370 को लेकर दाखिल की गई याचिकाओं पर जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पांच जजों की संविधान पीठ में सातवें दिन वकील दुष्यंत दवे ने दलील देते हुए 1960 के द बेरुबारी यूनियन को आधार बनाते हुए तर्क दिया कि अनुच्छेद 3 द्वारा प्रदान की जाने वाली हर चीज को खत्म करने के लिए राष्ट्रपति शासन का उपयोग करना संवैधानिक सुरक्षा उपायों का मजाक है.

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अनुच्छेद 370 अस्थाई होने के लिए ही डिजाइन किया गया था-

उन्होंने कहा कि अनुच्छेद 370 हमेशा से अस्थाई होने के लिए डिजाइन किया गया था, भारतीय प्रभुत्व के नजरिए से नहीं, बल्कि जम्मू कश्मीर के नजरिए से अस्थाई था. अनुच्छेद 370 को केवल संविधान सभा द्वारा हटाया जा सकता था. इसी कारण इसे अस्थाई कहा गया. इसके स्थायित्व का निर्णय करना अंततः जम्मू-कश्मीर के लोगों के हाथ में था.

उन्होंने कहा कि1957 में संविधान सभा भंग हो गई, जो कि एक बार की प्रक्रिया थी जिसे बार-बार दोहराया नहीं जा सकता.

संविधान को बदलने की शक्ति आखिर कहां है?

वहीं चीफ जस्टिस ऑफ़ इंडिया ने पूछा कि यदि जम्मू-कश्मीर संविधान सभा ने संविधान बनाकर अपना काम पूरा कर लिया, तो 1957 के बाद संवैधानिक आदेश जारी करने का अवसर कहां था? यदि आपका तर्क सही है तो संविधान को बदलने की शक्ति आखिर कहां है? जैसा आप कह रहे हैं कि संविधान सभा भंग होने के बाद जम्मू कश्मीर से संबंधित कोई भी बदलाव करने की कोई शक्ति नहीं थी! तो हम अनुच्छेद 370(1), (2), (3) की व्याख्या कैसे कर सकते हैं? इसके लिए एक तार्किक स्थिरता तो होनी चाहिए.

दवे ने आगे अपनी दलील में संविधान सभा की बहस के दौरान गोपालस्वामी अयंगर के भाषणों और 1959 के प्रेम नाथ कौल मामले के आधार पर तर्क दिया कि जम्मू-कश्मीर की संविधान सभा के पास ही अनुच्छेद 370 को पूरी तरह से निरस्त करने की शक्ति थी.

इस मामले की आगे सुनवाई अगले सप्ताह मंगलवार को होगी.

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