सुप्रीम कोर्ट ने विवाह का वादा कर शारीरिक संबंध बनाए आरोपी व्यक्ति के खिलाफ बलात्कार के आरोपों को खारिज कर आपराधिक कार्यवाही को रद्द किया

सुप्रीम कोर्ट ने विवाह का वादा कर शारीरिक संबंध बनाए आरोपी व्यक्ति के खिलाफ बलात्कार के आरोपों को खारिज कर आपराधिक कार्यवाही को रद्द किया

 

सुप्रीम कोर्ट ने विवाह का वादा कर शारीरिक संबंध बनाए आरोपी व्यक्ति के खिलाफ बलात्कार के आरोपों को खारिज कर आपराधिक कार्यवाही को रद्द किया

सुप्रीम कोर्ट ने एक व्यक्ति के खिलाफ बलात्कार के आरोपों को खारिज कर दिया, जहां पीड़िता ने दावा किया था कि आरोपी ने विवाह का वादा कर सहमति प्राप्त की थी।

अदालत ने टिप्पणी की कि कथित बलात्कार की दोनों घटनाओं में पीड़िता ने मानसिक रूप से परेशान होने की बात कही, लेकिन इसके बावजूद वह दोबारा आरोपी के साथ होटल के कमरों में गई।

न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया और न्यायमूर्ति के. विनोद चंद्रन की पीठ ने कहा,
“पुलिस को दिए गए पीड़िता के बयानों, प्रथम सूचना रिपोर्ट (FIR) और बाद में दर्ज बयान को पढ़ने के बाद, हमें यह विश्वास नहीं होता कि यौन संबंध उसकी सहमति के बिना बने थे। पीड़िता ने यह भी स्पष्ट रूप से कहा कि पहली और दूसरी घटना के बाद वह मानसिक रूप से परेशान थी, फिर भी वह दोबारा आरोपी के साथ होटल के कमरे में गई।”

इस मामले में अपीलकर्ता की ओर से अधिवक्ता पी. सोमा सुंदरम, जबकि प्रतिवादी की ओर से वरिष्ठ अपर महाधिवक्ता (AAG) अमित आनंद तिवारी ने प्रस्तुतियां दीं।

संक्षिप्त तथ्य:

पीड़िता ने आरोप लगाया कि अपीलकर्ता के अनुरोध पर वह उसके साथ एक फिल्म देखने गई थी, जिसके बाद उसे चक्कर आने लगे और वे एक होटल गए। वहां, पीड़िता के अनुसार, ‘अचानक और अप्रत्याशित’ रूप से उसकी मर्जी के खिलाफ आरोपी ने जबरदस्ती शारीरिक संबंध बनाए। उसने दावा किया कि विरोध और रोने के बावजूद आरोपी ने कृत्य जारी रखा, जिसके बाद उसने उससे कहा कि उसने उसका जीवन बर्बाद कर दिया।

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इसी दौरान, पीड़िता का आरोप है कि आरोपी ने उसके सिर पर हाथ रखकर विवाह का वादा किया।

इससे पहले, मद्रास हाई कोर्ट ने दंड प्रक्रिया संहिता (CrPC) की धारा 482 के तहत अपीलकर्ता की याचिका खारिज कर दी थी, यह कहते हुए कि यह मामला ट्रायल के लिए आगे बढ़ना चाहिए ताकि यह तय किया जा सके कि क्या वास्तव में धोखे से सहमति ली गई थी।

अदालत की दलीलें:

सुप्रीम कोर्ट ने अपने निर्णय में कहा:
“हम पहले ही यह निष्कर्ष निकाल चुके हैं कि पीड़िता द्वारा दिए गए बयानों के अनुसार, विवाह के वादे के आधार पर सहमति प्राप्त करने की कोई बात सामने नहीं आती। यदि कोई वादा किया भी गया था, तो वह पहले शारीरिक संबंध बनने के बाद किया गया था। इसके अलावा, आरोप बार-बार जबरदस्ती और धमकी देकर शारीरिक संबंध बनाने के हैं, जिसमें सहमति का जिक्र ही नहीं किया गया है। ऐसे में विवाह के वादे के आधार पर सहमति लेने की कोई संभावना नहीं बनती।”

अदालत ने आगे कहा:
“यह भी पीड़िता का स्पष्ट बयान है कि पहली और दूसरी घटना के बाद वह मानसिक रूप से परेशान थी, लेकिन इसके बावजूद, आरोपी के अनुरोध पर वह तीसरी बार भी उसी होटल में गई। यहां फिर से वही कहानी दोहराई गई कि विवाह की चर्चा को तब तक टाल दिया गया, जब तक कि शारीरिक संबंध स्थापित नहीं हो गए।”

पीठ ने कहा:
“पीड़िता ने आरोप लगाया है कि उसे धमकी और जबरदस्ती देकर शारीरिक संबंध बनाए गए, लेकिन उसके स्वयं के बयानों से यह स्पष्ट होता है कि ऐसा तीन बार हुआ, और हर बार उसने स्वेच्छा से आरोपी के साथ होटल का रुख किया।”

अंततः, सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में कहा:
“दोनों पक्षों की दलीलें सुनने के बाद, हमें स्पष्ट रूप से लगता है कि इस मामले में आपराधिक कार्यवाही अदालत की प्रक्रिया का दुरुपयोग है। यह वही मामला है, जहां उच्च न्यायालय को धारा 482 के तहत अपनी अंतर्निहित और असाधारण शक्तियों का प्रयोग कर हस्तक्षेप करना चाहिए था।”

इसके साथ ही, सुप्रीम कोर्ट ने अपील को स्वीकार कर लिया और आपराधिक कार्यवाही रद्द कर दी।

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वाद शीर्षक – ज्योति राघवन बनाम राज्य एवं अन्य

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