सुप्रीम कोर्ट ने नियुक्ति से किया इनकार करते हुए कहा की केवल इस तथ्य से कि उम्मीदवार 2007 से अपने मुद्दे को लेकर आंदोलन कर रहा है, नियुक्ति का कानूनी आधार नहीं

सुप्रीम कोर्ट ने नियुक्ति से किया इनकार करते हुए कहा की केवल इस तथ्य से कि उम्मीदवार 2007 से अपने मुद्दे को लेकर आंदोलन कर रहा है, नियुक्ति का कानूनी आधार नहीं

तेलंगाना हाईकोर्ट का आदेश रद्द: सुप्रीम कोर्ट ने नियुक्ति से किया इनकार

सुप्रीम कोर्ट ने नियुक्ति से किया इनकार करते हुए कहा की केवल इस तथ्य से कि उम्मीदवार 2007 से अपने मुद्दे को लेकर आंदोलन कर रहा है, नियुक्ति का कानूनी आधार नहीं

सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि केवल 2007 से अपनी नियुक्ति के लिए संघर्ष करते रहने से किसी उम्मीदवार को कानूनी अधिकार नहीं मिल जाता। कोर्ट ने तेलंगाना की साउदर्न पावर डिस्ट्रीब्यूशन कंपनी (TSSPDCL) की अपील स्वीकार करते हुए तेलंगाना हाईकोर्ट के उस आदेश को रद्द कर दिया, जिसमें उत्तरदाता (प्रतिवादी) को ऑफिस सबऑर्डिनेट के रूप में नियुक्त करने का निर्देश दिया गया था।

सुप्रीम कोर्ट की मुख्य टिप्पणी

न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया और न्यायमूर्ति के. विनोद चंद्रन की पीठ ने कहा:

“सिर्फ इसलिए कि उत्तरदाता संख्या 1 (प्रतिवादी) 2007 से अपनी नियुक्ति के लिए संघर्ष कर रहा है, इसका मतलब यह नहीं कि उसे कानूनी आधार के बिना नियुक्ति दी जा सकती है।”

मामले की पृष्ठभूमि

  • उत्तरदाता ने नियमित नियुक्ति के लिए आवेदन किया था लेकिन आवश्यक शारीरिक परीक्षा (फिजिकल टेस्ट) में असफल हो गया।
  • उसने दावा किया कि ड्यूटी के दौरान हुए एक हादसे में लगी चोट के कारण वह यह परीक्षा पास नहीं कर सका।
  • तेलंगाना हाईकोर्ट की एकल पीठ (सिंगल बेंच) ने इसे एक अन्य कर्मचारी ए. अंजनयालु के मामले के समान बताया, जिसे स्थायी विकलांगता (permanent disability) के आधार पर गैर-तकनीकी पद पर नियुक्त किया गया था।
  • डिवीजन बेंच ने भी इस आदेश को बरकरार रखा, जिसके बाद TSSPDCL ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया
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सुप्रीम कोर्ट का निर्णय और तर्क

  • उत्तरदाता पहले अनुबंध कर्मचारी (contract employee) के रूप में नियुक्त हुआ था।
  • फिजिकल टेस्ट में फेल होने के कारण वह नियमित नियुक्ति का हकदार नहीं हो सकता
  • ए. अंजनयालु के मामले और उत्तरदाता के मामले में महत्वपूर्ण अंतर था:
    • अंजनयालु को स्थायी विकलांगता हुई थी
    • उत्तरदाता को केवल हाथ में एक रॉड लगी थी, जिससे वह फिजिकल टेस्ट पास नहीं कर सका।

कोर्ट ने कहा:

“उत्तरदाता ने पहले रिट याचिका दायर कर आदेश प्राप्त किया, फिर फिजिकल टेस्ट दिया और असफल हो गया। इसके बाद, एक सोची-समझी रणनीति के तहत उसने यह दलील दी।”

इसलिए, एकल पीठ द्वारा नियुक्ति देने का आदेश गलत था, क्योंकि उसने अंजनयालु और उत्तरदाता के मामलों को अनुचित रूप से समान मान लिया

सुप्रीम कोर्ट का अंतिम निर्णय

  • अपील को स्वीकार किया गया और हाईकोर्ट के आदेश को रद्द कर दिया गया
  • उत्तरदाता की रिट याचिका खारिज कर दी गई
  • कोर्ट ने निर्देश दिया कि दोनों पक्ष अपने-अपने खर्च वहन करेंगे

निष्कर्ष

इस फैसले से यह स्पष्ट हो गया कि लगातार मुकदमा लड़ने से किसी को कानूनी अधिकार नहीं मिल सकता, जब तक कि उसका ठोस कानूनी आधार न हो। इसके अलावा, स्थायी विकलांगता और अस्थायी चोट के बीच का अंतर भी इस मामले में एक महत्वपूर्ण कारक रहा।

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