सर्वोच्च न्यायलय ने एक मामले में सुनवाई करते हुए कहा कि जब किसी अभियुक्त द्वारा दी गई चोटों के कारण काफी समय बीत जाने के बाद पीड़ित की मृत्यु हो जाती है, तो इससे हत्या के मामले में अपराधी की जिम्मेदारी कम नहीं होगी।
जस्टिस कृष्ण मुरारी और जस्टिस एस. रवींद्र भट की पीठ ने सुनवाई करते हुए यह बात कही-
किसी शख्स द्वारा पहुंचाई गई चोट के कारण अगर लंबे समय बाद पीड़ित की मौत हो जाती है, तो इससे हत्या के मामले में आरोपी की जिम्मेदारी कम नहीं होती। छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट के खिलाफ दोषियों की याचिका की सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने यह टिप्पणी की।
प्रस्तुत मामले में सुनवाई के दौरान बचाव पक्ष के याचिकाकर्ताओं के वकील ने कहा कि हमले के 20 दिन बाद पीड़ित की मौत हुई थी। इससे पता चलता है कि हमले के दौरान पहुंचे चोट से मौत नहीं हुई है। पुलिस के अनुसार फरवरी 2012 में आरोपियों ने पीड़ित की विवादित जमीन को जेसीबी से समतल करने का प्रयास किया था और इसी दौरान दोनों पक्षों में बहस हो गई फिर आरोपियों ने कुल्हाड़ी से वार कर दिया। उसकी मौत के बाद पीड़ित परिजनों ने अपीलकर्ताओं के खिलाफ एक आपराधिक मामला दर्ज किया था।
आरोपी के वकील का कथन मृत्यु सर्जरी में जटिलताओं के कारण हुई-
अभियुक्तों ने तर्क दिया कि कथित घटना के लगभग बीस दिनों के बाद और सर्जरी में जटिलताओं के कारण पीड़ित की मृत्यु हुई, उनके कथित हमले के कारण मौत नहीं हुई। शीर्ष अदालत ने कहा कि सवाल यह है कि क्या अपीलकर्ता हत्या के अपराध के दोषी हैं, भारतीय दंड संहिता धारा 302 के तहत दंडनीय है, या क्या वे कम गंभीर धारा 304, आईपीसी के तहत आपराधिक रूप से उत्तरदायी हैं।
कोर्ट ने ख़ारिज किया हमलावर की दलील –
सुप्रीम कोर्ट बेंच ने कहा, यह अदालत यह स्वीकार करने में कोई कठिनाई नहीं देखती है कि अपीलकर्ता हमलावर थे। पीठ ने आगे कहा कि इस मामले में चिकित्सकीय ध्यान की पर्याप्तता या अन्यथा कोई प्रासंगिक कारक नहीं है, क्योंकि पोस्ट-मॉर्टम करने वाले डॉक्टर ने स्पष्ट रूप से कहा था कि मौत कार्डियो रेस्पिरेटरी फेलियर के कारण हुई थी, जो चोटों के परिणामस्वरूप हुई थी।