सर्वोच्च अदालत ने पंजाब राज्य द्वारा उच्च न्यायालय के निर्णय के खिलाफ दायर एक अपील पर अपना फैसला सुनाया है। जिसमें आईपीसी की धारा 304-ए (उतावलेपन और लापरवाही से मौत का कारण) के तहत अपराध के लिए एक आरोपी की सजा को तो बरकरार रखा गया था, लेकिन उसकी सजा को दो साल से घटाकर आठ महीने कर दिया था।
सर्वोच्च न्यायलय Supreme Court ने पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायलय के एक फैसले को रद्द कर दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने माना कि इस फैसले में हाईकोर्ट ने जल्दबाजी और लापरवाही करते हुए एक व्यक्ति की सजा को कम कर दिया था। बेंच ने इस मामले में हाई कोर्ट के फैसले को खारिज करते हुए कहा कि अनुचित सहानुभूति दिखाना टिकाऊ नहीं होता।
Justice M. R. Shah और Justice C. T. RaviKumar की बेंच ने 28 मार्च के अपने फैसले में कहा कि हाईकोर्ट ने सजा को कम करते समय अपराध की गंभीरता पर विचार नहीं किया था। जिस तरह से अभियुक्त ने जल्दबाजी और लापरवाही से एसयूवी चलाकर इस घटना को अंजाम दिया था, जिससे एक व्यक्ति की मौत हो गई और एंबुलेंस में सवार दो अन्य घायल हो गए।
सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई के दौरान कहा कि हाई कोर्ट ने यह बिल्कुल नहीं माना था कि भारतीय दंड संहिता प्रकृति में दंडात्मक और निवारक है। इसका मुख्य उद्देश्य संहिता के तहत किए गए अपराधों के लिए अपराधियों को दंडित करना है।
बेंच ने सजा कम करने के उच्च न्यायालय के फैसले को रद्द कर दिया और निचली अदालत द्वारा लगाई गई सजा को बहाल कर दिया। इस दौरान अपील की अनुमति देते हुए अदालत ने अभियुक्त को शेष सजा काटने के लिए आत्मसमर्पण करने के लिए चार सप्ताह का समय दिया।
जानकारी हो की सुप्रीम कोर्ट ने पंजाब राज्य द्वारा हाई कोर्ट के फैसले के खिलाफ दायर एक अपील पर अपना फैसला सुनाया है। इसमें IPC की धारा 304-A (उतावलेपन और लापरवाही से मौत का कारण) के तहत अपराध के लिए एक आरोपी की सजा को तो बरकरार रखा गया था, लेकिन उसकी सजा को दो साल से घटाकर आठ महीने कर दिया था।
बता दें कि यह सड़क दुर्घटना जनवरी 2012 में हुई थी। जब आरोपी द्वारा चलायी जा रही एक एसयूवी ने चंडीगढ़ से मोहाली की ओर आ रही एक एंबुलेंस को टक्कर मार दी थी। टक्कर के कारण, एम्बुलेंस पलट गई। इस मामले में ट्रायल कोर्ट ने आरोपी को दो साल की जेल की सजा सुनाई थी।