सर्वोच्च न्यायलय ने PMLA 2002 के तहत ED के अधिकारों का किया समर्थन, कहा छापेमारी, कुर्की और गिरफ़्तारी का अधिकार नहीं है मनमानी-

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धनशोधन निवारण अधिनियम 2002 कानून की वैधता को चुनौती देने वाली 241 याचिकाओं के एक बंच पर सुप्रीम कोर्ट में तीन न्यायाधीशों के बेंच न्यायमूर्ति ए. एम. खानविलकर, न्यायमूर्ति दिनेश माहेश्वरी और न्यायमूर्ति सी. टी. रवि कुमार ने फैसला सुनाया।

शीर्ष अदालत ने आज दिए एक महत्वपूर्ण निर्णय में प्रवर्तन निदेशालय ENFORCEMENT DIRECTORATE के आर्थिक अपराधों की जांच करने और इनसे जुड़े मामलों में गिरफ्तारी करने के अधिकार को सही ठहराया है। इससे विपक्ष का केंद्र सरकार के द्वारा ईडी का राजनीतिक दुरुपयोग करने का आरोप फिलहाल कुंद पड़ गया है।

सर्वोच्च न्यायालय ने धनशोधन निवारण अधिनियम पीएमएलए अधिनियम 2002 PREVENTION OF MONEY LAUNDERING ACT 2002 के तहत ENFORCEMENT DIRECTORATE को मिले अधिकारों का समर्थन करते हुए बुधवार को कहा कि धारा-19 के तहत गिरफ्तारी का अधिकार मनमानी नहीं है।

न्यायमूर्ति ए. एम. खानविलकर, न्यायमूर्ति दिनेश माहेश्वरी और न्यायमूर्ति सी. टी. रवि कुमार की पीठ ने पीएमएलए के कुछ प्रावधानों की वैधता को बरकरार रखते हुए कहा कि धारा-5 के तहत धनशोधन में संलिप्त लोगों की संपति कुर्क करना संवैधानिक रूप से वैध है।

उच्चतम न्यायालय ने कहा कि हर मामले में ईसीआईआर (प्रवर्तन मामला सूचना रिपोर्ट) अनिवार्य नहीं है। ईडी की ईसीआईआर पुलिस की प्राथमिकी के बराबर होती है। पीठ ने कहा कि यदि ईडी गिरफ्तारी के समय उसके आधार का खुलासा करता है तो यह पर्याप्त है।

अदालत ने पीएमएलए अधिनियम 2002 PREVENTION OF MONEY LAUNDERING ACT 2002 की धारा 19 की संवैधानिक वैधता को दी गई चुनौती को खारिज करते हुए कहा, ‘‘ 2002 अधिनियम की धारा 19 की संवैधानिक वैधता को दी गई चुनौती भी खारिज की जाती है। धारा 19 में कड़े सुरक्षा उपाय दिए गए हैं। प्रावधान में कुछ भी मनमानी के दायरे में नहीं आता।’’

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पीठ ने कहा कि विशेष अदालत के समक्ष जब गिरफ्तार व्यक्ति को पेश किया जाता है, तो वह ईडी द्वारा प्रस्तुत प्रासंगिक रिकॉर्ड देख सकती है तथा वह ही धनशोधन के कथित अपराध के संबंध में व्यक्ति को लगातार हिरासत में रखे जाने पर फैसला करेगी।

पीठ ने फैसला सुनाते हुए कहा, ‘‘धारा-5 संवैधानिक रूप से वैध है। यह व्यक्ति के हितों को सुरक्षित करने के लिए एक संतुलन व्यवस्था प्रदान करती है और यह भी सुनिश्चित करती है कि अपराध से अधिनियम के तहत प्रदान किए गए तरीकों से निपटा जाए।’’

शीर्ष अदालत ने पीएमएलए के कुछ प्रावधानों की व्याख्या से संबंधित याचिकाओं पर सुनवाई के दौरान यह फैसला सुनाया।

सुनवाई के दौरान, शीर्ष अदालत ने अधिनियम की धारा-45 के साथ-साथ दण्ड प्रक्रिया संहिता (CR.P.C) की धारा-436ए और आरोपियों के अधिकारों को संतुलित करने पर भी जोर दिया।

पीएमएलए की धारा-45 संज्ञेय तथा गैर-जमानती अपराधों से संबंधित है, जबकि सीआरपीसी की धारा-436ए किसी विचाराधीन कैदी को हिरासत में रखे जाने की अधिकतम अवधि से संबंधित है।

शीर्ष अदालत ने गिरफ्तारी से संबंधित पीएमएलए की धारा-19 पर भी दलीलें सुनीं और साथ ही धनशोधन अपराध की परिभाषा से जुड़ी धारा-3 पर भी सुनवाई की। केंद्र ने पहले शीर्ष अदालत को बताया था कि पिछले 17 वर्षों में पीएमएलए के तहत 4,850 मामलों की जांच की गई और जांच के दौरान 98,368 करोड़ रुपये कानून के प्रावधानों के तहत जब्त किए गए।

सरकार ने अदालत से कहा कि इन अपराधों की जांच पीएमएलए के तहत की गई, जिसमें 2,883 छापेमारी भी शामिल हैं। सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा था कि संबंधित प्राधिकरण जब्त किए गए 98,368 करोड़ रुपये में से 55,899 करोड़ रुपये के आपराधिक आय होने की पुष्टि कर चुका है।

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