उच्च न्यायालयों में न्यायाधीशों की नियुक्ति में देरी पर सुप्रीम कोर्ट की सख़्त टिप्पणी, केंद्र सरकार को कॉलेजियम की सिफारिशों पर शीघ्र निर्णय लेने का निर्देश
लाखों लंबित आपराधिक मामलों पर जताई चिंता, इलाहाबाद हाईकोर्ट में सबसे अधिक 2.7 लाख केस पेंडिंग
सुप्रीम कोर्ट ने देश के उच्च न्यायालयों में न्यायाधीशों की नियुक्ति की प्रक्रिया में हो रही देरी पर गंभीर चिंता व्यक्त करते हुए केंद्र सरकार को निर्देश दिया है कि वह सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम की सिफारिशों पर शीघ्र निर्णय ले और लंबित नामों को मंजूरी प्रदान करे।
कोर्ट ने स्पष्ट किया कि न्यायिक नियुक्तियों में अनावश्यक विलंब न केवल न्यायपालिका की कार्यक्षमता को प्रभावित करता है, बल्कि लाखों मामलों के लंबित रहने का एक बड़ा कारण भी है। कोर्ट ने बताया कि देश के उच्च न्यायालयों में 7,24,192 आपराधिक अपीलें लंबित हैं, जिनमें से इलाहाबाद हाईकोर्ट में अकेले 2.7 लाख मामले अब तक निपटाए नहीं जा सके हैं।
न्यायिक नियुक्तियों के आंकड़े
सुप्रीम कोर्ट की वेबसाइट पर साझा किए गए आंकड़ों के अनुसार, 9 नवंबर 2022 से 10 नवंबर 2024 के बीच कॉलेजियम ने 330 नामों को हाईकोर्ट जज के रूप में नियुक्त करने की सिफारिश की थी। इनमें से केंद्र सरकार ने अब तक 170 नामों को मंजूरी दी है, जबकि 17 नाम अभी भी केंद्र के पास लंबित हैं।
इसके अतिरिक्त, 11 नवंबर 2024 से 5 मई 2025 के बीच कॉलेजियम ने 103 नामों की सिफारिश की, जिनमें से केवल 51 नामों को ही केंद्र से मंजूरी प्राप्त हुई है। शेष 12 नामों को अभी स्वीकृति नहीं मिली है।
कुल मिलाकर, 9 नवंबर 2022 से 5 मई 2025 तक कॉलेजियम द्वारा 221 न्यायिक नामों को अनुमोदित किया गया, जिनमें से 29 नाम केंद्र की मंजूरी की प्रतीक्षा में हैं।
पारदर्शिता की दिशा में कॉलेजियम की पहल
सुप्रीम कोर्ट की वेबसाइट पर कॉलेजियम की सिफारिशों के विवरण में यह भी बताया गया है कि नामित न्यायाधीशों का किन वर्तमान या सेवानिवृत्त न्यायाधीशों से क्या संबंध है और किन सिफारिशों को सरकार ने स्वीकृति दी है। यह कदम न्यायिक नियुक्तियों की पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित करने के प्रयास के रूप में देखा जा रहा है।
न्यायिक व्यवस्था की प्रभावशीलता पर संकट
सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट शब्दों में कहा है कि इस तरह की देरी न्यायिक प्रणाली की प्रभावशीलता को प्रभावित करती है और नागरिकों को समय पर न्याय मिलने में बाधा बनती है। अदालत ने केंद्र सरकार को यह सुनिश्चित करने का निर्देश दिया कि कॉलेजियम की सिफारिशों पर निर्धारित समयसीमा में निर्णय लिया जाए ताकि न्यायिक प्रक्रिया निर्बाध रूप से चल सके।
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