ट्रेड मार्क उलंघन Trademark Infringement के मामले में दिल्ली उच्च न्यायालय Delhi High Court की न्यायमूर्ति प्रतिभा एम. सिंह ने कहा कि प्रतिवादियों ने अपनी वेबसाइट के डोमेन नाम “www. sholay.com” के रूप में लोकप्रिय फिल्म “शोले” के नाम का इस्तेमाल किया था और अदालत ने प्रतिवादी पर लागत और नुकसान के रूप में 25 लाख रुपये की राशि लगाई। lवादी को तीन माह की अवधि में भुगतान किया जाए।
क्या है ट्रेड मार्क उलंघन का मामला-
वादी को एक पत्रिका के माध्यम से इस बात का पता चला की उनके सुपरहिट और सबसे ज्यादा लोकप्रिय फिल्म शोले नाम का स्पष्ट इस्तेमाल किसी वेबसाइट डोमेन नाम “www. sholay.com” के द्वारा किया जा रहा है और उसके द्वारा शोले नाम से कई उत्पाद भी बेचे जा रहे है। इसके बाद वादी द्वारा कानूनी उपाय के लिए अदालत का दरवाजा खटखटाया।
वादी द्वारा उच्च न्यायलय दिल्ली में इस ट्रेड मार्क उलंघन Trademark Infringement पर एक मुकदमा दायर किया गया।
मामला प्रतिवादियों की वेबसाइट से संबंधित है जिसका एक पंजीकृत डोमेन नाम “www. sholay.com” जो अब तक की सबसे सुपरहिट और लोकप्रिय फिल्म “शोले” के समान है।
वर्तमान वाद प्रस्तर 60(i) से (vi) के साथ-साथ 60(viii) और (ix) में मांगी गई राहत के संदर्भ में तय किया गया है। तदनुसार, प्रतिवादी, उनके निदेशक, भागीदार, मालिक और उनकी ओर से और उनकी ओर से काम करने वाले किसी भी व्यक्ति को किसी भी सामान और सेवाओं के संबंध में ‘शोले’ नाम का उपयोग करने और डोमेन नाम ‘शोले डॉट कॉम’ “www. sholay.com” का उपयोग करने और कोई भी फिल्म ‘शोले’ के संदर्भ में या उक्त फिल्म से किसी भी चित्र या क्लिपिंग का उपयोग करने के साथ-साथ माल बेचने से भी रोका जाए।
साथ ही साथ प्रतिवादी को इंटरनेट पर ‘शोले’ चिह्न/नाम के किसी भी बदलाव का उपयोग करने या स्रोत कोड में मेटाटैग के रूप में इस्तेमाल करने से भी रोका जाएगा।
वेबसाइट की तरफ से वकील ने तर्क दिया कि ट्रेडमार्क कानून के तहत फिल्मों को रजिस्टर्ड नहीं किया जा सकता, जिसे कोर्ट ने खारिज कर दिया।
वेबसाइट ने अपने बचाव में कहा कि –
शोले फिल्म के नाम पर बने एक डोमेन और मैगजीन के खिलाफ शोले मीडिया एंटरटेनमेंट प्राइवेट लिमिटेड की तरफ से ट्रेडमार्क उल्लंघन का ये मुकदमा दायर किया गया था। कंपनी ने आरोप लगाया कि ये वेबसाइट और मैगजीन अनाधिकृत तरीके से शोले फिल्म के नाम और इसके उत्पादों का इस्तेमाल कर रही है। वहीं, वेबसाइट की तरफ से तर्क दिया गया कि ‘शोले डॉट कॉम’ इंटरनेट पर एक वेबसाइट है, जिसका इस्तेमाल पढ़े-लिखे लोग करते हैं और इसलिए किसी भी तरह के भ्रम की आशंका नहीं है।
‘शोले’ आम शब्द नहीं “टाइटल कानून के अन्तगर्त संरक्षण के हकदार”-
न्यायमूर्ति प्रतिभा एम सिंह ने कहा, ‘ऐतिहासिक फिल्मों के टाइटल ‘ट्रेडमार्क कानून’ के तहत संरक्षण के हकदार हैं, क्योंकि ये टाइटल भारतीयों की पीढ़ियों में काफी ऊंचे हैं। इस फिल्म के कलाकार, डायलॉग, सेटिंग्स और बॉक्स ऑफिस कलेक्शन लीजेंडरी हैं। कुछ फिल्में साधारण शब्दों की सीमा को पार कर जाती हैं और इस फिल्म का टाइटल ‘शोले’ उन्हीं फिल्मों में से एक है।’
अदालत ने कहा की प्रतिवादियों द्वारा ‘शोले’ चिह्न को अपनाना स्पष्ट रूप से दुर्भावनापूर्ण और बेईमानी है, जिसका उल्लंघन करने वाले लोगो के उपयोग, डिजाइन, प्रतिवादी की वेबसाइट पर इस्तेमाल करना और फिल्म ‘शोले’ की डीवीडी की बिक्री आदि के प्रमुख कारण था।
कोर्ट ने वाद के प्रस्तर 60 (vi) में मांगी गई राहत के संदर्भ में, संबंधित डोमेन नाम Domain Name रजिस्ट्रार को निर्देश दिया जाता है कि वे उल्लंघनकारी डोमेन नामों को वर्तमान आदेश की प्राप्ति के एक सप्ताह के भीतर और सम्पूर्ण विवरण के साथ वादी को हस्तांतरित कर दें।
उच्च न्यायलय द्वारा Uflex Ltd. v. Government of Tamil Nadu & Ors. [Civil Appeal Nos.4862-4863 of 2021, decided on 17th September, 2021], के वाणिज्यिक मामलों में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा की गई टिप्पणियों को ध्यान में रखते हुए एक्चुअल कास्ट्स, लागत कास्ट्स और काउंसल की फीस आदि का निर्धारण किया है।
अतः न्यायालय आश्वस्त है कि यह वादी को लागत अधिनिर्णीत करने के लिए एक उपयुक्त मामला है। तदनुसार, वाद के प्रस्तर 60(ix) में मांगी गई राहत के संदर्भ में, वर्तमान वाद को लागत और क्षति के रूप में रु. 25,00,000/- की राशि के लिए निर्धारित किया जाता है।
कोर्ट ने कहा शोले फिल्म के निर्माताओं- शोले मीडिया एंड एंटरटेनमेंट प्राइवेट लिमिटेड और सिप्पी फिल्म्स प्राइवेट लिमिटेड- को 25 लाख रुपए देने होंगे। इसके लिए कोर्ट ने प्रतिवादी पक्ष को 3 महीने का समय दिया है।
अदालत ने प्रतिवादी पर लागत और नुकसान के रूप में 25 लाख रुपये की राशि लगाई। लागत और नुकसान की राशि वादी को तीन माह की अवधि में भुगतान किया जाए।
केस टाइटल – SHOLAY MEDIA ENTERTAINMENT AND ANR. v. YOGESH PATEL AND ORS.
केस नंबर – CS (COMM) 8/2016 & CRLM 1918/2002