देश के सर्वोच्च न्यायलय के दो माननीय न्यायमूर्तियों ने अपने ही सिस्टम पर सवाल उठाते हुए कुछ मुद्दों पर एतराज जताया है। ज्ञात हो कि कॉलेजियम सिस्टम का भारत के संविधान में कोई जिक्र नही है। यह 1998 को सुप्रीम कोर्ट के फैसलों के जरिए प्रभाव में आया था।
देश के सर्वोच्च न्यायलय के दो माननीय न्यायमूर्तियों ने अपने ही सिस्टम पर सवाल उठाते हुए कुछ मुद्दों पर एतराज जताया है। न्यायमूर्ति संजय किशन कौल और न्यायमूर्ति एएस ओका की बेंच ने कहा कि नए लिस्टिंग सिस्टम में मंगलवार, बुधवार और गुरुवार को सुनवाई का प्रावधान किया गया है। लेकिन ऐसे में उनके पास किसी भी मामले पर फैसला लेने के लिए बहुत कम समय बचता है। बेंच ने अपने आदेश में कहा कि कि दोपहर के सेशन में केसों की भरमार हो जाती है। ये बाते एक मामले की सुनवाई के दौरान बेंच ने ये बात कही।
न्यायमूर्ति कौल सुप्रीम कोर्ट को कोलोजियम के सदस्य भी हैं। हालांकि कॉलेजियम सिस्टम का भारत के संविधान में कोई जिक्र नही है। यह 1998 को सुप्रीम कोर्ट के फैसलों के जरिए प्रभाव में आया था। कॉलेजियम सिस्टम में सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस और सुप्रीम कोर्ट के 4 वरिष्ठ जजों का एक पैनल जजों की नियुक्ति और तबादले की सिफारिश करता है। कॉलेजियम की सिफारिश (दूसरी बार भेजने पर) मानना सरकार के लिए जरूरी होता है।
ज्ञात हो कि CJI न्यायमूर्ति यूयू ललित ने अपने पहले दिन 900 से अधिक याचिकाओं को सूचीबद्ध कराया था। इनमें हिजाब विवाद, सिद्दीकी कप्पन, गौतम नवलखा समेत कई मामले शामिल हैं। पहले रोस्टर के रूप में सीजेआई ने 15 बेंच में प्रत्येक को लगभग 60 मामले सौंपे। यानि कुल 900 मामले की सुनवाई होनी है।
इन याचिकाओं से निपटने के लिए सुबह 10.30 बजे से शाम 4 बजे तक अधिकतम 270 मिनट का समय मिलता है। नए सिस्टम में औसतन एक मामले को निपटाने में चार मिनट से थोड़ा अधिक समय मिल रहा है। जस्टिस एमआर शाह की अगुवाई वाली बेंच को सबसे ज्यादा 65 याचिकाएं सौंपी गई हैं।
न्यायमूर्ति संजय किशन कौल और न्यायमूर्ति एएस ओका की बेंच ने इसी बात पर एतराज जाहिर करते हुए कहा कि मुकदमों की भरमार से बेंच दब रही हैं। समय नहीं मिलेगा तो कैसे बेंच फैसला कर पाएंगी। नए सिस्टम में बिलकुल भी समय नहीं मिल पा रहा जो बेंच मामले की सुनवाई कर सकें।