किसी व्यक्ति को निशाना बनाए बिना, धमकाने के लिए बंदूक चलना, हत्या का प्रयास नहीं – हाई कोर्ट

किसी व्यक्ति को निशाना बनाए बिना, धमकाने के लिए बंदूक चलना, हत्या का प्रयास नहीं – हाई कोर्ट

राजस्थान उच्च न्यायालय जोधपुर ने फैसला सुनाया है कि किसी व्यक्ति को निशाना बनाए बिना, धमकाने के लिए बंदूक चलाने की घटना हत्या के प्रयास के रूप में योग्य नहीं है।

न्यायालय ने अपीलकर्ता के खिलाफ हत्या के प्रयास के आरोप तय करने को चुनौती देने वाली अपील पर सुनवाई करते हुए यह टिप्पणी की।

यह अपील विशेष न्यायाधीश, एससी/एसटी (अत्याचार निवारण) अधिनियम मामले, हनुमानगढ़ द्वारा आपराधिक विविध मामला संख्या 16/2023 में दिनांक 04.05.2023 को पारित आदेश के खिलाफ एससी/एसटी (अत्याचार निवारण) अधिनियम की धारा 14-ए के तहत है, जिसके तहत विशेष न्यायाधीश ने अपीलकर्ता के खिलाफ आईपीसी की धारा 307/149, 386/149 और एससी/एसटी (अत्याचार निवारण) अधिनियम की धारा 3(2)(वी) के तहत आरोप तय किए हैं।

न्यायमूर्ति बीरेंद्र कुमार की एकल पीठ ने कहा कि एफआईआर के अनुसार, अज्ञात बदमाशों ने एक व्यवसायी (लक्ष्य) से फिरौती मांगी और बाद में उसे नुकसान पहुंचाने के इरादे से उसकी दुकान पर गोलियां चलाईं।

हमले के दौरान लक्ष्य मौजूद नहीं था और गोलियों से केवल दुकान के शीशे के दरवाजे टूट गए। घटना की सूचना लक्ष्य के कर्मचारी (मुखबिर) ने पुलिस को दी।

अपीलकर्ता की ओर से अधिवक्ता निशांत मोत्सरा और राज्य की ओर से लोक अभियोजक (पीपी) सुरेंद्र बिश्नोई पेश हुए। अपीलकर्ता ने तर्क दिया कि हत्या के प्रयास के आरोप लागू नहीं हो सकते, क्योंकि किसी भी व्यक्ति को सीधे निशाना नहीं बनाया गया या उसे चोट नहीं पहुंचाई गई।

एकल न्यायाधीश ने कहा, “स्पष्ट रूप से, इस मामले के तथ्य और परिस्थितियों में एससी/एसटी (अत्याचार निवारण) अधिनियम के तहत अपराध नहीं बनता है, क्योंकि एससी/एसटी समुदाय के किसी सदस्य से न तो फिरौती मांगी गई थी और न ही एससी/एसटी समुदाय के किसी सदस्य पर गोली चलाई गई थी। इसलिए, उपरोक्त धारा के तहत अपराध नहीं बनता है। इस प्रकार, विद्वान ट्रायल जज ने न्यायिक दिमाग का उपयोग किए बिना यांत्रिक तरीके से आरोप तय किए हैं।”

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अदालत ने सहमति जताते हुए कहा, “धारा 307 आईपीसी के तहत अपराध नहीं बनता है… क्योंकि अभियोजन पक्ष का मामला यह है कि दुकान पर गोली चलाई गई और शीशे पर लगी और जिस व्यक्ति पर बंदूक से हमला किया जाना था, वह वहां मौजूद नहीं था। मुखबिर सहित किसी अन्य व्यक्ति की ओर इशारा करते हुए गोली नहीं चलाई गई थी। इसलिए, धारा 307/149 आईपीसी के तहत भी अपीलकर्ता के खिलाफ अपराध नहीं बनता है।”

परिणामस्वरूप, न्यायालय ने हत्या के प्रयास के आरोपों को खारिज कर दिया, तथा निचली अदालत को अपीलकर्ता के खिलाफ आरोपों की समीक्षा करने और उन्हें संशोधित करने का निर्देश दिया। “तदनुसार, अपीलकर्ता के खिलाफ धारा 307/149 आईपीसी तथा एससी/एसटी (अत्याचार निवारण) अधिनियम के प्रावधानों के तहत आरोप तय करने की सीमा तक विवादित निर्णय को खारिज किया जाता है। न्यायालय ने आदेश दिया कि धारा 386 के साथ धारा 149 आईपीसी के तहत सक्षम न्यायालय के समक्ष मुकदमा चलाया जा सकता है।”

वाद शीर्षक – जाकिर खा @ जाकिर हुसैन बनाम राजस्थान राज्य एवं अन्य।

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