इलाहाबाद हाईकोर्ट: संस्कृत के साथ सौतेली मां जैसा व्यवहार क्यों, अधिकारी मनमानी नहीं कर सकते-

Estimated read time 1 min read

इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने अपने एक अहम फैसले में संस्कृत भाषा और स्कूलों में संस्कृत अध्यापकों की भर्ती को लेकर बड़ी टिप्पणी की है। हाईकोर्ट ने कहा, ‘राज्य सरकार भारतीय सभ्यता की सबसे पुरानी भाषा संस्कृत के साथ सौतेली मां जैसा व्यवहार नहीं कर सकती। 

कल्याणकारी राज्य जिस पर भाषा के संरक्षण का दायित्व है, उसे अधिकारियों की मनमर्जी से संविदा पर संस्कृत अध्यापक रखने व हटाने की छूट नहीं दी जा सकती।

न्यायमूर्ति आरआर अग्रवाल ने बद्रीनाथ तिवारी की याचिका पर यह आदेश दिया। कोर्ट ने राज्य सरकार से तीन हफ्ते में जवाब मांगा है और याची को संविदा पर संस्कृत अध्यापक के रुप में कार्य करने देने का निर्देश दिया है।

2013 की नियमावली में संस्कृत अध्यापक का पद नहीं

उच्च न्यायालय ने आश्चर्य प्रकट करते हुए कहा कि नियमावली 2013 में डायट में संस्कृत अध्यापक का पद ही नहीं है। हिंदी अध्यापक संस्कृत पढ़ा रहे हैं। पद नहीं फिर भी नियमित नियुक्ति होने तक संस्कृत अध्यापक संविदा पर नियुक्त कर रहे हैं।

कोर्ट ने कहा कि सरकार को संस्कृत को सूची में शामिल कर संस्कृत अध्यापक का पद सृजित कर नियमित नियुक्ति करना चाहिए। कोर्ट ने सरकार को अपना जवाब 21 फरवरी तक दाखिल करने का निर्देश दिया है।

कोर्ट ने कहा कि संस्कृत विशिष्ट भाषा है। संस्कृत पढ़ाई जा रही है तो संस्कृत अध्यापक पद भी सृजित होना चाहिए।

ALSO READ -  लिंग पुनर्निर्धारण सर्जरी:इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने लिंग पुनर्निर्धारण के लिए नियम बनाने में राज्य सरकार द्वारा कोई कार्रवाई नहीं करने पर नाराजगी व्यक्त की

You May Also Like