केवल OBC-NCL प्रमाण पत्र जमा करने में हुई देरी के आधार पर उम्मीदवारी को खारिज नहीं किया जा सकता- केरल हाईकोर्ट

केवल OBC-NCL प्रमाण पत्र जमा करने में हुई देरी के आधार पर उम्मीदवारी को खारिज नहीं किया जा सकता- केरल हाईकोर्ट

विधिक अपडेट–

मामला- आईआईएसईआर बनाम डॉ स्मिता वीएस

केरल हाईकोर्ट ने आईआईएसईआर बनाम डॉ स्मिता वीएस में सुनवाई करते हुए कहा कि ओबीसी कैटेगरी के तहत उम्मीदवारी को केवल ओबीसी-एनसीएल प्रमाण पत्र जमा करने में हुई देरी के आधार पर खारिज नहीं किया जा सकता है।

जस्ट‌िस अलेक्जेंडर थॉमस और जस्ट‌िस के बाबू की पीठ ने कहा, यह केवल एक ऐसी स्थिति की ओर ले जाएगा, जहां भारत के संविधान के अनुच्छेद 14 और 16 के तहत उम्मीदवार को दिए गए अधिकारों और अवसरों का खुले तौर पर उल्लंघन होगा।

इस मामले में, उम्मीदवार पोस्‍ट ग्रेजुएट और केमेस्ट्री में पीएचडी है और सीएसआईआर में अनुसंधान सहयोगी के रूप में कार्यरत है। उसने आईआईएसईआर में अधिसूचित के पद के लिए आवेदन किया था। ओबीसी, नॉन-क्रीमी लेयर कैटेगरी के लिए आरक्षित पद के लिए आवेदन किया गया था।

उसकी उम्मीदवारी को इस आधार पर खारिज कर दिया गया कि उसने ऑनलाइन आवेदन के सथि संबंधित वित्तीय वर्ष के लिए नॉन-क्रीमी लेयर प्रमाणपत्र प्रस्तुत नहीं किया।

उसकी रिट याचिका को स्वीकार करते हुए, एकल पीठ ने आईआईएसईआर को प्रमाण पत्र स्वीकार करने और उसी पात्रा को स्वीकार करने निर्देश दिया, जो ओबीसी-एनसीएल कैटगरी से संबंधित है।

डिवीजन बेंच के समक्ष फैसले के खिलाफ आईआईएसईआर ने तर्क दिया कि उम्मीदवार आवेदन के साथ मौजूदा वित्तीय वर्ष के लिए आवश्यक ओबीसी-एनसीएल प्रमाण पत्र प्रस्तुत करने में विफल रही। वह तय अवधि में ओबीसी-एनसीएल प्रमाण पत्र जमा नहीं करने का कोई कारण बताने में भी विफल रही।

दूसरी ओर, उम्मीदवार ने तर्क दिया कि आवेदन के साथ ओबीसी-एनसीएल प्रमाण पत्र प्रस्तुत करने की आवश्यकता नहीं है और इसे बाद में प्रस्तुत किया जा सकता है।

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पीठ ने कहा कि ओबीसी-एनसीएल कैटेगरी के लिए एकमात्र रिक्ति के खिलाफ रैंक लिस्ट में उम्मीदवार को शामिल न करने का एकमात्र आधार आवेदन के साथ मौजूदा वित्तीय वर्ष के लिए नॉन-क्रीमी लेयर प्रमाणपत्र का न प्रस्तुत करना है।

“हमारा मानना है कि इस मामले के तथ्य और परिस्थितियों में ओबीसी कैटेगरी में प्रतिवादी की उम्मीदवारी को केवल प्रासंगिक अवधि में ओबीसी-एनसीएल प्रमाण पत्र जमा करने में हुई देरी के आधार पर अस्वीकार करने का परिणाम व्यापक शोध अनुभव प्राप्त, मेधावी उम्मीदवार को वस्तुतः बाहर करना होगा।

यह केवल एक ऐसी स्थिति को जन्म देगा, जहां भारत के संविधान के अनुच्छेद 14 और 16 के तहत प्रतिवादी को गारंटीकृत अधिकारों और अवसरों का खुले तौर पर उल्लंघन किया जाएगा।

हमने पहले ही नोट किया है कि उपरोक्त मानदंड, जो चयन प्रक्रिया को नियंत्रित करते हैं, आवेदन जमा करने की अंतिम तिथि से पहले उपरोक्त प्रमाण पत्र को पेश करने पर जोर न दें और उसके बाद उचित समय उपलब्ध है, जहां उम्मीदवार ने आवेदन में आरक्षण लाभ के लिए दावा किया है। इसलिए, की प्रतिवादी की ओबीसी-एनसीएल आरक्षित पद के लिए उम्मीदवारी की अस्वीकृति उपरोक्त मानदंडों का उल्लंघन है।

अदालत ने रिट अपील को खारिज करते हुए कहा कि एकमात्र ओबीसी-एनसीएल आरक्षित पद के लिए प्रतिवादी की उम्मीदवारी की अस्वीकृति और गैर-विचार, अवैध और अनुचित है और यह न्याय के गर्भपात के बराबर होगी।

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