इलाहाबाद उच्च न्यायालय के लखनऊ खंडपीठ ने पिछले हफ्ते यूपी सरकार को निर्देश दिया कि वह राज्य के सभी मुख्य चिकित्सा अधिकारियों (Chief Medical Officers) को एक सर्कुलर जारी करके चिकित्सा अधिकारियों को सीआरपीसी के प्रावधानों का सख्ती से पालन करने का निर्देश दे।
मा न्यायालय ने विशेष रूप से कहा कि सीआरपीसी की धारा 164 ए (2) और (3) के तहत मेडिकल रिपोर्ट और उनकी अस्थायी/ प्राथमिक राय (provisional/primary opinion) जमा करते समय सीआरपीसी के प्रावधानों का सख्ती से पालन हो।
सीआरपीसी की धारा 164 ए (2) यहां नीचे उद्धृत किया जा रहा है, इसके अंतर्गत-
Cr.P.C. की धारा 164 ए बलात्संग के शिकार हुए व्यक्ति की शारीरिक परीक्षा-
जहां ऐसे प्रक्रम के दौरान जब बलात्कार किया बलात्कार करने का प्रयत्न करने के अपराध अन्वेषण किया जा रहा है उस स्त्री के शरीर की जिसके साथ बला संख्या जाना पिया करने का प्रयत्न करना अभी कच्ची है किसी चिकित्सा विशेषज्ञ से परीक्षा कराना पर स्थापित है
वहां ऐसी परीक्षा सरकार या किसी स्थानीय प्राधिकारी द्वारा चलाए जा रहे किसी अस्पताल में नियोजित रजिस्ट्री कृत चिकित्सा व्यवसाई द्वारा और ऐसे व्यवसाई की अनुपस्थिति में किसी अन्य रजिस्ट्री कृत चिकित्सा व्यवसायी द्वारा
ऐसी स्त्री की सहमति से या उसकी ओर से ऐसी सहमति देने के लिए सक्षम व्यक्ति की सहमति से की जाएगी और ऐसी स्त्री को ऐसा अपराध किए जाने से संबंधित इतना प्राप्त होने के समय 24 घंटे के भीतर ऐसे रजिस्ट्री कृत चिकित्सा व्यवसायी के पास भेजा जाएगा
(2 )वह रजिस्ट्री का चिकित्सा व्यवसायी जिसके पास ss3 भेजी जाती है बिना किसी विलंब के उसके शरीर की परीक्षा करेगा और एक परीक्षा रिपोर्ट तैयार करके जिससे निम्नलिखित ब्यौरा दिए जाएंगे
- स्त्री का और उस व्यक्ति का जो उसे लाया है नाम और पता
- स्त्री की आयु
- डीएनए प्रोफाइल करने के लिए स्त्री के शरीर से ली गई सामग्री का वर्णन
- स्त्री के शरीर पर शक्ति के यदि कोई चिन्ह
- स्त्री की साधारण मानसिक दशा
- उचित ब्योरे सहित अन्य तात्विक विश्टिया
(3) रिपोर्ट में संक्षेप में वे कारण अभी लिखित किए जाएंगे जिनसे प्रत्येक निष्कर्ष निकाला गया है
(4) रिपोर्ट में विनिर्दिष्ट रूप से यह अभी लिखित किया जाएगा कि क्या ऐसी परीक्षा के लिए इस तरीके सहमति या उसकी ओर से सहमति देने के लिए सक्षम व्यक्ति की सहमति अभी प्राप्त कर ली गई है
(5) परीक्षा प्रारंभ और समाप्त करने का सही समय भी रिपोर्ट में अंकित किया जाएगा
(6) रजिस्ट्री कृत चिकित्सा व्यवसाई बिना विलंब के रिपोर्ट अन्वेषण अधिकारी को भेजेगा जो उसे धारा 173 में निर्दिष्ट मजिस्ट्रेट को उस धारा की उप धारा( 5) के खंड ( क)में निर्दिष्ट दस्तावेजों के रूप में भेजेगा
(7) इस धारा की किसी बात का अर्थ नहीं लगाया जाएगा कि वह स्त्री की सहमति के बिना या उसकी ओर से ऐसी सहमति देने के लिए सक्षम किसी व्यक्ति की सहमति के बिना किसी परीक्षा को विधि मान्य बनाती है।
न्यायमूर्ति मनीष कुमार की पीठ ने यह भी निर्देश दिया कि उत्तर प्रदेश राज्य के सभी जिलों के लिए निर्धारित प्रारूप जिस पर चिकित्सा अधिकारियों द्वारा मेडिकल रिपोर्ट दी जानी है, वह फॉर्मेट एक समान होगा। अदालत बलात्कार के एक आरोपी की जमानत याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिस पर अन्य बातों के साथ-साथ भारतीय दंड संहिता की धारा 363,धारा 342 और POCSO अधिनियम की धारा 3/4 के तहत मामला दर्ज किया गया है।
कोर्ट में जब जमानत की अर्जी पर कोर्ट में सुनवाई हुई तो कोर्ट ने रेप पीड़िता की मेडिकल रिपोर्ट पर गौर करने पर हैरानी जताई क्योंकि डॉक्टर ने रिपोर्ट में और कॉलम में प्रोविजनल/प्राइमरी मेडिकल ओपिनियन नाम से प्रासंगिक कुछ भी नहीं लिखा था। रिपोर्ट में केवल ऊंचाई और पीड़िता का वजन आदि लिखा हुआ था।
यह पूछे जाने पर कि प्राथमिकी में कथित अपराध के संबंध में डॉक्टर ने कोई अस्थायी राय क्यों नहीं दी, उसने द्वारा कहा गया कि पूरक रिपोर्ट प्राप्त करने के बाद ही राय दी जा सकती है, हालांकि, अदालत ने उक्त तर्क को स्वीकार नहीं किया।
न्यायालय ने कहा, “अस्थायी/प्राथमिक राय जांच रिपोर्ट की प्रतीक्षा किए बिना दी जानी है। जांच रिपोर्ट के बाद एक पूरक रिपोर्ट का पालन किया जाना है और यही कारण है कि अनंतिम/प्राथमिक राय का कॉलम पूरक रिपोर्ट से पहले है। अस्थायी/ प्राथमिक राय पीड़िता की नैदानिक जांच (clinical examination) के अनुसार दी जानी है।”
माननीय न्यायलय ने आगे कहा कि ज्यादातर मामलों में डॉक्टरों द्वारा अस्थायी राय हमेशा दी जाती है, जिन्होंने पीड़ितों की मेडिकल जांच की है और यह पहली बार है कि कोर्ट इस तरह की तुच्छ रिपोर्ट पर विचार कर रहा है।
इस पृष्ठभूमि में न्यायालय के वरिष्ठ रजिस्ट्रार को सीआरपीसी की धारा 164 ए का सख्ती से अनुपालन करने के इस आदेश को प्रधान सचिव (चिकित्सा स्वास्थ्य) और महानिदेशक (चिकित्सा स्वास्थ्य) को संप्रेषित करने का निर्देश दिया गया।
Case :- BAIL No. – 5999 of 2021
Satish Vs State of UP & oths