SUPREME COURT सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि आरोपी की निजी तलाशी के दौरान नशीला पदार्थ अधिनियम (Narcotic Drugs and Psychotropic Substances Act, 1985 ) की धारा 50 का पालन नहीं करने के कारण वाहन से हुई बरामदगी अमान्य नहीं हो जाती है।
न्यायमूर्ति यूयू ललित, न्यायमूर्ति इंदु मल्होत्रा और न्यायमूर्ति कृष्ण मुरारी की पीठ ने कहा कि NDPS ACT (नारकोटिक ड्रग्स एंड साइकोट्रॉपिक सब्स्टांसेस एक्ट, 1985) की धारा 50 सिर्फ निजी तलाशी तक सीमित है न कि वाहन या किसी कंटेनर परिसर की।
हाईकोर्ट ने आरोपी को किया था बरी इस मामले में हाईकोर्ट ने एनडीपीएस अधिनियम (NDPS ACT) के तहत एक आरोपी को दोषी ठहराए जाने के आदेश को इस आधार पर खारिज कर दिया कि आरोपी की निजी तलाशी मजिस्ट्रेट या किसी गजेटेड अधिकारी के समक्ष नहीं ली गई और इस तरह से धारा 50 के प्रावधानों का पालन नहीं हुआ।
पंजाब राज्य बनाम बलदेव सिंह (1999) 6 SCC 172 मामले में दाखिल अपील में राज्य ने कहा कि हो सकता है कि जहां तक आरोपी की तलाशी की बात है, हो सकता है कि धारा 50 का अतिक्रमण हुआ होगा पर वाहन से बरामदगी की बात एक स्वतंत्र मामला है जिस पर गौर किया जाना चाहिए। पीठ ने इस बात पर गौर किया… अगर किसी व्यक्ति के वाहन से नशीला पदार्थ बरामद होता है जो कि हो सकता है कि धारा 50 के अनुरूप नहीं हो; लेकिन वाहन की तलाशी से नशीला पदार्थ बरामद हुआ जिसकी स्वतंत्र रूप से जांच की जा सकती है तो क्या दोषी को इसलिए बरी किया जा सकता है, क्योंकि वाहन की तलाशी के दौरान हुई बरामदगी में धारा 50 की शर्तों का पालन नहीं हुआ?
पीठ ने कहा कि तलाशी के दौरान धारा 50 का उल्लंघन करते हुए उस व्यक्ति से प्रतिबंधित वस्तु बरामद हुई है तो गैरकानूनी ढंग से इस प्रतिबंधित नशीला पदार्थ रखने की बात को साक्ष्य के रूप में स्वीकार नहीं किया जा सकता।
पीठ ने पंजाब राज्य बनाम बलदेव सिंह (1999) 6 SCC 172 मामले में संविधान पीठ ने कहा, “अधिकारों से लैस एक अधिकारी का पूर्व सूचना के आधार पर तलाशी लेना और तलाशी से पहले उस व्यक्ति को उसके अधिकारों के बारे में यह नहीं बताना कि अगर वह चाहे तो उसे एक गजेटेड अधिकारी या मजिस्ट्रेट के पास तलाशी के लिए ले जाया जा सकता है। उससे मामले की कार्यवाही प्रभावित नहीं होगी पर इससे तलाशी में मिली नशीली वस्तु की बरामदगी संदेहास्पद हो जाएगी और आरोपी को दोषी ठहराए जाने की प्रक्रिया को उस स्थिति में प्रभावित करेगी, जिसमें दोषी ठहराने की बात सिर्फ उस वस्तु की बरामदगी पर निर्भर है, जिसमें धारा 50 के प्रावधानों का उल्लंघन हुआ है।”
पीठ ने यह भी कहा गया कि विजयसिंह चंदुभा जडेजा बनाम गुजात राज्य (2011) 1 SCC 609 मामले में एक अन्य संविधान पीठ ने कहा कि प्रावधान का पालन नहीं करने से तलाशी में बदामद की गई वस्तु की विश्वसनीयता संदिग्ध हो जाएगी और इससे आरोपी को दोषी ठहराने की प्रक्रिया प्रभावित होगी अगर इसकी रिकॉर्डिंग इस व्यक्ति की तलाशी के दौरान इस गैरकानूनी वस्तु की बरामदगी पर आधारित है।
पीठ ने कहा कि धारा 50 के प्रावधान ‘निजी तलाशी’ तक सीमित है न कि किसी वाहन या कंटेनर परिसर की तलाशी तक। इस सन्दर्भ में पीठ ने कहा, “वर्तमान मामले में आरोपी की निजी तलाशी में किसी भी तरह के नशीले पदार्थ की बरामदगी नहीं हुई और अगर इस तरह की किसी वस्तु की बरामदगी हुई भी तो अधिनियम की धारा 50 के प्रावधानों का पालन नहीं किये जाने के कारण इस पर विश्वास नहीं किया जा सकता, लेकिन वाहन की तलाशी के दौरान नशीली पदार्थ की बरामदगी और इसकी पुष्टि होना पर धारा 50 के प्रावधानों का पालन नहीं होने का लाभ तलाशी में मिली वस्तु की बरामदगी को अमान्य नहीं बना देगा…”
पीठ ने यह भी कहा कि दिलीप बनाम एमपी राज्य (2007) 1 SCC 450 मामले में सुप्रीम कोर्ट की एक खंडपीठ का फैसला सही नहीं है क्योंकि इस फैसले में आरोपी को इस आधार पर फ़ायदा पहुंचाया गया कि निजी तलाशी से संबंधित धारा 50 के प्रावधानों का पालन नहीं किया गया।
पीठ ने इसके बाद निचली अदालत के फैसले को दोबारा बहाल कर दिया और कहा कि वाहन से अफीम की 7 बोरियां बरामद हुईं और इनमें से प्रत्येक का वजन 34 किलो था। इस वाहन को आरोपी चला रहा था और अन्य आरोपी उसके साथ थे और बरामद हुई वस्तु के साथ इन लोगों का संबंध स्थापित हो चुका है।