इलाहाबाद हाई कोर्ट: बिना सुनवाई GST निर्धारित कर ब्याज सहित पेनाल्टी वसूलना, नैसर्गिक न्याय का उल्लघंन, लगाया 10 हजार का हर्जाना-

इलाहाबाद हाई कोर्ट: बिना सुनवाई GST निर्धारित कर ब्याज सहित पेनाल्टी वसूलना, नैसर्गिक न्याय का उल्लघंन, लगाया 10 हजार का हर्जाना-

Allahabad High Court इलाहाबाद हाईकोर्ट ने Goods and Service Tax के तहत टैक्स निर्धारण Tax Assessment और पेनाल्टी Penality लगाने से पहले सुनवाई का मौका न देने को नैसर्गिक न्याय का उल्लघंन माना है। साथ ही ब्याज सहित टैक्स और पेनाल्टी वसूली आदेश की रद्द कर दिया।

कोर्ट ने वाणिज्य विभाग Commertial Tax, बरेली को याची को सुनकर नए सिरे से आदेश पारित करने का निर्देश दिया है। कोर्ट ने टैक्स विभाग Tax Department के अधिकारियों के रवैए की आलोचना करते हुए 10 हजार रुपए का हर्जाना लगाया है।

उक्त निर्णय न्यायमूर्ति एसपी केसरवानी और न्यायमूर्ति जयंत बनर्जी की खंडपीठ ने भारत मिंट एंड एलाइड केमिकल्स की याचिका को स्वीकार करते हुए दिया है।

शक्तियों का प्रयोग कर हो सकती है याचिका की सुनवाई

इसके साथ ही इलाहाबाद उच्च न्यायलय ने अपने महत्वपूर्ण फैसले में कहा है कि नैसर्गिक न्याय के हनन के मामले में Article 226 अनुच्छेद 226 की अंतर्निहित शक्तियों का प्रयोग कर याचिका की सुनवाई की जा सकती है। भले ही आदेश के खिलाफ अपील दाखिल करने का वैकल्पिक उपचार प्राप्त हो। कोर्ट ने कहा कि उच्च न्यायलय वैकल्पिक उपचार उपलब्ध होने पर सुनवाई से इंकार भी कर सकती है। यह हर केस के तथ्यों पर निर्भर होगा। वैकल्पिक उपचार की उपलब्धता याचिका की पोषणीयता पर पूर्ण प्रतिबंध नहीं लगाती। कोर्ट ने कहा कि यह कोई बाध्यकारी नियम नहीं है, बल्कि कोर्ट का विवेकाधिकार है।

वसूली आदेश नैसर्गिक न्याय के खिलाफ

याची का कहना था कि बिना सुनवाई का मौका दिए वसूली आदेश नैसर्गिक न्याय के खिलाफ है। सरकार की तरफ से कहा गया कि याची को आदेश के खिलाफ अपील दाखिल करनी चाहिए थी। याचिका पोषणीय नहीं है। धारा 75(4) में स्पष्ट रूप से सुनवाई के लिखित अनुरोध पर या प्रतिकूल आदेश जारी करने से पहले सुनवाई का मौका दिया जाएगा। संयुक्त आयुक्त वाणिज्य कर विभाग ने जवाबी हलफनामे में कहा कि कर निर्धारण से पूर्व सुनवाई का मौका दिया जाना जरूरी नहीं है।
इस पर कोर्ट ने कहा कि कानून में साफ लिखा है और सुप्रीम कोर्ट ने भी सुनवाई करने का आदेश दिया है।

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कोर्ट का विवेकाधिकार

ऐसा प्रतीत होता है कि अधिकारियों ने कानून नहीं पढ़ा या Supreme Court सुप्रीम कोर्ट का आदेश भी समझ नहीं सके। सुप्रीम कोर्ट ने दर्जनों ऐसे मामलों का उल्लेख करते हुए कहा है कि वैकल्पिक उपचार उपलब्ध होने पर भी हाईकोर्ट अंतर्निहित शक्तियों का प्रयोग कर याचिका की सुनवाई कर सकता है। वैकल्पिक उपचार होने पर याचिका दाखिल करने पर पूर्ण रोक नहीं है। इसके कई अपवाद भी हैं। यह कोर्ट का विवेकाधिकार है।

केस टाइटल – Bharat Mint And Allied Chemicals Vs Commissioner Commercial Tax And 2 Others
केस नंबर – WRIT TAX No. – 1029 of 2021
कोरम – न्यायमूर्ति एसपी केसरवानी और न्यायमूर्ति जयंत बनर्जी

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