विवाह की गाँठ में सात जन्मों के बंधन की प्रतिज्ञा लेकर हमसफर बने एक युवा इंजीनियर दंपती का वैवाहिक जीवन मात्र एक साल में ही अलगाव की दिशा में मुड़ गया। विवाह के बाद दोनों में ऐसा वैचारिक टकराव हुआ कि पहले वे अलग रहने लगे और फिर अदालत के मध्यस्थता प्रयास भी विफल हो गए। मेडियशन विफल होने के बाद शीर्ष न्यायलय ने युवा दंपती के हितों को देखते हुए उन्हें वैवाहिक बंधन से मुक्त कर दिया।
विचाराधीन मामले में पत्नी का पति से वैचारिक विवाद था। यह विवाद धीरे-धीरे यह उस स्थिति तक पहुंच गया कि पत्नी अपना वैवाहिक घर छोड़ कर चली गई। पति की ओर से मनमुटाव दूर करने की कोशिश भी की गई, लेकिन उनके संबंधों में सुधार नहीं हुआ।
कोर्ट ने कहा साथ रहने की तनिक गुंजाइश नहीं बची-
न्यायमूर्ति बीवी नागरत्ना की एकल पीठ ने अपने आदेश में कहा है कि दंपती के बीच नजदीकियां बढ़ने और साथ रहने की तनिक भी गुंजाइश नहीं बची है। ऐसे में शीर्ष अदालत ने संविधान के अनुच्छेद-142 के तहत प्रदत्त शक्तियों का प्रयोग करते हुए पति-पत्नी को आपसी सहमति से विवाह विच्छेद की इजाजत दे दी।
तलाक का करार स्वीकार-
युवा दंपती को बंधन से मुक्त करने का फैसला लेने से पहले शीर्ष अदालत ने दोनों से निजी तौर पर अपना मत रखने के लिए भी कहा। दोनों के परिवार के बीच हुए करार और दोनों पक्षों की ओर से दायर संयुक्त आवेदन पर गौर करने के बाद अदालत ने कहा कि दोनों के बीच हुए करार की शर्तें पूरी तरह से कानूनन हैं। ऐसे में इस समझौते को स्वीकार नहीं करने का कोई कारण नहीं बनता।
करार के मुताबिक रूपये 20 लाख दिए गए-
करार के तहत पति की ओर से 20 लाख रुपये दिए गए। इसके साथ ही दोनों इस बात पर सहमत हो गए कि वे एक दूसरे के खिलाफ की गई शिकायतों/मुकदमे को वापस ले लेंगे। साथ ही दोनों ने कहा है कि वे भविष्य में एक-दूसरे के खिलाफ मुकदमे नहीं करेंगे।
वाद सुनवाई के दौरान पति की ओर से पेश वकील दुष्यंत पराशर ने पीठ से कहा कि दोनों पक्षों ने आपसी सहमति से अलग होने का निर्णय लिया है। उन्होंने पीठ से गुहार लगाई कि अदालत अपनी विशेष शक्ति (अनुछेद-142) का प्रयोग करते हुए तलाक को मंजूरी दे। युवा इंजीनियर दंपती की शादी दो दिसंबर 2015 को हुई थी और दोनों 15 जनवरी 2017 से अलग रहने लगे थे।