फर्जी जाति प्रमाण पत्र के आधार पर प्राप्त नौकरी ‘शुरू से ही शून्य’ माना जाएगा, हाईकोर्ट ने दिए अनिवार्य सेवानिवृत्ति के आदेश-

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मद्रास हाई कोर्ट Madras High Court ने अनुसूचित जाति Schedule Cast का फर्जी प्रमाणपत्र Fake Cast Certificate प्रस्तुत करके नौकरी पाने के मामले में एक कर्मचारी को अनिवार्य सेवानिवृत्ति देने और उसके पेंशन संबंधी लाभ में 60 फीसदी कटौती करने का निर्देश दिया। आरोपी चेन्नई के पास कलपक्कम स्थित इंदिरा गांधी परमाणु ऊर्जा केंद्र (IGCAR) का कर्मचारी है।

न्यायमूर्ति एस वैद्यनाथन और न्यायमूर्ति मोहम्मद शफीक की खंडपीठ ने बृहस्पतिवार को इंदिरा गांधी परमाणु ऊर्जा केंद्र (IGCAR) की एक रिट याचिका का निपटारा करते हुए वैज्ञानिक सहायक डी गणेशन के खिलाफ फैसला सुनाया।

गणेशन के खिलाफ आरोप था कि आयु अधिक होने पर उसने 1989 में खुद के अनुसूचित जाति समुदाय से होने का नकली प्रमाणपत्र पेश करके आईजीसीएआर में नौकरी हासिल कर ली। इस फर्जी प्रमाणपत्र से गणेशन को पांच साल की छूट मिल गई थी।

वर्ष 2012 में जब सच्चाई सामने आई तो उन्हें गिरफ्तार कर निलंबित कर दिया गया, लेकिन एक महीने के अंदर निलंबन वापस ले लिया गया। मामला जब केंद्रीय प्रशासनिक अधिकरण (कैट) के पास गया, तो उसने भी सितंबर 2013 में नरम रुख अपनाया, क्योंकि नियुक्त व्यक्ति ने तब तक 26 साल से अधिक की सेवा पूरी कर ली थी।

कोर्ट के सामने पेश दलीलें-

याचिकाकर्ता ने प्रस्तुत किया कि अनुशासनात्मक कार्यवाही और आपराधिक कार्यवाही एक साथ आगे बढ़ाई जा सकती है। नोएडा एंटरप्रेन्योर्स एसोसिएशन बनाम नोएडा और अन्य (2007), एम. पॉल एंथनी बनाम भारत गोल्ड माइन्स लिमिटेड, (1999) और जीएम-मानव संसाधन, भारत हेवी इलेक्ट्रिकल्स लिमिटेड बनाम सुरेश रामकृष्ण बर्दे (2007) मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर भरोसा रखा गया था। इसमें यह पाया गया है कि विभागीय कार्यवाही जारी रखी जा सकती है। याचिकाकर्ता ने आगे कहा कि ट्रिब्यूनल ओडिशा राज्य बनाम सुलेख चंद्र (2022) में सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर विचार करने में विफल रहा, जहां यह स्पष्ट रूप से माना गया था कि वैधानिक कार्यवाही के उल्लंघन में की गई नियुक्ति शुरू से ही शून्य है।

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योग्यता के आधार पर गणेशन ने पांच पदोन्नति हासिल की थी। यह भी पाया गया कि उसे प्रधानमंत्री की ओर से प्रशंसा प्रमाणपत्र हासिल था।

लेकिन सात साल के अंतराल के बाद आईजीसीएआर ने कैट के 2013 के आदेश को चुनौती देते हुए वर्तमान रिट याचिका दायर की। इस याचिका का निपटारा करते हुए पीठ ने पाया कि इस मामले में विभाग भी दोषी है, क्योंकि इसने कैट के आदेश को चुनौती देने में लगभग सात साल तक चुप्पी साधे रखी।

कोर्ट ने आगे कहा कि प्रतिवादी की प्रारंभिक नियुक्ति अपने आप में शुरू से ही शून्य है क्योंकि अगर वह एससी प्रमाणपत्र के माध्यम से मांगी गई 5 साल की छूट के लिए रोजगार के लिए आवेदन भी नहीं कर सकता था।

केस टाइटल – इंदिरा गांधी परमाणु अनुसंधान केंद्र बनाम डी गणेशलन और अन्य
केस नंबर – डब्ल्यू.पी नंबर 54 का 2020

कोरम – न्यायमूर्ति एस वैद्यनाथन और न्यायमूर्ति मोहम्मद शफीक

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