न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने कहा कि इस तरह के छोटे मुकदमों की वजह से सुप्रीम कोर्ट निष्प्रभावी होता जा रहा है। अब समय आ गया है कि हम एक कड़ा संदेश दें वरना चीजें मुश्किल हो जाएंगी।
न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने सनी देओल के एक डायलॉग ‘तारीख पे तारीख’ जो फिल्म ‘दामिनी’ का एक संवाद है को याद करते हुए कहा कि ये देश का सर्वोच्च न्यायालय है और हम चाहते हैं कि इस अदालत को कुछ सम्मान मिले।
सुप्रीम कोर्ट के अधिवक्ताओ के तरफ से बार-बार स्थगन की मांग पर नाराजगी जताते हुए न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़ ने कहा कि हम नहीं चाहते कि सर्वोच्च न्यायालय ‘तारीख पे तारीख’ वाली अदालत बने। उन्होंने वकीलों द्वारा मामलों को लंबा खींचने की प्रवृत्ति के संबंध में ये बात कही।
न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति हिमा कोहली ने एक मामले पर सुनवाई के दौरान उस वक्त नाराजगी व्यक्त की जब वकील ने मामले पर बहस करने के लिए और समय मांगा और कहा कि उन्होंने स्थगन के लिए एक पत्र भेजा है। इस पर पीठ ने कहा, हम मामले को स्थगित नहीं करेंगे। अधिक से अधिक हम बोर्ड के अंत में लिए जाने वाले मामले को पारित कर सकते हैं लेकिन आपको मामले पर बहस करनी होगी। हम नहीं चाहते कि सुप्रीम कोर्ट ‘तारीख पे तारीख’ कोर्ट बने।
पीठ ने कहा की हम इस धारणा को बदलना चाहते हैं।
एक हिंदू पुजारी की ओर से दीवानी अपील में पेश हुए वकील को जवाब देते हुए न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने फिल्म ‘दामिनी’ के एक संवाद को याद करते हुए कहा कि ये देश का सर्वोच्च न्यायालय है और हम चाहते हैं कि इस अदालत को कुछ सम्मान मिले।
पीठ ने कहा कि जहां न्यायाधीश अगले दिन की सुनवाई की तैयारी करते हुए आधी रात तक जगते हैं और मामले की फाइलों को ध्यान से देखते हैं, वहीं दूसरी तरफ वकील आते हैं और स्थगन की मांग करते हैं।
शीर्ष अदालत न मामले को पारित कर दिया और बाद में जब बहस करने वाले वकील मामले में पेश हुए तो पीठ ने अपील में हस्तक्षेप करने से इनकार करते हुए पुजारी को उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाने के लिए कहा।
कोर्ट ने एक अन्य मामले में न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली पीठ ने एक वकील के खिलाफ एक उच्च न्यायालय द्वारा की गई टिप्पणी को हटाने से इनकार कर दिया। उन्होंने कहा कि उच्च न्यायालय को अदालत कक्ष में अनुशासन बनाए रखना होगा और शीर्ष अदालत के लिए किसी के गलत आचरण की टिप्पणियों को हटाना उचित नहीं होगा।
संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत याचिका दायर करने पर पीठ नाराज हो गई और कहा कि इस याचिका में मांगी गई राहत नहीं दी जा सकती। अनुच्छेद 32 मौलिक अधिकारों को लागू कराने के लिए सर्वोच्च न्यायालय जाने के अधिकार से संबंधित है।