उपराष्ट्रपति धनखड़ ने कहा कि 2015-16 में संसद ने एनजेएसी अधिनियम पारित किया। सुप्रीम कोर्ट ने जब राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग कानून (एनजेएसी) को रद्द कर दिया। यह बहुत ही गंभीर मुद्दा था।
उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने कहा है कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग (National Judicial Appointments Commission) अधिनियम को रद्द किए जाने को लेकर संसद में ‘कोई चर्चा’ नहीं हुई और यह एक ‘‘बहुत गंभीर मसला” है। धनखड़ ने यह भी कहा कि संसद द्वारा पारित एक कानून, जो लोगों की इच्छा को दर्शाता है, उसे सुप्रीम कोर्ट ने ‘‘रद्द” कर दिया और ‘‘दुनिया को ऐसे किसी भी कदम के बारे में कोई जानकारी नहीं है।”
उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने जब राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग कानून (National Judicial Appointments Commission) को रद्द कर दिया तो संसद में इस पर कोई आवाज तक नहीं हुई, इसे लेकर मैं भौंचक था। यह बहुत ही गंभीर मुद्दा था। दुनिया में ऐसा कोई उदाहरण नहीं मिलता जहां लोगों की इच्छा को प्रतिध्वनित करने वाले संविधान के एक प्रावधान को इस तरह रद्द कर दिया गया हो।
धनखड़ ने मुख्य न्यायाधीश जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की मौजूदगी में शुक्रवार को लक्ष्मीमल्ल सिंघवी स्मृति व्याख्यान में बतौर मुख्य अतिथि कहा, संसद से बने कानून को, जो देश की जनता की इच्छा को दर्शाता था, सुप्रीम कोर्ट ने रद्द कर दिया।
उपराष्ट्रपति धनखड़ ने कहा कि 2015-16 में संसद ने एनजेएसी अधिनियम पारित किया। उन्होंने कहा, “हम भारत के लोग-उनकी इच्छा को संवैधानिक प्रावधान में बदल दिया गया। जनता की शक्ति, जो एक वैध मंच के माध्यम से व्यक्त की गई थी, उसे खत्म कर दिया गया। दुनिया ऐसे किसी कदम के बारे में नहीं जानती।” एनजेएसी (National Judicial Appointments Commission) अधिनियम में सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट के न्यायाधीशों की नियुक्ति की कॉलेजियम प्रणाली को पलटने का प्रावधान था, हालांकि शीर्ष अदालत ने इसे असंवैधानिक बताते हुए रद्द कर दिया था।
संसद ‘भारत के लोगों’ की इच्छा को प्रतिबिंबित करती है-
धनखड़ ने कहा, संविधान की प्रस्तावना में ‘हम भारत के लोग’ का उपयोग किया है, संसद ‘भारत के लोगों’ की इच्छा को प्रतिबिंबित करती है। इसके मायने हैं कि सत्ता लोगों, उनके विवेक और उनकी इच्छा में निहित है। धनखड़ ने कहा, एनजेएसी कानून पर लोकसभा ने एकमत से फैसला किया था, राज्यसभा में भी सर्वसम्मति से पारित हुआ। इस दौरान सिर्फ एक अनुपस्थिति थी। भारत के लोगों की इच्छा एक सांविधानिक प्रावधान में तब्दील हुई थी। लोगों की शक्ति, जो एक वैध मंच के जरिये सामने आई थी, उसे पलट दिया गया।
धनखड़ ने कहा, न्यायिक प्रबुद्ध वर्ग, विचारवान मस्तिष्क और बुद्धिजीवियों से अपील करता हूं, इस घटना के समानांतर पूरी दुनिया में कोई उदाहरण तलाशें जिसमें संविधान के प्रावधान को रद्द किया गया हो। धनखड़ ने शीर्ष कोर्ट की ओर से संविधान के मूल ढांचे के सिद्धांत का संदर्भ देते हुए कहा, हमने इसे भी मान लिया। पर, कानून के छात्र के रूप में सवाल यह है कि क्या संसद की स्वायत्तता से समझौता किया जा सकता है? क्या भविष्य की संसद अतीत की संसद के फैसले से बंधी रह सकती है?