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HC का ऐतिहासिक निर्णय: कोर्ट में सुनवाई के दौरान 22 साल बाद भी दी जा सकती है नाबालिग होने की दलील

इलाहाबाद उच्च न्यायलय लखनऊ पीठ ने आरोपी को उसकी वर्तमान आयु की जगह घटना के समय की आयु के आधार पर आरोपी पर मुकदमे की कार्रवाई के बारे में यह बड़ा फैसला दिया है। कोर्ट ने कहा की अगर किसी आरोपी के खिलाफ घटना के दो दशक बाद भी कोई केस खुलता है और अगर आरोपी घटना के समय में नाबालिग था, तो ऐसे में उस मामले की सुनवाई जुवेनाइल कोर्ट में होगी। वर्तमान उम्र और घटना में आरोप लगने के समय की उम्र को अलग-अलग देखा जाएगा। वर्तमान उम्र से आरोपी पर घटना को लेकर कोई सुनवाई नहीं होगी।

इलाहाबाद उच्च न्यायलय लखनऊ पीठ ने आरोपी को उसकी वर्तमान आयु की जगह घटना के समय की आयु के आधार पर आरोपी पर मुकदमे की कार्रवाई के बारे में यह बड़ा फैसला दिया है। इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने एक ऐतिहासिक फैसले में कहा है कि सुनवाई के दौरान 22 साल बाद भी नाबालिग होने की दलील दी जा सकती है। कोर्ट ने दहेज मृत्यु के समय 2000 में नाबालिग आरोपी युवती को मामले को किशोर न्याय बोर्ड में स्थानांतरित करने के लिए संबंधित अदालत के समक्ष याचिका दायर करने की अनुमति दे दी है।

न्यायमूर्ति श्री प्रकाश सिंह की बेंच ने फैसला सुनाते हुए कहा कि किशोर न्याय (बच्चों की देखभाल और संरक्षण) अधिनियम की धारा 7(A) के प्रावधानों में विधायिका की मंशा स्पष्ट है। यह अभियुक्त को घटना के समय नाबालिग होने के तर्क के आधार पर प्रीट्रायल, परीक्षण और अपील की अनुमति देती है। इस अवलोकन के साथ बेंच ने एक निचली अदालत के आदेश को रद्द कर दिया और याचिकाकर्ता से कहा कि वह उक्त अदालत में नाबालिग होने की अपनी याचिका दायर करे, जो अगले 45 दिनों के भीतर इस पर फैसला करेगी।

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बेंच ने हाल ही में याचिकाकर्ता की भाभी की याचिका पर फैसला सुनाते हुए यह आदेश पारित किया। इसमें आरोप लगाया गया था कि उसे वर्ष 2000 के दौरान मामले में फंसाया गया था, जब वह केवल 13 वर्ष की थी। सीतापुर के मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट (CJM) ने मामले में उसके खिलाफ गैर-जमानती वारंट जारी किया है। जब उसने मामले को JJB को स्थानांतरित करने की मांग की तो CJM ने यह कहते हुए याचिका खारिज कर दी कि याचिका 22 साल बाद आई है।

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