सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में एक वकील को प्रोफेशनल मिसकंडक्ट (घोर पेशेवर कदाचार) के लिए 5 साल के लिए विधि व्यवसाय से निलंबित करने के बार काउंसिल ऑफ इंडिया के फैसले को बरकरार रखा, क्योंकि यह पता चला था कि वकील ने संपत्ति से संबंधित मामले में अपने ही क्लाइंट से जनरल पावर ऑफ अटॉर्नी हासिल की थी और बाद में संपत्ति बेच दी।
न्यायमूर्ति अभय एस. ओक और न्यायमूर्ति पंकज मित्तल की पीठ बीसीआई के फैसले के खिलाफ एक अपील पर सुनवाई कर रही थी, जिसने पेशेवर कदाचार के कारण वकील को प्रैक्टिस से 5 साल के लिए निलंबित कर दिया था।
बार काउंसिल ने अनुशासनात्मक कार्रवाई इसलिए की गई क्योंकि उसने पाया कि यह पेशेवर घोर पेशेवर कदाचार का मामला है।
तथ्य-
मामला इस प्रकार से है कि अपीलकर्ता ने संपत्ति के संबंध में अपने ही मुवक्किल से जनरल पावर ऑफ अटॉर्नी ली, जो उस मुकदमे का विषय था जिसमें अपीलकर्ता अपने इस क्लाइंट का प्रतिनिधित्व कर रहा था। इसके अलावा अपीलकर्ता यह दिखाने के लिए कोई सबूत पेश नहीं कर सका कि उसके द्वारा प्राप्त प्रतिफल (consideration) का भुगतान उसके क्लाइंट को कर दिया गया।
अनुशासनात्मक समिति के समक्ष वकील का जवाब इस प्रकार था- “प्रतिवादी का कहना है कि वह रियल-एस्टेट एजेंट के रूप में संपत्तियों को बेचने और खरीदने के लिए रियल-एस्टेट के व्यवसाय के रूप में भी काम कर रहा था। इस प्रकार प्रतिवादी ने अपनी आधी साइट बेचने की व्यवस्था की और प्रतिफल राशि का भुगतान उसे नकद में किया और उसने संपत्ति की बिक्री के लिए प्रतिवादी को 2% कमीशन का भुगतान किया और यह एक वकील के रूप में नहीं, बल्कि रियल-एस्टेट एजेंट के रूप में किया गया।
सुप्रीम कोर्ट ने माना कि अपीलकर्ता के उपरोक्त बयान से पता चलता है कि वह एक वकील के रूप में प्रैक्टिस करते हुए एक रियल-एस्टेट एजेंट के रूप में काम कर रहा था जो कदाचार की श्रेणी में आता है।
कोर्ट ने कहा-
“अपीलकर्ता ने स्वयं एक मामला सामने रखा है कि एक वकील के रूप में प्रैक्टिस करते समय वह एक रियल एस्टेट एजेंट के रूप में संपत्तियों को बेचने और खरीदने का व्यवसाय भी कर रहा था। अपीलकर्ता ने यह भी कहा है कि उसके क्लाइंट के साथ लेनदेन एक रियल एस्टेट एजेंट के रूप में उसकी क्षमता से हुआ था। इस प्रकार, अपीलकर्ता द्वारा शपथ पर दिया गया बयान पहले से ही आक्षेपित आदेश द्वारा सिद्ध किए गए कदाचार के अलावा उसकी ओर से घोर पेशेवर कदाचार का मामला बनता है, इसलिए वकील को पांच साल के लिए विधि व्यवसाय से निलंबित करने का निर्देश पूरी तरह से उचित है।”