न्यूज ब्रॉडकास्टर्स एसोसिएशन (NBA) के बॉम्बे उच्च न्यायलय के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देने के मामले पर सुनवाई के दौरान सीजेआई डॉ डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि एनबीए और न्यूज ब्रॉडकास्टर्स फेडरेशन (NBF) दोनों में स्व-नियामक तंत्र बनाए जाने की प्रक्रिया चल रही है। उनको इस मामले में अपना जवाब दाखिल करने में समय लग रहा है। इसलिए उन्हें चार सप्ताह के बाद जवाब दाखिल करने का समय दिया जा रहा है। सुप्रीम कोर्ट में अब चार हफ्ते बाद इस मामले की सुनवाई होगी।
प्रस्तुत मामले पर सुनवाई के दौरान CJI डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि हमने पहले ही कहा है कि मीडिया के लिए स्व-नियमन होना चाहिए। इन दोनों संस्थाओं के प्रमुख जस्टिस एके सीकरी और जस्टिस आरवी रवीन्द्रन इस मुद्दे पर विचार कर रहे हैं। इस दौरान एनबीएफ की ओर से वरिष्ठ वकील महेश जेठमलानी ने कहा कि मुद्दा यह है कि 2021 में भारत सरकार ने नियमों में संशोधन किया था।
केंद्र सरकार की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा, “अभी तक केवल न्यूज ब्रॉडकास्टर्स फेडरेशन ही एक एसोसिएशन है, जिसने अपना रजिस्ट्रेशन कराया है, जबकि एनबीए ने रजिस्ट्रेशन करने से इनकार कर दिया था।
वहीं, एनबीए की ओर से पेश सीनियर वकील अरविंद दातार ने कहा कि इस मामले में हमने जस्टिस सीकरी और जस्टिस रवीन्द्रन से मुलाकात की है। उन्होंने कहा कि स्व-नियमन के लिए ही नियम बनाए जा रहे हैं। इसमें उन्हें चार हफ्ते का और समय लगेगा।
इस पर सीजेआई ने कहा कि उन लोगों का स्व-नियामक तंत्र पर जवाब आ जाने दें। हम पंजीकरण के मुद्दे पर बाद में विचार करेंगे। सीजेआई ने एनबीएफ से कहा कि आपके पास भी स्व-नियमन के नियम हैं, तो आप उन्हें हमारे पास दाखिल करें। अगर उन्हें सख्त करने की जरूरत होगी, तो हम देखेंगे।
सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि हमने एक हलफनामा दाखिल किया है, जिसमें कहा गया है कि वैधानिक विनियमन है कि संस्था का पंजीकरण होना चाहिए। इस पर सीजेआई ने कहा कि यदि आप खुद नियम बना रहे हैं, तो हम देख सकते हैं कि वे पर्याप्त रूप से सख्त और पारदर्शी हैं या नहीं? यदि ऐसा नहीं है तो हम भी नियम बना सकते हैं। हमारा विचार स्व-नियमन के प्रथम स्तर को मजबूत करना है। हम चाहते हैं कि अनुशासन या आत्म अनुशासन का भी एक स्तर होना चाहिए। फिर सॉलिसिटर जनरल ने आगे जोड़ते हुए कहा कि उनकी जवाबदेही भी होनी चाहिए।
सुप्रीम कोर्ट न्यूज ब्रॉडकास्टर्स एसोसिएशन (NBA) की उस अपील पर सुनवाई कर रहा है, जिसमें उसने बॉम्बे हाईकोर्ट के फैसले को चुनौती दी है। बॉम्बे हाईकोर्ट ने अपने फैसले में कहा था कि एनबीए के वैधानिक ढांचे में कोई शुचिता और पारदर्शिता नहीं है। इसको एनबीए ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है। पिछली सुनवाई में टीवी चैनलों की खबरों पर सुप्रीम कोर्ट ने सवाल उठाए थे।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि चैनलों के स्व-नियामक तंत्र को प्रभावी बनाना जरूरी है। जब आप लोगों की प्रतिष्ठा में हस्तक्षेप करते हैं, तो ये अपराध का अनुमान है। कुछ लोग हैं, जो संयम का पालन नहीं करते हैं। हम स्व-नियामक तंत्र को मजबूत करना चाहते हैं। चैनलों पर 1 लाख रुपये का जुर्माना लगाना प्रभावी नहीं। पिछले 15 साल से 1 लाख जुर्माने को बढ़ाने का विचार नहीं हुआ। ये जुर्माना शो से हुए लाभ पर आधारित होना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने न्यूज ब्रॉडकास्टर्स एसोसिएशन (NBA) से स्व-नियामक तंत्र को मजबूत करने के लिए सुझाव मांगे हैं।
मामले के सुनवाई के दौरान CJI डी वाई चंद्रचूड़ ने NBA से कहा-
आप कहते हैं कि टीवी चैनल आत्मसंयम बरतते हैं। पता नहीं अदालत में कितने लोग आपसे सहमत होंगे। सुशांत सिंह राजपूत मामले में हर कोई पागल हो गया कि क्या यह एक हत्या है। आपने जांच पहले ही शुरू कर दी। आप नहीं चाहते कि सरकार इस क्षेत्र में हस्तक्षेप करे। लेकिन स्व-नियामक तंत्र को प्रभावी बनाना होगा। चैनलों पर 1 लाख रुपये का जुर्माना लगाना, क्या प्रभावी है? यह 1 लाख जुर्माना कब तैयार किया गया था? पिछले 15 वर्षों में न्यूज ब्रॉडकास्टर्स एसोसिएशन (NBA) ने जुर्माना बढ़ाने पर विचार नहीं किया है? जुर्माना शो में उनके द्वारा कमाए गए लाभ के अनुपात में होना चाहिए। हम स्व-नियामक तंत्र रखने के लिए आपकी सराहना करते हैं, लेकिन इसे प्रभावी ढंग से प्रभावी होना चाहिए।