सर्वोच्च अदालत ने हत्या आरोपी को हाईकोर्ट के समक्ष अपील के अंतिम निपटान तक किया जमानत पर रिहा

सर्वोच्च अदालत ने हत्या आरोपी को हाईकोर्ट के समक्ष अपील के अंतिम निपटान तक किया जमानत पर रिहा

सुप्रीम कोर्ट ने 25 सितंबर के आदेश में कहा, वास्तव में, हाईकोर्ट को अपीलकर्ता को सीआरपीसी की 1973 की धारा 389 के तहत राहत देनी चाहिए थी।

सुप्रीम कोर्ट Supreme Court ने 25 सितंबर 2023 के आदेश में कहा, वास्तव में, हाईकोर्ट को अपीलकर्ता को सीआरपीसी की 1973 की धारा 389 के तहत राहत देनी चाहिए थी। इसलिए अपीलकर्ता (दिनेश) को हाईकोर्ट के समक्ष अपील के अंतिम निपटान तक जमानत पर रिहा किया जाता है।

सुप्रीम कोर्ट ने हत्या के मामले में निचली अदालत से सुनाई गई उम्रकैद की सजा को निलंबित करते हुए बॉम्बे हाईकोर्ट में अपील का निपटारा होने तक दोषी दिनेश उर्फ पॉल डैनियल खाजेकर को जमानत पर रिहा कर दिया। दिनेश को उसके व अन्य लोगों के बीच हाथापाई में एक व्यक्ति की मौत के मामले में 29 अक्तूबर, 2011 को गिरफ्तार किया गया था। तब उसकी उम्र 20 वर्ष थी।

दिनेश की ओर से पेश वकील सना रईस खान ने कहा कि अपीलकर्ता, जिसे कथित अपराध के लिए ट्रायल कोर्ट द्वारा आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई है, 11 साल तक जेल में रहा है और उसकी अपील पिछले छह वर्षों से हाई कोर्ट में लंबित है। .

उन्होंने तर्क दिया कि मामले में तीन इच्छुक चश्मदीद गवाह हैं और किसी भी स्वतंत्र गवाह से पूछताछ नहीं की गई, हालांकि अपराध कथित तौर पर सार्वजनिक स्थान पर हुआ था।

वकील सना रईस खान ने प्रस्तुत किया कि दो चश्मदीदों ने अपनी जिरह में बताया है कि जब वे घटनास्थल पर पहुंचे, तो उन्होंने मृतक को खून से लथपथ देखा, जो इस तथ्य को स्थापित करता है कि उन्होंने घटना नहीं देखी थी।

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अभियोजन पक्ष के अनुसार, तुषार मोरे की शिकायत पर 29 अक्टूबर, 2011 को एक प्राथमिकी दर्ज की गई थी कि पुणे में गणेश लॉटरी सेंटर में काम करने वाले उनके भाई तन्मय मोरे की कथित तौर पर दिनेश और अन्य के साथ झड़प में मौत हो गई थी।

न्यायमूर्ति अभय एस ओका और न्यायमूर्ति पंकज मित्थल की पीठ के समक्ष दिनेश के वकील सना रईस खान ने बताया कि अब उसकी उम्र 32 वर्ष है और उनकी अपील पिछले छह वर्षों से हाईकोर्ट में लंबित है। हाईकोर्ट ने 7 फरवरी के अपने आदेश में उनकी सजा को निलंबित करने से मना कर दिया था जिसके बाद उन्होंने शीर्ष अदालत का रुख किया। सुप्रीम कोर्ट ने 25 सितंबर के आदेश में कहा, वास्तव में, हाईकोर्ट को अपीलकर्ता को सीआरपीसी की 1973 की धारा 389 के तहत राहत देनी चाहिए थी।

सर्वोच्च अदालत ने अपीलकर्ता (दिनेश) को हाईकोर्ट के समक्ष अपील के अंतिम निपटान तक जमानत पर रिहा किया जाता है। शीर्ष अदालत ने खाजेकर को जमानत की औपचारिकताएं पूरी करने के लिए निचली अदालत के समक्ष पेश होने का निर्देश दिया और कहा कि उन्हें उचित नियमों और शर्तों पर जमानत दी जाएगी।

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