सुप्रीम कोर्ट Supreme Court में याचिका के साथ फर्जी कोर्ट आदेश किया गया पेश। सुप्रीम कोर्ट को संदेह हुआ कि ये आदेश फर्जी है, तुरंत कोर्ट ने आपराधिक जांच के आदेश दे दिए। कोर्ट ने कहा कि रजिस्ट्रार की से यह स्पष्ट है कि इस न्यायालय के आदेश की एक प्रति होने का दावा करने वाला दस्तावेज़, जिसे रिपोर्ट में अनुबंध-III द्वारा चिह्नित किया गया है, एक मनगढ़ंत दस्तावेज़ है। इसलिए, रजिस्ट्रार (न्यायिक सूची) को क्षेत्राधिकार वाले पुलिस स्टेशन में शिकायत दर्ज कर इसकी जांच की जानी चाहिए।
न्यायमूर्ति अभय एस ओका और न्यायमूर्ति पंकज मिथल की बेंच मामले की सुनवाई कर रही थी। न्यायमूर्ति अभय एस ओक और न्यायमूर्ति पंकल मिथल ने कहा, “(रजिस्ट्रार की) रिपोर्ट से यह स्पष्ट है कि इस न्यायालय के आदेश की एक प्रति होने का दावा करने वाला दस्तावेज, जिसे रिपोर्ट में एनेक्जर-III के जरिए मार्क किया गया है, एक मनगढ़ंत दस्तावेज़ है। इसलिए, रजिस्ट्रार (न्यायिक सूची) को संबंधित पुलिस स्टेशन में शिकायत दर्ज करके आपराधिक कानून को लागू करना चाहिए।”
मुद्दा एक स्पेशल लीव पिटिशन से संबंधित है जिसमें अनुलग्नक ए और बी में न्यायालय के 25 जुलाई, 2022 के दो आदेश शामिल थे, जो उसी पीठ द्वारा पारित किए गए थे। पहला आदेश बर्खास्तगी का था, लेकिन आश्चर्य की बात यह है कि दूसरा आदेश एसएलपी की अनुमति देने का था। यह भी ध्यान दिया जा सकता है कि न्यायालय के रिकॉर्ड के अनुसार, ये न्यायालय द्वारा खारिज कर दिया गया था।
जानकारी हो कि इस मामले को लेकर एक वादी द्वारा शिकायत दर्ज कराई गई थी। संबंधित दस्तावेजों पर गौर करने के बाद अदालत ने रजिस्ट्रार (न्यायिक) को इस पहलू की जांच करने और अदालत को एक रिपोर्ट सौंपने का निर्देश दिया।
रजिस्ट्रार द्वारा प्रस्तुत रिपोर्ट की जांच करने के बाद कोर्ट ने कहा कि ये स्पष्ट है कि याचिका के साथ पेश किया गया कोर्ट आदेश फर्जी है। कोर्ट ने ये भी दर्ज किया कि नोटिस जारी होने के बावजूद संबंधित वकील उपस्थित नहीं हुए। इसलिए कोर्ट ने कहा कि वकील द्वारा कथित तौर पर निभाई गई भूमिका की जांच करना जांच एजेंसी का काम है।
अंत में, न्यायालय ने उक्त मामले में समय पर जांच सुनिश्चित करने के लिए संबंधित पुलिस स्टेशन के प्रभारी अधिकारी को आदेश की तारीख से दो महीने की अवधि के भीतर जांच के बारे में एक रिपोर्ट पेश करने का भी निर्देश दिया।