अदालतों को यांत्रिक तरीके से और बिना कोई कारण बताए जमानत आदेश पर रोक लगाने से बचना चाहिए – सुप्रीम कोर्ट

Supreme Court order in bail case सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को कहा कि अदालतों को केवल असाधारण परिस्थितियों में ही जमानत आदेश पर रोक लगानी चाहिए।

जस्टिस अभय एस ओका और जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ ने दिल्ली हाईकोर्ट के उस आदेश को खारिज करते हुए यह बात कही, जिसमें धन शोधन (मनी लॉन्ड्रिंग) के एक मामले में एक आरोपी की जमानत पर रोक लगाई गई थी।

पीठ ने कहा, ‘हालांकि, अदालत के पास जमानत पर रोक लगाने का अधिकार है, लेकिन ऐसा केवल असाधारण परिस्थितियों में ही किया जाना चाहिए।’

पीठ ने कहा, ‘हालांकि, अदालत के पास जमानत पर रोक लगाने का अधिकार है, लेकिन ऐसा केवल असाधारण परिस्थितियों में ही किया जाना चाहिए।’ शीर्ष अदालत ने पहले कहा था कि अदालतों को बिना कोई कारण बताए जमानत आदेश पर रोक लगाने से बचना चाहिए।

शीर्ष अदालत ने पहले कहा था कि अदालतों को यांत्रिक तरीके से और बिना कोई कारण बताए जमानत आदेश पर रोक लगाने से बचना चाहिए। देश की सबसे बड़ी अदालत ने यह फैसला मनी लॉन्ड्रिंग के एक मामले में आरोपी परविंदर सिंह खुराना की याचिका पर सुनाया। खुराना ने अधीनस्थ अदालत द्वारा दिए गए जमानत आदेश पर अस्थायी रोक लगाने के दिल्ली हाई कोर्ट के फैसले को चुनौती दी थी।

खुराना को पिछले साल 17 जून को धन शोधन निवारण (संशोधन) अधिनियम के तहत दर्ज मामले में अधीनस्थ अदालत ने जमानत दे दी थी, लेकिन उच्च न्यायालय ने इस आदेश पर रोक लगा दी थी।

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सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के आदेश पर सात जून को रोक लगा दी थी और खुराना की जमानत बहाल कर दी थी।

उच्च न्यायालय के इस आदेश के खिलाफ आरोपी ने सुप्रीम कोर्ट में अपील दाखिल की थी। इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने उच्च न्यायालय के आदेश पर रोक लगाते हुए, आरोपी की जमानत को बहाल कर दिया था।

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