सुप्रीम कोर्ट संविधान पीठ ने चुनावी बांड योजना की वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं परपर फैसला अपना निर्णय सुरक्षित रखा

ईसीआई को 30 सितंबर तक पार्टियों को मिले फंड का डेटा जमा करने का निर्देश दिया

सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को चुनावी बांड योजना की वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया, जिसे पहली बार केंद्र सरकार ने मार्च 2018 में लाया था।

संविधान पीठ में भारत के मुख्य न्यायाधीश डॉ डी.वाई. चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति संजीव खन्ना, न्यायमूर्ति बी.आर. गवई, न्यायमूर्ति जे.बी. पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा ने लगातार तीन दिनों तक मामले की सुनवाई के बाद संविधान पीठ ने अपना फैसला सुरक्षित रख लिया।

इससे पहले दिन में, शीर्ष अदालत ने चुनावी बांड के माध्यम से सभी राजनीतिक दलों द्वारा प्राप्त धन के संबंध में डेटा नहीं होने के लिए भारत के चुनाव आयोग की आलोचना की और ईसीआई को 30 सितंबर तक इसे एकत्र करने और जमा करने का निर्देश दिया।

शीर्ष अदालत ने बताया कि 12 अप्रैल, 2019 को पारित अंतरिम आदेश के अनुसार, आयोग आज तक चुनावी बांड फंडिंग के डेटा को बनाए रखने के लिए बाध्य था।

ईसीआई की ओर से पेश होते हुए, अधिवक्ता अमित शर्मा ने शीर्ष अदालत को अवगत कराया कि चुनाव पैनल की धारणा थी कि अप्रैल 2019 का आदेश केवल 2019 के लोकसभा चुनावों के संबंध में जारी चुनावी बांड से संबंधित है।

हालांकि, शीर्ष अदालत ने इस दलील को खारिज कर दिया और कहा कि आदेश में स्पष्ट था कि डेटा लगातार एकत्र किया जाना चाहिए।

याचिकाएं एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर), भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) और कांग्रेस नेता डॉ जया ठाकुर द्वारा दायर की गई थीं।

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उन्होंने वित्त अधिनियम 2017 द्वारा पेश किए गए संशोधनों को चुनौती दी, जिसने चुनावी बांड योजना का मार्ग प्रशस्त किया। याचिकाकर्ताओं के अनुसार, चुनावी बांड से जुड़ी गुमनामी ने राजनीतिक फंडिंग में पारदर्शिता को प्रभावित किया और मतदाताओं के सूचना के अधिकार का उल्लंघन किया।

उन्होंने यह भी तर्क दिया कि इस योजना में शेल कंपनियों के माध्यम से योगदान करने की अनुमति दी गई है।

केस टाइटल – एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स एंड अन्य बनाम यूनियन ऑफ इंडिया एंड अन्य

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