सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि किसी पर चिल्लाना और धमकाना हमला करने के अपराध के बराबर नहीं माना जाता।
जस्टिस सुधांशु धूलिया और जस्टिस अहसानुद्दीन अमानुल्लाह की खंडपीठ ने एक मामले की सुनवाई की, जिसमें भारतीय खगोल भौतिकी संस्थान के कर्मचारी के खिलाफ भारतीय दंड संहिता IPC की धारा 353 (हमला) के तहत एफआईआर दर्ज की गई, क्योंकि उसने सेवा से बर्खास्तगी की फाइलों का निरीक्षण करते समय कैट के कर्मचारियों पर चिल्लाया और धमकाया था।
भारतीय दंड संहिता IPC की धारा 353 के तहत हमले को इस प्रकार परिभाषित किया गया-
“IPC 353 हमला – जो कोई भी ऐसा इशारा या कोई तैयारी करता है, जिसका उद्देश्य या यह जानना है कि ऐसा इशारा या तैयारी किसी भी उपस्थित व्यक्ति को यह आशंका दिलाएगी कि वह इशारा या तैयारी करने वाला व्यक्ति उस व्यक्ति पर आपराधिक बल का प्रयोग करने वाला है तो उसे हमला करने वाला कहा जाता है।”
न्यायालय ने टिप्पणी की, रिकॉर्ड पर पूरी शिकायत देखने के बाद न्यायालय ने कहा कि हाईकोर्ट ने एफआईआर रद्द करने से इनकार करके गलती की, क्योंकि मामले में आईपीसी की धारा 353 के तहत मारपीट के अपराध की कोई भी सामग्री पूरी नहीं हुई थी।
“उक्त शिकायत में अपीलकर्ता के खिलाफ एकमात्र आरोप यह है कि वह चिल्ला रहा था और कर्मचारियों को धमका रहा था। यह अपने आप में किसी भी तरह की मारपीट नहीं मानी जाएगी। हमारे विचार से हाईकोर्ट ने इस मामले में हस्तक्षेप न करके गलती की। यह ऐसा मामला है, जो कानून की प्रक्रिया का दुरुपयोग करने के अलावा और कुछ नहीं है। इसलिए न्याय के उद्देश्यों को पूरा करने के लिए हम इस अपील को स्वीकार करते हैं। अपीलकर्ता के खिलाफ शुरू की गई पूरी कार्यवाही को रद्द करते हैं।”
तदनुसार, अपील स्वीकार की गई।
वाद शीर्षक – के. धनंजय बनाम कैबिनेट सचिव और अन्य।