सुप्रीम कोर्ट ने आज कोलकाता CULCATTA के आर जी कर मेडिकल कॉलेज एवं अस्पताल RG KAR MEDICAL COLLEGE & HOSPITAL में एक डॉक्टर के साथ बलात्कार और हत्या के विरोध में गिरफ्तारी के बाद पुलिस हिरासत में एक महिला को कथित तौर पर प्रताड़ित करने के मामले की एसआईटी जांच का आदेश दिया।
यह देखते हुए कि हर चीज को CBI को नहीं सौंपा जा सकता, न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति उज्ज्वल भुइयां की पीठ ने कलकत्ता उच्च न्यायालय के उस आदेश को संशोधित किया, जिसमें CBI सीबीआई जांच का आदेश दिया गया था और कहा कि राज्य के वरिष्ठ आईपीएस अधिकारियों को जांच सौंपी जानी चाहिए।
सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि SIT, जिसमें राज्य द्वारा प्रस्तुत किए गए अधिकारियों के नाम शामिल होंगे, साप्ताहिक आधार पर उच्च न्यायालय को जांच की प्रगति पर अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत करेगी।
कलकत्ता उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश को एक विशेष पीठ गठित करने का निर्देश दिया गया, जिसके समक्ष एसआईटी SIT अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत करेगी और आगे की जांच की मांग करेगी।
ममता सरकार की याचिका पर चल रही सुनवाई-
इससे पहले 11 नवंबर को सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के 8 अक्टूबर के उस आदेश पर रोक लगा दी थी, जिसमें CBI जांच का निर्देश दिया गया था। कोर्ट ने ममता सरकार को आदेश दिया था कि वह कस्टडी में टॉर्चर मामले की जांच के लिए एक नई SIT के गठन के लिए पांच महिलाओं समेत सात IPS अधिकारियों की लिस्ट पेश करे।
याचिका पश्चिम बंगाल सरकार WEST BENGAL GOVERNMENT ने लगाई थी, जिसमें कहा गया था कि हाईकोर्ट ने गलत तरीके से CBI जांच का आदेश दिया था, जबकि राज्य पुलिस STATE POLICE जांच करने में सक्षम थी।
6 नवंबर को हाईकोर्ट की डिवीजन बेंच ने महिला के आरोपों की CBI जांच का निर्देश देने वाले सिंगल जज के आदेश को बरकरार रखा था। साथ ही कहा था- स्वतंत्र जांच के आदेश में कोई गलती नहीं। इसमें किसी हस्तक्षेप की जरूरत नहीं है।
जेल के डॉक्टर को महिला में मिले थे हेमाटोमा के लक्षण-
आरजी कर केस के खिलाफ प्रोटेस्ट में शामिल दो महिलाओं रेबेका खातून मोल्ला और रमा दास को 7 सितंबर को गिरफ्तार किया गया था। अगले दिन डायमंड हार्बर कोर्ट से ज्यूडीशियल कस्टडी मिलने का आदेश दिए जाने तक वे फाल्टा पुलिस की हिरासत में रहीं।
शुरुआत में, दो महिला याचिकाकर्ताओं ने पुलिस हिरासत में टॉर्चर का आरोप लगाते हुए सिंगल जज बेंच में याचिका लगाई थी। कोर्ट ने जेल के डॉक्टर की रिपोर्ट के आधार पर फैसला लिया था। रिपोर्ट में उनमें से एक के पैरों में हेमाटोमा HEMATOMA (ऊतकों के भीतर खून का थक्का जमने के बाद आई सूजन) के लक्षण मिले थे।
खंडपीठ ने आगे कहा कि डायमंड हार्बर उप-सुधार गृह के चिकित्सा अधिकारी की रिपोर्ट में दास के दोनों पैरों में हेमाटोमा बताया गया है, जबकि डायमंड हार्बर मेडिकल कॉलेज और अस्पताल के जांच करने वाले डॉक्टर ने कोई बाहरी चोट दर्ज नहीं की है। याचिकाकर्ता की बाद की मेडिकल रिपोर्टों पर विचार करते हुए, उच्च न्यायालय की पीठ ने कहा कि प्रथम दृष्टया यह विचार है कि उसे 7 सितंबर को पुलिस हिरासत में आघात पहुंचा था। इसने पाया कि विसंगतियां गंभीर थीं और एक स्वतंत्र एजेंसी द्वारा जांच की जानी चाहिए।
सुप्रीम कोर्ट डिवीजन बेंच ने कहा था- डायमंड हार्बर मेडिकल कॉलेज में जांच करने वाले डॉक्टर ने अपनी रिपोर्ट में कोई बाहरी चोट नहीं बताई। याचिकाकर्ता की बाद की मेडिकल रिपोर्टों को देखते हुए डिवीजन बेंच ने कहा था- रिपोर्ट में विसंगतियां गंभीर हैं। इसलिए स्वतंत्र एजेंसी मामले की जांच करे।
साथ ही साथ पीठ ने कहा कि स्वतंत्र जांच करने के एकल न्यायाधीश के आदेश में कोई गलती नहीं है और इसमें किसी भी हस्तक्षेप की आवश्यकता नहीं है।