सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव नियम संशोधन के खिलाफ नई याचिका पर केंद्र और चुनाव आयोग से जवाब मांगा

सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव नियम संशोधन के खिलाफ नई याचिका पर केंद्र और चुनाव आयोग से जवाब मांगा

सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को चुनाव आचरण नियम, 1961 में हालिया संशोधनों को चुनौती देने वाली याचिका पर केंद्र सरकार और चुनाव आयोग (ECI) को नोटिस जारी किया। इस संशोधन के तहत चुनाव संबंधी अभिलेखों और इलेक्ट्रॉनिक दस्तावेजों की सार्वजनिक पहुंच पर प्रतिबंध लगाया गया है।

संशोधन पर विवाद: सूचना के अधिकार पर अंकुश?

नए संशोधन के तहत CCTV Footage सीसीटीवी फुटेज, वेबकास्टिंग रिकॉर्डिंग और उम्मीदवारों से संबंधित वीडियो फुटेज सहित कई महत्वपूर्ण दस्तावेजों को सार्वजनिक निरीक्षण से बाहर कर दिया गया है। इस संशोधन को चुनौती देने वाली याचिका सूचना अधिकार (RTI) कार्यकर्ता अंजलि भारद्वाज ने दायर की, जिसमें 2024 लोकसभा चुनाव से संबंधित विभिन्न अभिलेखों, विशेष रूप से फॉर्म 17C पार्ट- I की प्रतियां प्राप्त करने की मांग की गई है।

सुप्रीम कोर्ट ने जयराम रमेश की याचिका के साथ मामले को टैग किया

भारत के मुख्य न्यायाधीश CJI संजीव खन्ना और न्यायमूर्ति संजय कुमार की पीठ ने इस मामले को कांग्रेस नेता जयराम रमेश द्वारा दायर इसी प्रकार की याचिका के साथ संलग्न कर दिया और मामले की सुनवाई 17 मार्च से शुरू होने वाले सप्ताह में तय कर दी।

चुनाव आचरण नियम, 1961 में संशोधन: पारदर्शिता पर असर?

केंद्र सरकार ने चुनाव आयोग की सिफारिशों के आधार पर हाल ही में नियम 93 में संशोधन किया, जिसके तहत चुनावी अभिलेखों की सार्वजनिक पहुंच सीमित कर दी गई है। नए संशोधन के तहत केवल उन्हीं “दस्तावेज़ों” तक पहुंच दी जाएगी जो नियमों में स्पष्ट रूप से निर्दिष्ट हैं, जिससे कई महत्वपूर्ण चुनावी रिकॉर्ड जनता की पहुंच से बाहर हो गए हैं।

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याचिका में तर्क दिया गया कि संशोधित नियम 93(2)(a)** मतदाताओं के सूचना के मौलिक अधिकार पर अनुचित प्रतिबंध लगाता है क्योंकि यह उन अभिलेखों को भी गोपनीय कर देता है जो पहले सार्वजनिक निरीक्षण के लिए उपलब्ध थे।

चुनावी पारदर्शिता और लोकतंत्र पर प्रभाव

याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि चुनाव प्रक्रिया के दौरान कई महत्वपूर्ण अभिलेख और दस्तावेज़ बनाए जाते हैं, जैसे—

✔ फोटोग्राफी, वीडियोग्राफी और सीसीटीवी फुटेज
✔ प्रेसाइडिंग ऑफिसर की डायरी
✔ रिटर्निंग ऑफिसर की रिपोर्ट

इन अभिलेखों में महत्वपूर्ण जानकारी होती है, जैसे—

🔹 हर दो घंटे में डाले गए मतों की संख्या
🔹 मतदान केंद्र पर मतदान समाप्ति के समय मौजूद मतदाताओं की संख्या
🔹 किसी भी व्यवधान या मतदान में बाधा की जानकारी

संशोधन से पहले, इन दस्तावेजों की सार्वजनिक पहुंच पर कोई प्रतिबंध नहीं था। याचिका में कहा गया कि यह संशोधन संविधान के अनुच्छेद 19(1)(a) के तहत प्रदत्त नागरिकों के सूचना के मौलिक अधिकार का उल्लंघन करता है, जिसे सुप्रीम कोर्ट ने कई फैसलों में बरकरार रखा है, विशेष रूप से चुनाव प्रक्रिया की पारदर्शिता से जुड़े मामलों में।

सुप्रीम कोर्ट की संभावित भूमिका

सुप्रीम कोर्ट के इस मामले की सुनवाई के दौरान यह तय किया जाएगा कि क्या चुनाव आयोग और केंद्र सरकार का यह संशोधन लोकतंत्र और चुनावी पारदर्शिता के मूल सिद्धांतों के अनुरूप है या नहीं। यदि अदालत इस संशोधन को असंवैधानिक पाती है, तो यह एक ऐतिहासिक फैसला होगा, जो मतदाताओं के सूचना के अधिकार को पुनः स्थापित करेगा।

सुप्रीम कोर्ट के इस मामले में आगे की सुनवाई लोकतांत्रिक मूल्यों और पारदर्शी चुनाव प्रणाली के लिए महत्वपूर्ण साबित हो सकती है। यदि संशोधन को चुनौती सफल होती है, तो चुनावी प्रक्रिया में पारदर्शिता और जवाबदेही बढ़ेगी।

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