नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने गोंडा जिले में दर्ज एक आपराधिक मामले में ट्रायल कोर्ट की कार्यवाही पर रोक लगा दी, यह टिप्पणी करते हुए कि केवल आरोपपत्र (चार्जशीट) दाखिल हो जाने के आधार पर याचिका खारिज करना हाईकोर्ट की त्रुटि थी।
न्यायमूर्ति बी.आर. गवई और न्यायमूर्ति ए.जी. मसीह की पीठ ने स्पष्ट किया कि केवल चार्जशीट दाखिल हो जाने से हाईकोर्ट की धारा 482, दंड प्रक्रिया संहिता (Cr.P.C.) के तहत न्यायिक अधिकार क्षेत्र समाप्त नहीं हो जाता।
चार्जशीट के बावजूद हाईकोर्ट को करना होगा मूल्यांकन
न्यायालय ने पुनः दोहराया कि चार्जशीट दाखिल होने के बाद भी हाईकोर्ट को यह आकलन करना आवश्यक है कि क्या आरोपी के खिलाफ प्रथम दृष्टया कोई मामला बनता है या नहीं।
“केवल चार्जशीट दाखिल होने को आधार बनाकर धारा 482 Cr.P.C. के तहत क्षेत्राधिकार के प्रयोग से इनकार नहीं किया जा सकता। चार्जशीट दाखिल होने के बाद भी हाईकोर्ट से अपेक्षा की जाती है कि वह यह देखे कि प्रथम दृष्टया मामला बनता है या नहीं,” पीठ ने टिप्पणी की।
याचिकाकर्ता के अधिवक्ता की दलीलें और सुप्रीम कोर्ट का आदेश
इस मामले में याचिकाकर्ता की ओर से एओआर दिव्येश प्रताप सिंह पेश हुए।
सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में कहा, “हम इस निष्कर्ष पर पहुंचे हैं कि हाईकोर्ट ने अपने निहित अधिकार क्षेत्र का प्रयोग करने में पूर्ण रूप से विफलता दिखाई है।”
नोटिस जारी, ट्रायल कोर्ट की कार्यवाही पर रोक
सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश सरकार और अन्य प्रतिवादियों को नोटिस जारी किया, जो चार सप्ताह के भीतर प्रत्युत्तर दाखिल करने योग्य होगा। साथ ही, याचिकाकर्ता को स्थायी वकील (Standing Counsel) के माध्यम से नोटिस की सेवा की स्वतंत्रता दी गई। इसके अतिरिक्त, डस्ती सेवा (Dasti Service) की भी अनुमति दी गई।
सुप्रीम कोर्ट ने अंतरिम राहत देते हुए याचिकाकर्ता के खिलाफ ट्रायल कोर्ट में लंबित कार्यवाही पर अगले आदेश तक रोक लगा दी।
“अंतरिम आदेश के रूप में, ट्रायल कोर्ट में याचिकाकर्ता के खिलाफ आगे की कार्यवाही पर अगले आदेश तक रोक लगाई जाती है। यह रोक गोंडा जिले के कोतवाली सिटी थाना में दर्ज अपराध संख्या 0027/2023 से संबंधित मामले पर लागू होगी,” अदालत ने आदेश दिया।
हाईकोर्ट के आदेश पर सुप्रीम कोर्ट की आपत्ति
यह उल्लेखनीय है कि इलाहाबाद हाईकोर्ट ने राज्य सरकार की इस दलील के आधार पर याचिका खारिज कर दी थी कि मामले में चार्जशीट दाखिल की जा चुकी है। हालांकि, हाईकोर्ट ने यह भी कहा था कि “याचिकाकर्ता को चार्जशीट को चुनौती देने या कानून के अनुसार उपयुक्त उपाय अपनाने का अधिकार सुरक्षित रहेगा।”
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