इलाहाबाद हाईकोर्ट ने ‘जेठ मेला’ पर अंतरिम आदेश में धार्मिक गतिविधियों की अनुमति दी, पर पूर्ण मेले की इजाजत से इनकार

इलाहाबाद हाईकोर्ट

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने ‘जेठ मेला’ पर अंतरिम आदेश में धार्मिक गतिविधियों की अनुमति दी, पर पूर्ण मेले की इजाजत से इनकार

इलाहाबाद हाईकोर्ट लखनऊ बेंच ने शनिवार को एक विशेष सुनवाई में उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा बहराइच जिले स्थित सैयद सालार मसूद गाज़ी दरगाह पर आयोजित होने वाले पारंपरिक ‘जेठ मेला’ की अनुमति न दिए जाने को लेकर हस्तक्षेप से फ़िलहाल इनकार कर दिया है।

मुख्य न्यायाधीश अताउ रहमान मसूदी और न्यायमूर्ति सुभाष विद्यार्थी की खंडपीठ ने अंतरिम आदेश पारित करते हुए दरगाह परिसर में अनुष्ठानिक धार्मिक गतिविधियों के निर्विघ्न संचालन की अनुमति दी और राज्य सरकार को निर्देश दिया कि वह दरगाह प्रबंधन समिति के साथ समन्वय स्थापित कर कानून-व्यवस्था बनाए रखने तथा आवश्यक नागरिक सुविधाएं प्रदान करने में सहयोग करे।

कोर्ट ने स्पष्ट किया कि राज्य सरकार ने इस सीमित धार्मिक गतिविधि पर कोई आपत्ति नहीं जताई है।


⚖️ श्रद्धालुओं की सुरक्षा सर्वोपरि: कोर्ट की हिदायत

पीठ ने आगे निर्देश दिया कि दरगाह समिति यह सुनिश्चित करे कि श्रद्धालुओं की आवाजाही “मध्यम” स्तर पर रहे, ताकि भीड़-भाड़, भगदड़ अथवा अन्य अवांछनीय घटनाओं की आशंका से बचा जा सके। न्यायालय ने यह भी कहा कि बड़े स्तर पर धार्मिक जनसमूह एकत्रित होने की स्थिति में प्रशासनिक कठिनाइयों और सुरक्षा जोखिमों से इनकार नहीं किया जा सकता।


🧾 याचिकाओं पर अंतिम निर्णय सुरक्षित

कोर्ट ने यह आदेश दरगाह शरीफ, बहराइच की प्रबंधन समिति सहित अन्य याचिकाकर्ताओं द्वारा राज्य सरकार के निर्णय को चुनौती देते हुए दायर याचिकाओं पर अंतिम निर्णय सुरक्षित रखते हुए पारित किया है।


🧩 विवाद की पृष्ठभूमि

याचिकाकर्ताओं की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता लालता प्रसाद मिश्रा ने तर्क दिया कि ‘जेठ मेला’ सदियों पुरानी धार्मिक-सांस्कृतिक परंपरा का हिस्सा है और वर्ष 1987 से राज्य द्वारा अधिसूचित मेला के रूप में मान्यता प्राप्त है। उन्होंने कहा कि यह आयोजन हिंदू और मुस्लिम दोनों समुदायों के लाखों श्रद्धालुओं की आस्था से जुड़ा है।

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मिश्रा ने यह भी तर्क दिया कि प्रशासन द्वारा उद्धृत कानून-व्यवस्था संबंधी आपत्तियाँ निराधार हैं, क्योंकि सार्वजनिक शांति बनाए रखना स्वयं प्रशासन का संवैधानिक दायित्व है।


📍 दरगाह समिति ने मांगी थी समन्वय बैठक, नहीं मांगी थी अनुमति

एक अहम तथ्य के रूप में न्यायालय को अवगत कराया गया कि दरगाह समिति ने जिला प्रशासन से मेला आयोजन हेतु कोई औपचारिक अनुमति नहीं मांगी थी, बल्कि अधिकारियों के साथ संयुक्त बैठक आयोजित कर आयोजन की योजना बनाने का सिर्फ अनुरोध किया गया था

याचिकाकर्ताओं ने यह भी उल्लेख किया कि बलरामपुर जिले में देवीपाटन मेला हाल ही में प्रशासन के सहयोग से शांतिपूर्वक सम्पन्न हुआ, जिसमें स्वयं मुख्यमंत्री ने भाग लिया था।


🏛️ राज्य सरकार की दलीलें

राज्य की ओर से प्रस्तुत जवाब में कहा गया कि दरगाह समिति ने 2025 के मेले हेतु कुछ आवश्यक व्यवस्थाओं को लेकर प्रशासन को पत्र भेजा था, जिसके आधार पर स्थानीय खुफिया इकाई सहित संबंधित एजेंसियों से रिपोर्ट प्राप्त की गई।

इन गोपनीय रिपोर्टों में सार्वजनिक व्यवस्था भंग होने की गंभीर आशंका व्यक्त की गई थी, जिसके आधार पर राज्य ने मेले की अनुमति देने से इनकार किया। प्रशासन का कहना है कि एक महीने के भीतर सुरक्षित व पूर्ण व्यवस्था संभव नहीं है

राज्य ने यह भी स्पष्ट किया कि दरगाह परिसर में धार्मिक अनुष्ठानों या पूजा-पाठ पर कोई प्रतिबंध नहीं लगाया गया है, बल्कि भीड़ नियंत्रण व सुरक्षा के लिहाज से सिर्फ समुचित प्रतिबंध लगाए गए हैं, जिससे कोई संवैधानिक अधिकार प्रभावित नहीं होता


🔎 महत्वपूर्ण संवैधानिक प्रश्न

न्यायालय ने पिछली सुनवाई में इस मामले से जुड़े संवैधानिक प्रश्नों को रेखांकित किया था, विशेष रूप से यह कि क्या जिलाधिकारी के पास धार्मिक मेलों में हस्तक्षेप करने अथवा अनुमति देने से इनकार करने का वैधानिक अधिकार है?

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इन प्रश्नों के उत्तर आने वाले विस्तृत निर्णय में निर्धारित होंगे।

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