‘गिरफ्तारी वारंट ही पर्याप्त आधार है’: सुप्रीम कोर्ट ने अनुच्छेद 22(1) की व्याख्या करते हुए अहम निर्णय सुनाया

सुप्रीम कोर्ट

‘गिरफ्तारी वारंट ही पर्याप्त आधार है’: सुप्रीम कोर्ट ने अनुच्छेद 22(1) की व्याख्या करते हुए अहम निर्णय सुनाया

सुप्रीम कोर्ट ने गिरफ्तारी से संबंधित संवैधानिक प्रावधानों की व्याख्या करते हुए सोमवार को एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है।

न्यायमूर्ति जे.बी. पारदीवाला और न्यायमूर्ति आर. महादेवन की खंडपीठ ने स्पष्ट किया कि यदि गिरफ्तारी विधिवत न्यायालय द्वारा जारी किए गए वारंट पर आधारित है, तो पुलिस को गिरफ्तारी के लिए कोई अतिरिक्त कारण बताने की संवैधानिक आवश्यकता नहीं है


क्या कहा सुप्रीम कोर्ट ने?

कोर्ट ने कहा:

यदि गिरफ्तारी वारंट के आधार पर होती है और आरोपी को वारंट पढ़कर सुनाया जाता है, तो यह अनुच्छेद 22(1) के तहत गिरफ्तारी के आधार बताने की संवैधानिक आवश्यकता की पूर्ति करता है।

यदि गिरफ्तारी वारंट के बिना होती है, तब संबंधित व्यक्ति को यह बताना अनिवार्य है कि उसे किस अपराध के लिए हिरासत में लिया जा रहा है।”


मामले की पृष्ठभूमि

इस फैसले की पृष्ठभूमि में एक याचिका थी, जिसमें एक व्यक्ति ने अपने बेटे की गिरफ्तारी को अवैध बताते हुए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था।

  • याचिकाकर्ता ने दावा किया कि गिरफ्तारी के समय उसके बेटे को उचित कारण नहीं बताया गया, जिससे संविधान के अनुच्छेद 22(1) का उल्लंघन हुआ है।
  • ट्रायल कोर्ट और हाईकोर्ट ने याचिका को खारिज कर दिया था, जिसके बाद मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा।

संविधान का अनुच्छेद 22(1) क्या कहता है?

अनुच्छेद 22(1) के अनुसार:

“किसी भी व्यक्ति को गिरफ्तार किए जाने के समय उसे उसकी गिरफ्तारी के कारणों की जानकारी दी जानी चाहिए और उसे वकील रखने व परामर्श लेने का अधिकार प्राप्त है।”


सुप्रीम कोर्ट की व्याख्या का महत्व

  • कोर्ट ने कहा कि वारंट स्वयं में एक विधिक दस्तावेज है, जो न्यायिक संतुलन और गिरफ्तारी की वैधता को प्रमाणित करता है।
  • अतः यदि वारंट के अनुसार गिरफ्तारी होती है और उसे पढ़कर सुनाया जाता है, तो गिरफ्तारी का कारण बताने की अलग से आवश्यकता नहीं है।
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विहान कुमार बनाम हरियाणा राज्य में जस्टिस अभय एस ओक के माध्यम से न्यायालय ने कहा था:

“इसलिए जब किसी व्यक्ति को बिना वारंट के गिरफ्तार किया जाता है और गिरफ्तारी के बाद उसे गिरफ्तारी के आधार के बारे में यथाशीघ्र सूचित नहीं किया जाता है तो यह अनुच्छेद 21 के तहत गारंटीकृत उसके मौलिक अधिकार का उल्लंघन होगा। किसी दिए गए मामले में यदि किसी व्यक्ति को गिरफ्तार करते समय या गिरफ्तार करने के बाद अनुच्छेद 22 के आदेश का पालन नहीं किया जाता है तो यह अनुच्छेद 21 के तहत गारंटीकृत स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार का भी उल्लंघन होगा और गिरफ्तारी अवैध हो जाएगी। गिरफ्तारी के बाद यथाशीघ्र गिरफ्तारी के आधार के बारे में सूचित करने की आवश्यकता का पालन न करने पर गिरफ्तारी अमान्य हो जाती है। एक बार गिरफ्तारी अमान्य हो जाने के बाद गिरफ्तार व्यक्ति एक सेकंड के लिए भी हिरासत में नहीं रह सकता है।”


प्रभाव और निहितार्थ

  • पुलिस को दिशा निर्देश: अब पुलिस को वारंट के मामलों में अलग से कारण बताने की आवश्यकता नहीं होगी, बशर्ते वारंट को विधिपूर्वक पढ़कर सुनाया जाए।
  • अधिकारों की रक्षा: वहीं, गैर-वारंट गिरफ्तारी के मामलों में आरोपी को सूचना देना अब भी अनिवार्य और संवैधानिक कर्तव्य बना रहेगा।
  • विधिक स्पष्टता: यह निर्णय निचली अदालतों और पुलिस अधिकारियों को संवैधानिक अनुपालन की स्पष्ट दिशा प्रदान करता है।

निष्कर्ष

सुप्रीम कोर्ट का यह निर्णय गिरफ्तारी के वैधानिक और संवैधानिक संतुलन की व्याख्या करता है और यह स्पष्ट करता है कि न्यायिक वारंट गिरफ्तारी के लिए पर्याप्त और वैध आधार होता है। यह फैसला नागरिक स्वतंत्रता और राज्य की जांच शक्ति के बीच संतुलन स्थापित करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम माना जा रहा है।

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केस का शीर्षक: कासीरेड्डी उपेंदर रेड्डी बनाम आंध्र प्रदेश राज्य और अन्य।

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