सुप्रीम कोर्ट में जजों की पीठ ने कहा कि कानून में सुधार एक आवश्यकता, याचिका को विधि आयोग के पास दिया भेज-

Estimated read time 1 min read

सुप्रीम कोर्ट में जजों की पीठ ने कहा कि कानून में सुधार एक आवश्यकता है, लेकिन समाज के भीतर से एक बदलाव जरूरी होगा कि हम एक महिला के साथ कैसा व्यवहार करते हैं, समाज उस महिला को कितना सम्मान देता है.

शादी-विवाह में दिए-लिए जाने वाले दहेज को लेकर एक लंबे समय से बहस होती आ रही है. दहेज को कुप्रथा बताया जाता है. इसके खिलाफ कड़े कानून भी बनाए गए हैं. लेकिन इन सबके बावजूद शादियों में दहेज के लेनदेन पर रोक नहीं लग पाई है. दहेज जैसी कुप्रथा पर रोक लगाए जाने के उद्देश्य से अधिकारियों को जिम्मेदार बनाने के लिए सुप्रीम कोर्ट में एक जनहित याचिका दायर की गई थी.

सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को इस याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा कि दहेज एक सामाजिक बुराई है और इसमें कोई संदेह नहीं है, लेकिन बदलाव समाज के भीतर से आना चाहिए परिवार में शामिल होने वाली महिला के साथ कैसा व्यवहार किया जाता है और लोग उसके प्रति कितना सम्मान दिखाते हैं.

क्यों विधि आयोग के पास भेज दिया मामला?

Supreme Court सुप्रीम कोर्ट ने इस मुद्दे पर याचिका को विधि आयोग Law Commission के पास भेज दिया और कहा कि संविधान के अनुच्छेद 32 Article 32 of Indian Constitution के तहत उस तरह का कोई उपाय इस न्यायालय के अधिकार क्षेत्र के बाहर है, जिसमें अनिवार्य रूप से विधायी सुधारों की आवश्यकता होती है. साबू सेबेस्टियन और अन्य की ओर से यह याचिका दायर की गई थी.

ALSO READ -  आपराधिक कार्यवाही केवल इसलिए रद्द नहीं की जा सकती क्योंकि आरोप सिविल विवाद का भी खुलासा करते हैं: इलाहाबाद HC

न्यायमूर्ति डीवाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति एएस बोपन्ना की पीठ ने जनहित याचिका का निपटारा करते हुए कहा, “इस विषय पर मौजूदा कानून के तहत किये जाने वाले उपायों पर विचार करने को लेकर बातचीत शुरू की जा सकती है. इस पृष्ठभूमि में हमारा मानना है कि यदि भारतीय विधि आयोग इस मुद्दे पर अपने सभी दृष्टिकोणों पर विचार करे, तो यह उचित होगा। याचिकाकर्ता विधि आयोग को सहयोग करने की दृष्टि से अनुसंधान और सभी प्रासंगिक पहलुओं पर एक नोट प्रस्तुत करने के लिए स्वतंत्र हैं.”

संविधान का अनुच्छेद 32 क्या है?

भारतीय संविधान के भाग 3 में अनुच्छेद 32 को उन्हीं मौलिक अधिकारों के साथ ही रखा गया है जो, समानता, अभिव्यक्ति, जीवन और निजी स्वतंत्रता के अधिकार देश के नागरिकों को उपलब्ध कराए जाते हैं. अगर इन मौलिक अधिकारों में से किसी एक का भी हनन होता है तो अनुच्छेद 32 के अंतर्गत ही सुप्रीम कोर्ट को यह अधिकार और शक्तियां प्राप्त हैं कि वह जनता के अन्य मौलिक अधिकारों की रक्षा करें. इस प्रकार यह सुप्रीम कोर्ट की एक महत्वपूर्ण शक्ति और अधिकार है.

कानून में सुधार जरूरी पर समाज में भी हो बदलाव-

सुप्रीम कोर्ट में जजों की पीठ ने कहा कि कानून में सुधार एक आवश्यकता है, लेकिन समाज के भीतर से एक बदलाव जरूरी होगा कि हम एक महिला के साथ कैसा व्यवहार करते हैं, समाज उस महिला को कितना सम्मान देता है, जो हमारे परिवार में आती है, एक महिला का सामाजिक जीवन कैसे बदलता है. यह एक संस्था के रूप में विवाह के सामाजिक बुनियादी मूल्य से संबंधित है. यह एक सामाजिक परिवर्तन के बारे में है, जिसके बारे में सुधारकों ने लिखा है और ऐसा करना जारी रखे हुए हैं.

ALSO READ -  बिशप फ्रैंको मुलक्कल 105 दिन बाद 14 बार नन के साथ बलात्कार केस में कोर्ट से बरी-

अधिकारियों को नामित नहीं कर सकती अदालत-

पीठ ने कहा कि इसमें कोई संदेह नहीं है कि दहेज एक सामाजिक बुराई है, लेकिन सूचना का अधिकार अधिनियम की तरह ही इस याचिका में दहेज-निषेध अधिकारियों को नामित करने के लिए प्रार्थना की गई है, लेकिन यह अदालत ऐसा नहीं कर सकती. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि याचिका में उठाए गए मामले विधायिका के संज्ञान में हैं और केवल वही मौजूदा कानूनों में संशोधन कर सकती है.

सुप्रीम कोर्ट ने दी सलाह-

न्यायमूर्ति बोपन्ना ने कहा कि नोटिस से कुछ भी नहीं निकलेगा और कानून आयोग सुझावों पर गौर कर सकता है और कानून को मजबूत करने के लिए सरकार को उचित सिफारिशें दे सकता है. न्यायमूर्ति बोपन्ना ने कहा “हम आपको बता रहे हैं कि बेहतर विकल्प क्या है. लोगों को इन मुद्दों के प्रति संवेदनशील बनाने के लिए जागरूकता पैदा करना महत्वपूर्ण है. नोटिस जारी होने के बाद आप अदालतों में समय बर्बाद कर रहे होंगे.” उन्होंने कहा कि विधि आयोग का सहारा कम से कम सुधारों की प्रक्रिया को गति देगा.

You May Also Like