जेल मैन्युल के अनुसार अगर बजा पचासा घंटा तो बंदियों समेत अधिकारियों में भी बढ़ जाती है दहशत, जाने क्या होता है पचासा-

जेल मैन्युल के अनुसार अगर बजा पचासा घंटा तो बंदियों समेत अधिकारियों में भी बढ़ जाती है दहशत, जाने क्या होता है पचासा-

पचासा घंटी या पगली घंटी बजने के दौरान कई चिह्नित बंदियों को एकत्रित किया जाता है-

सुबह छह बजे जेल की सभी बैरकों से कैदी ग्राउंड में इकट्ठा होना शुरू हो गए हैं। लाउड स्पीकर पर दूर-दूर तक गूंज रहा है-ऐ मालिक तेरे बंदे है हम, ऐसे हो हमारे करम, नेकी पर चलें और बदी से डरें…। हर बंदी के लिए प्रार्थना में मौजूद रहना जरूरी है। न रहने पर सजा, वह भी सबके सामने।

इसके बाद कैदी अपनी मर्जी से घूम फिर सकते हैं। आठ बजे हर बैरक के बाहर भीड़ होने लगती है। यह ड्रम में आने वाली बेस्वाद चाय का वक्त है। चाय के बर्तन लिए लंबी कतारों में कैदी खड़े होते हैं। यह चाय कम, चाय जैसा गर्म पानी ज्यादा। चाय के साथ कभी मीठा तो कभी नमकीन दलिया, कभी पोहा नाश्ते में। दोपहर बारह बजे थाली और कटोरी, गिलास लिए भोजन के इंतजार में हैं। रोटी के साथ पनियल दाल और बेजायका सब्जी। हफ्ते में एक दिन मीठा मिलना है। कभी मीठा दलिया तो कभी पीले मीठे चावल।

जेल के अंदर जिंदगी कैसी होती है,और जेल के अंदर कैदी के साथ किस प्रकार का व्यवहार किया जाता है। जेल के अंदर कौन-कौन सी सुविधाएं कैदी को मिलती है । जेल अंदर से काफी बड़ा होता है। उसमें बहुत सारी सुविधाएं होती है, और जो भी अपराध करके जेल के अंदर जाता है। उससे काम करवाया जाता है उसी के बदले उसे खाना-पीना मिलता है।

जेल राज्य सरकार के अधीन कार्य करता है। जेल की जो पुलिस होती है। वह नागरिक पुलिस से अलग होती है। इसका प्रशासन पूरी तरह से राज्य सरकार के अधीन होता है। आप को जेल में पुलिस वाले कम मिलते हैं, क्योंकि अंदर के काम अधिकतर कैदी ही करते हैं।
जेल म़े बंदियों को विभिन्न प्रकार की जिम्मेदारी भी दी जाती है जो जेल संचालन में अहम भूमिका का निर्वहन करते है। जेल में बंदियों को राइटर बनाकर बंदियों पर अंकुश लगाये जाने का भी कार्य किया जाता हैं।

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एकाएक हूटर की आवाज से जेल में अंदर बंदियों के बीच खलबली मच गई। जेल में तैनात गार्ड जिस स्थिति में थे, उसी हालत में सक्रिय हुए और मोर्चा संभाल लिया। चहारदीवारी की सुरक्षा में तैनात जवान भी चौकन्ने हो गए। जेल अधीक्षक और जेलर भी भागते हुए जेल के आंगन में पहुंच जाते है। बंदी अपने-अपने वार्ड/ बैरक से बाहर निकलकर बाहर मैदान में आ जाते है। गार्ड ने सभी बंदियों को उनके बैरकों के अंदर भेजना शुरू करते है।

जेल के सम्वन्धित नागरिक पुलिस थाना प्रभारी सुरक्षा जवानों के साथ जेल गेट पहुंचते है। इसी तरह पुलिस लाइन से भी 5-10 मिनट के अंदर जवान और अधिकारी जेल गेट पहुंच जाते है । इससे पहले पुलिस और प्रशासनिक अधिकारी जेल में अंदर किसी अनहोनी को लेकर सशंकित हुए होते है।

टन टन टन टन लगातार जेल से गूंजती आवाज, इसका मतलब होता है कि जेल की पगली घंटी बज गई। एक दो नहीं जेल परिसर का यह घंटा लगातार पचास बार बजता है। बजते ही जेल के अंदर अनहोनी की आशंका का डर जेल अधिकारियों और कर्मियों के चेहरे पर छा जाता है। जेल मैन्युल के अनुसार इस घंटे को पचासा घंटा भी कहा जाता है। हर घंटे का अलग-अलग मतलब होता है। जेल की यह परंपरा कोई नई नहीं है। सौ वर्ष से भी पुरानी जेल की यह परंपरा है।

जेल परिसर के अंदर घड़ी नहीं होती है। शायद अभी तक आपको इसका अंदाजा नहीं होगा। मुख्य द्वार पर लगे घंटे की आवाज से ही उन्हें समय जानना होता है। इस विधा से अनपढ़ भी समय जान लेता है कि कितना बजा है। जितनी बार घंटा बजता है उसी हिसाब से समय का अंदाजा लगा लिया जाता है। इसी तरह बजता है पचासा, इसमें जेल का घंटा लगातार पचास बार बजता है। इसमें यह संदेश छुपा होता है कि जेल की बैरक खुल चुका है।

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इसी का हिस्सा होती है पगली घंटी। इसके बजने का मतलब होता है कि जेल के अंदर कोई अनहोनी हो गई है। इसके बजते ही सभी जेलकर्मी यह जान लेते हैं कि जेल में कुछ गड़बड़ है। पगली घंटी बजते ही अफरा-तफरी का माहौल हो जाता है। सभी कर्मचारी जेल की ओर रुख करते हैं मानों कोई अदृश्य ताकत उन्हें जेल की तरफ खींच रही है। जेलकर्मी ड्यूटी पर हों या न हों, अविलंब जेल पर पहुंचना अनिवार्य होता है।

पचासा घंटी के बजने का मतलब जेल से बाहर जमानत पर निकले एक कैदी ने जेल की इस घंटी के बारे में जानकारी दी। बताया कि नियम है कि पचासा सुबह और शाम दो बार बजाया जाए। शाम के पचासा का मतलब होता है कि जेल की बैरक बंद हो चुकी हैं। पहले जेल अधीक्षक के आगमन पर भी पचासा बजाया जाता था। इससे बंदी जान लेते थे कि जेल अधीक्षक का आगमन हो चुका है। इसी तरह शाम को तिकड़ी घंटी का भी प्रावधान है तिकड़ी का मतलब होता है एक साथ तीन बार घंटे का बजना। इसका तात्पर्य यह कि जेल बंदी भोजन कर अपनी-अपनी बैरकों में हैं, जेल सकुशल है।

जेल मैन्युल का नहीं होता पालन-

जेल मैन्युल के अनुसार अंदर पचासा घंटी बजाना ही नियम है। हत्या के मामले में जमानत पर बाहर आए एक सूत्र ने बताया कि जेल में इन मैन्युअलों का पालन नहीं होता। नियम है कि जेल की सभी गतिविधियों का संदेश घंटा बजाकर ही देना होता है। लेकिन वर्तमान में सभी बैरकों में घड़ियां लगी हैं।

नियमतः परिसर के अंदर घड़ी, कपड़ा सूखने वाली रस्सी, कील, समेत अन्य कोई भी बाहरी सामान नहीं रखना प्रतिबंधित होता है। लेकिन लगभग सभी बैरकों में इन घड़ियों को लगाया गया है। कपड़े सूखने के लिए रस्सी भी बंधी मिलती है।

पचासा घंटी या पगली घंटी बजाने का नियम अभी भी जेल में है-

पगली घंटी बजने के दौरान कई चिह्नित बंदियों को एकत्रित किया गया। जेल प्रशासन ने इन बंदियों को कड़ी चेतावनी देते है और उन्हें बताया जाता है कि जेल में कायदा-कानून का पालन करना ही होगा। किसी के बहकावे में आकर कोई ऐसा कदम नहीं उठाएं, जिससे उन्हें परेशानी उठानी पड़े। जेल के हर बंदी बराबर हैं और सभी से एक सा व्यवहार करना होगा। अनुशासन सर्वोपरि है। जेल प्रशासन ने उन्हें चेताते है कि अगर भविष्य में वे अपने रवैए में परिवर्तन नहीं लाते तो इसका खामियाजा उन्हें भुगतना पड़ेगा।

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क्या होता है तन्हाई बैरक-

बार्निग देने के बाद भी अगर बंदी समझ गये तो ठीक वरना सभी जेलक्रमियों के साथ बाहरी पुलिस बैरकों को घेरकर उसमें प्रवेश करते हुए अंधाधुंन लाठियां बर्साने लगते है तथा कैदी चोटईल होकर गिरने लगते है और फिर गंभीर रुप से जख्मी और कुछ कुख्यातों को बैरकों से बाहर निकालकर उन्हें अलग से अलग अलग अकेले बैरकों में बंद किया जाता हैं, जिसे तन्हाई बैरक कहा जाता है। जिससे बंदियों में दहशत व्याप्त हो जाता है और इसी डर और लाचारी के कारण कोई भी बंदी जेल की शिकायत किसी भी उच्च अधिकारियों अथवा न्यायालय में पेशी के दौरान न्यायिक अधिकारियों से नहीं करते हैं।

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