दिवालियापन प्रक्रिया शुरू होने के बाद एनआई अधिनियम की धारा 138 के तहत कार्रवाई का कारण उत्पन्न हुआ: सुप्रीम कोर्ट ने कंपनी के पूर्व निदेशक के खिलाफ समन आदेश किया रद्द
⚖️ सुप्रीम कोर्ट ने कंपनी के एक पूर्व निदेशक के खिलाफ जारी समन आदेश को रद्द कर दिया, यह देखते हुए कि परक्राम्य लिखत अधिनियम, 1881 (NI Act) की धारा 138 के तहत कारण तब उत्पन्न हुआ जब दिवाला प्रक्रिया शुरू हो चुकी थी और अंतरिम समाधान पेशेवर (IRP) की नियुक्ति के साथ ही निदेशक का पद निलंबित हो गया था।
खंडपीठ, जिसमें न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया और न्यायमूर्ति अहसानुद्दीन अमानुल्लाह शामिल थे, ने पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय के एकल न्यायाधीश के आदेश को चुनौती देने वाली अपीलकर्ता की याचिका को स्वीकार कर लिया। उच्च न्यायालय ने दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 (CrPC) की धारा 482 के तहत अपीलकर्ता द्वारा दाखिल याचिका को खारिज कर दिया था, जिसमें NI Act की धारा 138 के तहत शुरू की गई कार्यवाही को रद्द करने की मांग की गई थी।
खंडपीठ ने P. Mohan Raj बनाम M/S Shah Brothers Ispat Pvt. Ltd. (2021) के फैसले का संदर्भ दिया, जिसमें कहा गया था कि IBC की धारा 14 के तहत मोरेटोरियम आदेश से केवल कॉर्पोरेट देनदार (Corporate Debtor) को संरक्षण मिलता है, प्राकृतिक व्यक्ति को नहीं। हालांकि, पीठ ने स्पष्ट किया कि वर्तमान मामला अलग है क्योंकि इसमें कारण (Cause of Action) दिवाला प्रक्रिया शुरू होने के बाद उत्पन्न हुआ।
📌 मामला संक्षेप में
- अपीलकर्ता विश्नू मित्तल M/s Xalta Food and Beverages Private Limited के निदेशक थे।
- उत्तरदाता शक्ति ट्रेडिंग कंपनी और कॉर्पोरेट देनदार के बीच एक व्यावसायिक अनुबंध था, जिसके तहत अपीलकर्ता ने निदेशक के रूप में 11 चेक जारी किए, जिनकी कुल राशि ₹11 लाख से अधिक थी।
- ये सभी चेक बैंक द्वारा अस्वीकृत (Dishonoured) कर दिए गए, जिसके बाद उत्तरदाता ने NI Act की धारा 138 के तहत अपीलकर्ता को कानूनी नोटिस भेजा।
- सितंबर 2018 में उत्तरदाता ने अपीलकर्ता के खिलाफ मुकदमा दर्ज कराया।
- इस बीच, कॉर्पोरेट देनदार के खिलाफ IBC, 2016 की धारा 14 के तहत दिवाला कार्यवाही शुरू हो गई और मोरेटोरियम लागू हो गया।
- कोर्ट ने अपीलकर्ता के खिलाफ समन जारी कर दिया, जिससे असंतुष्ट होकर उसने उच्च न्यायालय में याचिका दायर की, लेकिन उच्च न्यायालय ने याचिका खारिज कर दी।
📌 सुप्रीम कोर्ट की व्याख्या
- NI Act की धारा 138 के तहत अपराध तभी बनता है जब –
✅ चेक बाउंस हो जाए और
✅ नोटिस मिलने के 15 दिनों के भीतर भुगतान न किया जाए। - न्यायालय ने कहा कि जब अपीलकर्ता को नोटिस जारी किया गया था, तब वह निदेशक के पद पर नहीं था क्योंकि जैसे ही IRP नियुक्त हुआ, निदेशक का पद निलंबित हो गया और बोर्ड ऑफ डायरेक्टर्स के सभी अधिकार IRP को हस्तांतरित हो गए।
- IBC की धारा 17 के तहत, कंपनी के सभी बैंक खाते IRP के नियंत्रण में थे, इसलिए अपीलकर्ता द्वारा भुगतान किया जाना संभव ही नहीं था।
- IRP ने सभी लेनदारों के दावों को आमंत्रित किया था और उत्तरदाता (शक्ति ट्रेडिंग कंपनी) ने IRP के समक्ष अपना दावा पेश भी किया था।
- न्यायालय ने माना कि उच्च न्यायालय को CrPC की धारा 482 के तहत मामले को रद्द कर देना चाहिए था।
🔖 अंतिम आदेश
✅ सुप्रीम कोर्ट ने उच्च न्यायालय का आदेश रद्द किया।
✅ समन आदेश (Summoning Order) को रद्द कर दिया गया।
✅ चंडीगढ़ के मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट न्यायालय में लंबित शिकायत संख्या 15580/2018 को निरस्त कर दिया गया।
⚖️ पक्षकारों की ओर से अधिवक्ता
- अपीलकर्ता की ओर से: अधिवक्ता अभिषेक आनंद
- प्रतिवादी की ओर से: एओआर त्रिलोकी नाथ रज़दान
📌 निष्कर्ष
यह निर्णय IBC की धारा 14 और NI Act की धारा 138 के बीच के संबंधों को स्पष्ट करता है और यह स्थापित करता है कि यदि मोरेटोरियम लागू होने के बाद चेक बाउंस होता है, तो कंपनी के निलंबित निदेशक को इसके लिए व्यक्तिगत रूप से उत्तरदायी नहीं ठहराया जा सकता।
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