सुप्रीम कोर्ट का निर्णय: आजीवन कारावास निलंबन के लिए ठोस आधार आवश्यक
आजीवन कारावास की सज़ा के निलंबन के लिए बरी होने की संभावना के बारे में प्रथम दृष्टया निष्कर्ष आवश्यक: सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने निर्णय दिया है कि आजीवन कारावास की सजा के निलंबन के लिए यह देखा जाना आवश्यक है कि क्या ऐसा कोई ठोस आधार मौजूद है, जिसके आधार पर न्यायालय प्रारंभिक रूप से इस निष्कर्ष पर पहुंच सके कि दोषी के बरी होने की पूरी संभावनाएँ हैं।
न्यायमूर्ति जे.बी. पारदीवाला और न्यायमूर्ति आर. महादेवन की पीठ ने स्पष्ट किया कि यदि सजा एक निश्चित अवधि के लिए हो और उसे निलंबित करने से इनकार करने के लिए कोई अन्य असाधारण परिस्थिति न हो, तो सामान्य रूप से इस प्रकार के अनुरोध को उदारतापूर्वक स्वीकार किया जाना चाहिए।
पीठ ने कहा,
“बार-बार इस न्यायालय ने यह कहा है कि यदि सजा एक निश्चित अवधि के लिए है और उसे निलंबित करने से इनकार करने के लिए कोई अन्य असाधारण परिस्थिति नहीं है, तो इस प्रकार की याचिका को उदारतापूर्वक स्वीकार किया जाना चाहिए। हालांकि, यदि सजा आजीवन कारावास की है, तो सजा के निलंबन के लिए यह देखना आवश्यक है कि क्या ऐसा कोई स्पष्ट और ठोस आधार है, जिसके आधार पर अपीलीय न्यायालय प्रारंभिक रूप से यह निष्कर्ष निकाल सके कि दोषी के बरी होने की पूरी संभावनाएँ हैं।”
पीठ ने आगे कहा,
“जहाँ तक इस मामले की बात है, उच्च न्यायालय ने सजा के निलंबन से इनकार कर दिया है। समस्या यह है कि यह मामला इलाहाबाद का है। याचिकाकर्ता (दोषी) की आपराधिक अपील वर्ष 2023 की है। हमें यह जानकर आश्चर्य होता है कि इस अपील पर सुनवाई कब शुरू होगी।”
मामले की पृष्ठभूमि
यह अपील याचिकाकर्ता द्वारा दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 की धारा 389 (जो अब भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 की धारा 430 के तहत आती है) के तहत दायर की गई थी, जिसमें उन्होंने आजीवन कारावास की सजा को निलंबित करने का अनुरोध किया था।
मामला वर्ष 2014 का है, जिसमें अंसारी पर आरोप था कि उन्होंने एक व्यक्ति पर चाकू से हमला किया, जिसके साथ उनकी पत्नी के अवैध संबंध बताए गए थे। इस घटना के दौरान उनकी पत्नी सह-आरोपी के रूप में नामित थी, लेकिन उन्हें सभी आरोपों से बरी कर दिया गया। यह गंभीर घटना जुमे की नमाज के बाद एक मस्जिद के बाहर हुई थी और इसे अंसारी के दो भाइयों ने देखा था, जिन्होंने मुकदमे के दौरान महत्वपूर्ण गवाही दी थी।
ट्रायल कोर्ट ने 2023 में अपना फैसला सुनाते हुए अंसारी को आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी। हालाँकि, अंसारी ने इस फैसले के खिलाफ अपील दायर कर रखी है, लेकिन उनकी सजा को निलंबित करने की याचिका उच्च न्यायालय द्वारा खारिज कर दी गई।
कोर्ट का विश्लेषण
कोर्ट ने कहा कि जब निर्धारित अवधि की सजा को निलंबित करने का अनुरोध किया जाता है, तो इसे आमतौर पर अधिक सहानुभूतिपूर्वक देखा जाता है। हालांकि, आजीवन कारावास के मामले में अधिक सावधानीपूर्वक मूल्यांकन आवश्यक होता है ताकि यह आकलन किया जा सके कि अपील में बरी होने की कितनी संभावना है।
याचिकाकर्ता के लगभग 10 वर्षों से जेल में रहने को ध्यान में रखते हुए, न्यायालय ने निर्देश दिया,
“राज्य को इस मुद्दे का उत्तर देना आवश्यक है। चार सप्ताह के भीतर नोटिस जारी किया जाए। अतिरिक्त रूप से दस्ती सेवा की अनुमति दी जाती है। उत्तर प्रदेश राज्य के स्थायी अधिवक्ता को नोटिस की सेवा की स्वतंत्रता प्रदान की जाती है।”
वाद शीर्षक – इब्राहिम अंसारी बनाम उत्तर प्रदेश राज्य
वाद संख्या – विशेष अनुमति याचिका (आपराधिक) डायरी संख्या 11568/2025
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