गंभीर धाराएं दर्ज होने मात्र से कार्यवाही निरस्त करने से अदालत वंचित नहीं होती: इलाहाबाद हाईकोर्ट

गंभीर धाराएं दर्ज होने मात्र से कार्यवाही निरस्त करने से अदालत वंचित नहीं होती: इलाहाबाद हाईकोर्ट

गंभीर धाराएं दर्ज होने मात्र से कार्यवाही निरस्त करने से अदालत वंचित नहीं होती: इलाहाबाद हाईकोर्ट

लखनऊ: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हाल ही में संतोष राजभर व अन्य बनाम राज्य बनाम यूपी एवं अन्य मामले में महत्वपूर्ण निर्णय देते हुए कहा कि सिर्फ गंभीर धाराओं का उल्लेख होने से ही न्यायालय को आपराधिक कार्यवाही निरस्त करने से रोका नहीं जा सकता, यदि रिकॉर्ड में उपलब्ध सामग्री उन धाराओं के अपराध को स्थापित नहीं करती।

न्यायमूर्ति आलोक माथुर की एकलपीठ ने वैवाहिक विवाद व दहेज उत्पीड़न से जुड़े एक मामले की समस्त कार्यवाही को रद्द करते हुए कहा:

“सिर्फ गंभीर अपराध की धारा दर्ज होने से कार्यवाही निरस्त करने से न्यायालय वंचित नहीं होता, यदि रिकॉर्ड पर उपलब्ध सामग्री से यह सिद्ध न हो कि उस धारा के अंतर्गत कोई गंभीर अपराध बनता है।”


मामले की पृष्ठभूमि:

याचिकाकर्ता ने आईपीसी की धारा 498ए, 323, 504, 506 तथा दहेज निषेध अधिनियम की धारा 3 और 4 के अंतर्गत चल रही आपराधिक कार्यवाही, मजिस्ट्रेट द्वारा जारी समन आदेश, और सेशन कोर्ट द्वारा पारित पुनरीक्षण आदेश को निरस्त करने की मांग की थी।

कोर्ट ने मामले को मध्यस्थता केंद्र भेजा था, जहां दोनों पक्षों ने भाग लिया और सहमति समझौता संपन्न हुआ।


दलीलें एवं न्यायालय की टिप्पणियाँ:

याचिकाकर्ता की ओर से अधिवक्ता सज्जाद हुसैन और विपक्षी की ओर से अधिवक्ता राम सिंह ने पक्ष रखा।

कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के Gian Singh बनाम पंजाब राज्य (2012) के फैसले का हवाला दिया, जिसमें यह कहा गया था कि:

“यदि अभियुक्त व पीड़ित के बीच समझौता हो गया है और अभियुक्त के दोषसिद्ध होने की संभावना अत्यंत क्षीण है, तो आपराधिक कार्यवाही को जारी रखना न्याय के विरुद्ध होगा और ऐसे मामले में हाईकोर्ट कार्यवाही निरस्त कर सकती है।”

न्यायालय ने यह भी कहा कि:

“रिकॉर्ड में उपलब्ध तथ्यों से यह स्पष्ट होता है कि न तो मानसिक विकृति के गंभीर अपराध और न ही समाज को प्रभावित करने वाले कोई अन्य जघन्य अपराध इस मामले में सिद्ध होते हैं। दोनों पक्षों ने आपसी सहमति से विवाद का समाधान कर लिया है।”


न्यायालय का निर्णय:

इन टिप्पणियों के आधार पर हाईकोर्ट ने:

  • मजिस्ट्रेट द्वारा जारी समन आदेश,
  • सत्र न्यायालय द्वारा पारित पुनरीक्षण आदेश,
  • और मुख्य रूप से, 498ए, 323, 504, 506 आईपीसी और धारा 3/4 दहेज निषेध अधिनियम के अंतर्गत चल रही समस्त कार्यवाही को निरस्त कर दिया।
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अतः याचिका को स्वीकृत कर लिया गया।


मामले का संक्षिप्त विवरण:

  • मामला: Santosh Rajbhar & Ors. v. State of U.P. & Anr.
  • तथ्य: वैवाहिक विवाद, मध्यस्थता द्वारा सुलह
  • निर्णय: कार्यवाही निरस्त
  • न्यायाधीश: माननीय न्यायमूर्ति आलोक माथुर
  • तारीख: 2025
  • न्यूट्रल साइटेशन: 2025:AHC-LKO:26885
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