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इलाहाबाद हाई कोर्ट ने सीजेएम बांदा के आचरण पर तीखी टिप्पणी करते हुए यहां तक कह दिया कि CJM भगवान दास गुप्ता जज बने रहने लायक नहीं हैं

इलाहाबाद हाई कोर्ट ने सीजेएम बांदा के आचरण पर तीखी टिप्पणी की। कोर्ट ने तो यहां तक कह दिया कि CJM भगवान दास गुप्ता जज बने रहने लायक नहीं हैं। कोर्ट ने कहा कि एक जज की तुलना अन्य प्रशासनिक पुलिस अधिकारियों से नहीं की जा सकती। हालांकि जज भी अन्य अधिकारियों की तरह लोकसेवक है किंतु ये न्यायिक अधिकारी नहीं जज हैं।

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने CJM बांदा को अपने पद पर रहते हुए निजी फायदे के आरोप पर बिजली विभाग के अफसरों पर केस दर्ज करने के मामले में तीखी प्रतिक्रिया दी है। हाईकोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि वह (CJM बांदा) जज बने रहने के लायक नही हैं।

न्यायमूर्ति राहुल चतुर्वेदी तथा न्यायमूर्ति एमएएच इदरीसी की खंडपीठ ने कहा की एक जज की तुलना अन्य प्रशासनिक पुलिस अधिकारियों से नहीं की जा सकती। हालांकि जज भी अन्य अधिकारियों की तरह लोकसेवक है, किंतु ये न्यायिक अधिकारी नहीं, जज हैं। इन्हें भारतीय संविधान से संप्रभु शक्ति का इस्तेमाल करने का अधिकार प्राप्त है। कोर्ट ने याचिका स्वीकार करते हुए यह आदेश दिया है। इन्हें भारतीय संविधान से संप्रभु शक्ति इस्तेमाल करने का अधिकार प्राप्त है।

क्या है पूरा मामला?

दरअसल, बीते दिन न्यायमूर्ति की खंड पीठ ने बिजली विभाग के अफसरों की याचिका स्वीकार करते हुए यह अहम फैसला दिया है। कोर्ट ने महत्वपूर्ण फैसले में कहा कि कोई भी जज बगैर जिला जज की सहमति और विश्वास में लिए व्यक्तिगत हैसियत से अति गम्भीर अपराधों के अलावा अन्य मामलों में मुकदमा न लिखवाए।

हाईकोर्ट ने ऐसा आदेश सभी अदालतों को भेजने के लिए महानिबंधक को भी आदेश दिया है। कोर्ट ने जजों के पद, व्यक्तित्व और गरिमा का उल्लेख करते हुए बांदा के CJM पर तीखी टिप्पणी की है।

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क्यों कराई थी FIR?

कोर्ट ऑर्डर के मुताबिक, बांदा में तैनात CJM भगवान दास गुप्ता ने लखनऊ के अलीगंज में एक मकान खरीदा था। इस मकान का लाखों रुपये का बिल बकाया था, जिस पर बिजली विभाग ने वसूली का नोटिस भेज दिया। जिस पर CJM ने मकान बेचने वाले और बिजली विभाग के अफसरों के खिलाफ कंप्लेंट केस दाखिल करने का आदेश दिया।

उन्होंने कोर्ट में सुनवाई के दौरान जांच भी कराने के आदेश पारित किया था। लेकिन जांच में आरोप गलत पाए गए तो अफसरों पर दर्ज FIR भी रद्द कर दी गई। इसपर हाईकोर्ट ने टिप्पणी करते हुए कहा कि CJM ऊपरी अदालत तक कानूनी कार्यवाही हारते रहे हैं।

आदेश के मुताबिक, बांदा शहर कोतवाली में इंस्पेक्टर को धमकाकर बिजली विभाग के अफसरों पर केस दर्ज कराया गया। आरोप यह भी था कि पिछले 14 सालों में महज 5000 रुपये मजिस्ट्रेट ने बिजली बिल जमा किया है। पूछने पर कहा कि सोलर सिस्टम से बिजली इस्तेमाल कर रहे हैं। इसके अलावा उन्होंने बिजली अफसरों पर घूस मांगने का आरोप भी लगाया था।

हाईकोर्ट ने पूर्व जस्टिस की एक किताब का उल्लेख किया और कहा कि जज जो देखते हैं वह सुन नहीं सकते, जो सुन सकते हैं वो देख नहीं सकते। उनके फैसले ऐसे हो जिसमें व्यक्तिगत पक्ष बिल्कुल भी न हो।

फिलहाल, यह केस इस समय चर्चा का विषय बना हुआ है। इसमें इलाहाबाद हाईकोर्ट ने बांदा के CJM भगवान दास गुप्ता के खिलाफ तल्ख टिप्पणी की है। हाईकोर्ट के जज ने कहा- बांदा CJM ने निजी हित के लिए पद का गलत इस्तेमाल किया। बिल भेजने पर बिजली विभाग के अफसरों पर फर्जी केस कराया। वह जज बने रहने लायक नहीं हैं।

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खंडपीठ ने कहा कि जज ने व्यक्तिगत हित के लिए पद का दुरुपयोग किया। साथ ही इस पर भी आश्चर्य प्रकट किया कि 14 वर्ष में मजिस्ट्रेट ने केवल पांच हजार रुपये ही बिजली बिल जमा किया है।

पूछने पर कहा कि सोलर पावर इस्तेमाल कर रहे हैं। बिजली विभाग के अधिकारियों पर घूस मांगने का भी आरोप लगाया। उन्होंने बकाया 2,19,063 रुपये बिजली बकाये का भुगतान नहीं किया। कोर्ट ने एसआइटी जांच कराई तो एफआइआर के अनुरूप कोई अपराध नहीं मिला। खंडपीठ ने कहा कि याचियों के खिलाफ कोई केस नहीं बनता।

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