न्यायमूर्ति समित गोपाल Hc

इलाहाबाद हाई कोर्ट ने कहा कि: जमानती अपराधों के मामलों में नहीं दी जा सकती है अग्रिम जमानत-

कोर्ट ने कहा कि याची पर गैर-जमानती अपराध करने का आरोप होना चाहिए, जो पहले से मौजूद तथ्यों से उपजा हुआ हो। याचिकाकर्ता के मन में उचित आशंका या विश्वास होना चाहिए कि उसे इस तरह के आरोप के आधार पर गिरफ्तार किया जाएगा।

इलाहाबाद उच्च न्यायलय ने फैसला सुनाया कि जमानती अपराध के मामलों में अग्रिम जमानत नहीं दी जा सकती।

न्यायमूर्ति समित गोपाल ने सर्वश्री वीके ट्रेडर्स और अन्य की ओर से दाखिल Anticipatory Bail Petition अग्रिम जमानत याचिका खारिज कर दी। कोर्ट ने कहा कि चूंकि अपराध जमानती हैं, इसलिए अग्रिम जमानत नहीं दी जा सकती।

याचिकाकर्ता ने कहा कि यह विवाद रुपए 1 करोड़ 80 लाख 86 हजार 343 का एक अस्वीकार्य ITC (इनपुट टैक्स क्रेडिट Input Tax credit) के रूप में राशि से संबंधित है। जिसे सर्वश्री वीके ट्रेडर्स को मिलना बताया गया है। अपराध केंद्रीय बोर्ड ऑफ सर्विस टैक्स, मेरठ जोन से संबंधित है और एक जमानती अपराध है। यह तर्क दिया गया कि याची नंबर एक प्रोपराइटरशिप फर्म Proprietorship Firm है। जिसका आवेदक नंबर- 2 एकमात्र मालिक है। विपक्षी वकीलों का कहना था कि सभी अपराध जमानती हैं और वर्तमान विवाद में राशि बहुत कम है। इसलिए आवेदक अग्रिम जमानत पाने का हकदार है।

याचिकाकर्ता को गिरफ्तारी का होना चाहिए उचित आशंका-

हाईकोर्ट के समक्ष विचारणीय मुद्दा यह था कि धारा 438 सीआरपीसी के तहत अग्रिम जमानत का आवेदन जमानती और असंज्ञेय अपराधों में पोषणीय है कि नहीं?

हाईकोर्ट ने कहा कि याचिकाकर्ता के मन में उचित आशंका या विश्वास होना चाहिए कि उसे इस तरह के आरोप के आधार पर गिरफ्तार किया जाएगा। कोर्ट ने कहा कि इन शर्तों का अस्तित्व अदालतों के अधिकार क्षेत्र को लागू करने के लिए एक अनिवार्य शर्त है। कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के ओंकार नाथ अग्रवाल केस का हवाला दिया।

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अदालत ने जोगिंदर उर्फ जिंदी बनाम हरियाणा राज्य और आरके कृष्ण कुमार बनाम आरके कृष्ण कुमार केसों का भी अपने आदेश में जिक्र किया। जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने माना है कि धारा 438 गैर-जमानती अपराधों से संबंधित है। इस धारा 438 के तहत जमानती अपराधों के संबंध में याचिका गलत है। हाईकोर्ट ने कहा कि धारा 438 सीआरपीसी के तहत अदालत के अपने विवेक के प्रयोग के लिए शर्त यह है कि इस तरह की राहत की मांग करने वाले व्यक्ति को गैर-जमानती अपराध करने के आरोप में अपनी गिरफ्तारी की उचित आशंका होनी चाहिए।

हाई कोर्ट ने कहा कि धारा 438 सीआरपीसी (Cr PC) के तहत एक आवेदन केवल उस व्यक्ति द्वारा बनाए रखा जा सकता है। जिसे गैर-जमानती अपराध करने के आरोप में गिरफ्तारी की आशंका है।

परिणामस्वरूप कोर्ट ने याची की अग्रिम जमानत आवेदन को खारिज कर दिया। कोर्ट ने कहा कि चूंकि अपराध जमानती हैं, इसलिए अग्रिम जमानत नहीं दी जा सकती।

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