इलाहाबाद हाई कोर्ट ने स्पष्ट किया कि आर्बिट्रेशन और सुलह अधिनियम, 1996 (Arbitration and Conciliation Act, 1996) की संशोधित धारा 36 केवल उन न्यायिक कार्यवाहियों पर लागू होगी, जो संशोधन अधिनियम (Amendment Act) के प्रभावी होने की तिथि के बाद शुरू हुई हैं।
न्यायालय का आधार
न्यायमूर्ति पीयूष अग्रवाल की एकलपीठ ने इस निर्णय को सुप्रीम कोर्ट के BCCI बनाम कोच्चि क्रिकेट प्राइवेट लिमिटेड (2018) के फैसले के आधार पर दिया, जिसमें संशोधन के Prospective (भविष्य प्रभावी) लागू होने की बात स्पष्ट की गई थी।
सुप्रीम कोर्ट ने अपने निर्णय में कहा था:
“धारा 26 की योजना स्पष्ट है कि संशोधन अधिनियम Prospective है और यह केवल उन्हीं मध्यस्थता (arbitral) कार्यवाहियों पर लागू होगा, जो धारा 21 के अनुसार, संशोधन अधिनियम के लागू होने के बाद शुरू हुई हैं, साथ ही उन न्यायिक कार्यवाहियों पर भी, जो संशोधन अधिनियम के लागू होने के बाद प्रारंभ हुई हैं।”
मामले का संक्षिप्त विवरण
- 3 मार्च 2010 को पंचाट (Arbitrator) ने याचिकाकर्ताओं को 92 लाख रुपये 8% ब्याज सहित भुगतान करने का आदेश दिया।
- याचिकाकर्ताओं ने इस आदेश को आर्बिट्रेशन अधिनियम की धारा 34 के तहत चुनौती दी, लेकिन 3 फरवरी 2021 को झांसी की वाणिज्यिक अदालत (Commercial Court) ने इसे यह कहकर खारिज कर दिया कि न्यायालय को इस फैसले में हस्तक्षेप करने का अधिकार नहीं है।
- याचिकाकर्ताओं ने इस आदेश के खिलाफ अपील दायर की, जो अभी भी लंबित थी।
क्रियान्वयन (Execution) प्रक्रिया और आपत्ति
- प्रतिवादी (Respondent) ने धारा 36 के तहत वाणिज्यिक न्यायालय में निर्णय को लागू करने (Execution Case) के लिए याचिका दायर की, जिसे 2 जनवरी 2023 को खारिज कर दिया गया।
- बाद में एक दूसरी Execution Case दायर की गई, जिस पर याचिकाकर्ताओं ने समयसीमा समाप्त होने (Limitation) की आपत्ति उठाई।
- 21 सितंबर 2024 को न्यायालय ने याचिकाकर्ताओं की यह आपत्ति खारिज कर दी, जिसके विरुद्ध उन्होंने हाई कोर्ट में याचिका दायर की।
हाई कोर्ट का विश्लेषण
- इलाहाबाद हाई कोर्ट ने BCCI केस में दिए गए सुप्रीम कोर्ट के निर्णय का संदर्भ देते हुए कहा कि संशोधित धारा 36 केवल उन्हीं न्यायिक एवं मध्यस्थता कार्यवाहियों पर लागू होगी, जो संशोधन अधिनियम के लागू होने के बाद शुरू हुई हैं।
- सुप्रीम कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया था कि संशोधन से पहले, धारा 36 ने डिक्रीधारक (Decree Holder) की अधिकारिता को सीमित किया था, जब तक कि कुछ शर्तें पूरी न हो जाएं, लेकिन यह निर्णय देनदार (Judgment Debtor) को स्वतः ही निष्पादन पर रोक लगाने का अधिकार नहीं देता था।
- संशोधित धारा 36 केवल तब लागू होगी जब आर्बिट्रेशन या न्यायिक कार्यवाही संशोधन अधिनियम के लागू होने के बाद प्रारंभ हुई हो।
- कोर्ट ने यह भी कहा कि यदि किसी विधायी संशोधन का पूर्वव्यापी (Retrospective) प्रभाव देना हो, तो यह स्पष्ट रूप से विधेयक में उल्लेखित होना चाहिए।
न्यायालय का अंतिम आदेश
- हाई कोर्ट ने संशोधित धारा 36 के Prospective प्रभाव को स्वीकार करते हुए याचिकाकर्ताओं की आपत्ति को अस्वीकार कर दिया।
- वाणिज्यिक न्यायालय के आदेश को बरकरार रखा गया और Execution Case को आगे बढ़ाने की अनुमति दी गई।
- याचिका खारिज कर दी गई और निर्णय को लागू करने की प्रक्रिया जारी रहेगी।
वाद शीर्षक – यू.पी. जल निगम (अर्बन) एवं अन्य बनाम एसपीएमएल इंफ्रा लिमिटेड
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