शीर्ष कोर्ट की गाइडलाइन-
- निर्माण के बाद भी उल्लंघन के मामले में त्वरित सुधारात्मक कार्यवाही की जानी चाहिए, जिसमें अवैध हिस्से को ध्वस्त करना और दोषी अधिकारियों पर जुर्माना लगाना शामिल है।
- यदि कोई अवैध निर्माण अदालतों के संज्ञान में लाया जाता है तो उसे कठोरता से रोका जाएगा।
- बिल्डर या डेवलपर या मालिक को निर्माण स्थल पर इसकी पूरी अवधि के दौरान स्वीकृत योजना की एक प्रति प्रदर्शित करनी चाहिए और संबंधित अधिकारियों को समय-समय पर परिसर का निरीक्षण करना चाहिए तथा ऐसे निरीक्षण का रिकार्ड रखना चाहिए।
- भवन निरीक्षण के पश्चात तथा यह संतुष्ट होने पर कि निर्माण नियमानुसार किया गया है, संबंधित प्राधिकरण द्वारा बिना किसी अनावश्यक विलंब के पूर्णता प्रमाण-पत्र जारी किए जाएं। कोई बिल्डर अपील करता है तो उसके निपटारे में 90 दिनों से अधिक समय नहीं लगना चाहिए।
- इस फैसले की प्रति सभी राज्यों के मुख्य सचिवों को भेजी जाए जोकि स्थानीय निकायों के लिए सर्कुलर जारी करेंगे।
- फैसला सभी उच्च न्यायालयों को भी भेजा जाए ताकि हाई कोर्ट अवैध निर्माण के मामलों में सुनवाई के समय इसका हवाला कहा कि किसी भी से सख्ती से निपटा इसमें किसी भी दे सकें।
उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) के मेरठ की सेंट्रल मार्केट में अवैध निर्माण मामले पर सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाया है। आवासीय क्षेत्र के भू उपयोग नियमों में बदलाव करके किए गए निर्माण को अवैध करार देते हुए सुप्रीम कोर्ट ने उसे ढहाने का फैसला सुना दिया है। यानी अदालत ने डेढ़ हजार दुकानों और व्यावसायिक स्थलों को अवैध घोषित कर बुलडोजर चलाने का रास्ता साफ कर दिया है।
जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस आर महादेवन की बेंच के इस फैसले के बाद मेरठ के शास्त्री नगर सेंट्रल मार्केट में बनी डेढ़ हजार से ज्यादा दुकानों के मालिकों में हड़कंप मचा हुआ है। कोर्ट ने अवैध निर्माण ढहने के इलाहाबाद हाई कोर्ट के निर्णय को सही पाया।
इस फैसले से मेरठ के शास्त्रीनगर स्थित सेंट्रल मार्केट के व्यापारियों को सुप्रीम कोर्ट से जोरदार झटका लगा है। सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस आर महादेवन की बेंच ने अपने फैसले के जरिए शास्त्री नगर विकास योजना के तहत आवासीय क्षेत्र में भू-उपयोग परिवर्तन कर किए गए सभी निर्माण को अवैध बताया है। उन्हें ध्वस्त करने का आदेश भी दिया है।
लापरवाही पर होगी कार्रवाई-
कोर्ट ने ऐसे अवैध रूप से बनाए गए भवनों के मालिकों को परिसर खाली करने के लिए तीन महीने का वक्त दिया है। इसके 2 हफ्ते बाद आवास एवं विकास परिषद को अवैध निर्माणों को ध्वस्त करना होगा। इस कार्य में सभी प्राधिकारी सहयोग करेंगे। अगर इसमें कोई अधिकारी लापरवाही करता है, तो उनके खिलाफ कोर्ट की अवमानना के तहत कार्यवाही की जाएगी।
कोर्ट ने इसके साथ ही आवास एवं विकास के उन सभी जिम्मेदार अधिकारियों के खिलाफ भी आपराधिक एवं विभागीय कार्रवाई के आदेश दिए हैं, जिनके कार्यकाल में ये सब कुछ घपला घोटाला होता रहा।
इलाहाबाद हाई कोर्ट का फैसला बरकरार
सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाई कोर्ट के दस साल पहले 2014 में दिए उस आदेश को बहाल रखा है, जिसमें भूखंड 661/6 के अवैध निर्माण के ध्वस्तीकरण आदेश की पुष्टि की है। इसके साथ ही आवासीय क्षेत्र में हुए व्यावसायिक निर्माण को ध्वस्त करने के आदेश दिए गए हैं।
सुप्रीम कोर्ट ने 19 नवंबर को सुनवाई पूरी कर फैसला सुरक्षित रख लिया था। बेंच ने मेरठ में शास्त्री नगर सेंट्रल मार्केट के 499 भूखंडों के भू-उपयोग की स्टेटस रिपोर्ट आवास एवं विकास परिषद से मांगी थी। इसके बाद परिषद ने शास्त्रीनगर स्कीम-7 और स्कीम-3 में सर्वे करके कुल 1478 आवासीय भूखंडों की रिपोर्ट दी थी। उसमें लिखा था कि आवासीय भूखंडों का भू-उपयोग परिवर्तन कर व्यावसायिक गतिविधि चल रही है।
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