जिला मजिस्ट्रेट और अतिरिक्त सचिव (अपील) द्वारा पारित आक्षेपित आदेशों को रद्द कर जिलाधिकारी को शस्त्र लिएसेन्स निर्गत करने का निर्देश दिया–
गुजरात उच्च न्यायालय Gujarat high Court ने जिला मजिस्ट्रेट द्वारा पारित आदेशों को चुनौती देने वाली एक रिट याचिका की अनुमति दी जिसमें याचिकाकर्ता की हथियार लाइसेंस के लिए याचिका खारिज कर दी गई थी।
न्यायमूर्ति ए एस सुपेहिया की एकल पीठ ने पाया कि याचिकाकर्ता को शस्त्र अधिनियम, 1959 की धारा 14 के तहत उल्लिखित आधारों पर हथियार लाइसेंस के लिए अयोग्य नहीं पाया गया था। याचिकाकर्ता ने इस प्रावधान के तहत आत्मरक्षा के लिए हथियार लाइसेंस के लिए आवेदन शस्त्र अधिनियम के अंतरगर्त सभी आवश्यक दस्तावेजों के साथ किया था।
याचिकाकर्ता ने बताया की उसके खिलाफ कुछ भी प्रतिकूल नहीं पाए जाने के बावजूद याचिकाकर्ता के आवेदन को खारिज कर दिया गया था। उसके द्वारा इसके फैसले के खिलाफ अपील दायर की गई थी लेकिन अपीलीय अधिकारी ने भी अपील खारिज कर दी थी।
याचिकाकर्ता की ओर से पेश अधिवक्ता रुतविज एस ओझा ने कहा कि दोनों अधिकारी मामले के सही तथ्यों की विवेचन करने में विफल रहे। उन्होंने आगे कहा कि याचिकाकर्ता के पक्ष में रिपोर्ट जारी होने के बावजूद लाइसेंस के लिए आवेदन पत्र को खारिज कर दिया गया।
याची के अधिवक्ता द्वारा यह भी बताया गया कि याचिकाकर्ता को शस्त्र की जरूरत है क्योंकि वह खनन व्यवसाय करता है और कॉन्ट्रैक्टर व्यवसाय भी कर रहा है, जिसके लिए नकदी के साथ बहुत अधिक यात्रा की आवश्यकता होती है। इसके जवाब में, प्रतिवादी-राज्य की ओर से पेश अधिवक्ता साहिल त्रिवेदी ने बताया कि आक्षेपित आदेशों में हस्तक्षेप करने की आवश्यकता नहीं है और यह नहीं कहा जा सकता है कि याचिकाकर्ता को शस्त्र लाइसेंस की वास्तविक आवश्यकता थी या नहीं अथवा उसे कोई धमकी आदि तो नहीं दिया।
कोर्ट ने पाया कि जिला पुलिस अधीक्षक द्वारा प्रस्तुत रिपोर्ट में याचिकाकर्ता के खिलाफ कोई प्रतिकूल तथ्य नहीं पाई गई। कोर्ट ने यह भी कहा कि जिला मजिस्ट्रेट ने देवभूमि में कानून व्यवस्था की स्थिति को देखते हुए हथियार लाइसेंस के लिए आवेदन को खारिज कर दिया।
कोर्ट ने यह भी नोट किया कि जिला मजिस्ट्रेट ने हथियार लाइसेंस के लिए आवेदन को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि देवभूमि द्वारका में कानून और व्यवस्था की स्थिति संतोषजनक थी और कहा कि याचिकाकर्ता किसी भी एटीएम या कोर बैंकिंग और सभी व्यावसायिक लेनदेन के माध्यम से अपनी व्यावसायिक गतिविधियों को अंजाम दे सकता है। उसके द्वारा चेक के माध्यम से भी व्यवसाय किया जा सकता है यदि इस तरह के लेनदेन में 5,000/- रुपये से अधिक की राशि शामिल है।
आगे यह भी कहा कि उसके द्वारा दिखाने के लिए कुछ भी नहीं है कि याचिकाकर्ता से कोई व्यक्तिगत दुश्मनी थी और उसके सामान की चोरी के संबंध में कोई पिछली घटना नहीं थी।
कोर्ट ने आर्म्स एक्ट की धारा 14 के प्रावधान का जिक्र करते हुए कहा, “जिला मजिस्ट्रेट ने याचिकाकर्ता के आवेदन को खारिज करते हुए याचिकाकर्ता की अपील पर विचार करते हुए प्रावधानों के अंतरगर्त आदेश पारित किया है। शस्त्र अधिनियम की धारा 14 के तहत, जो लाइसेंस से इनकार करने से संबंधित है।”
अदालत ने कहा, “आधार, जैसा कि आक्षेपित आदेशों में उल्लेख किया गया है, किसी भी तरह से यह नहीं दर्शाता है कि याचिकाकर्ता हथियार लाइसेंस के लिए हकदार नहीं है और उसे शस्त्र अधिनियम के तहत लाइसेंस के लिए अयोग्य माना जाता है।”
तदनुसार, रिट याचिका स्वीकार की जाती है और जिला मजिस्ट्रेट और अतिरिक्त सचिव (अपील) द्वारा पारित आक्षेपित आदेशों को रद्द कर जिलाधिकारी को शस्त्र लिएसेन्स निर्गत करने का निर्देश दिया जाता है।
केस टाइटल – DEVSHIBHAI RAYDEBHAI GADHER Versus STATE OF GUJARAT
केस नंबर – R/SPECIAL CIVIL APPLICATION NO. 13499 of 2021
कोरम – JUSTICE A.S. SUPEHIA