एल्गार परिषद माओवादी से जुड़े ज्योति जगताप को सुप्रीम कोर्ट से बड़ा झटका, जमानत याचिका पर सुनवाई को दिया टाल

पुणे के एल्गार परिषद भीमा कोरेगांव हिंसा के मामले की आरोपियों में से एक कथित एक्टिविस्ट और अर्बन नक्सल ज्योति जगताप को बड़ा झटका दिया है। कोर्ट ने आरोपी ज्योति जगताप की जमानत याचिका पर सुनवाई को टाल दिया है।……

एल्गार परिषद माओवादी ज्योति जगताप को एक बार फिर सुप्रीम कोर्ट से झटका लगा है। सुप्रीम कोर्ट ने एल्गार परिषद माओवादी से जुड़े मामले में जेल में बंद कार्यकर्ता ज्योति को अंतरिम जमानत देने से इनकार कर दिया। न्यायमूर्ति एम एम सुंदरेश और न्यायमूर्ति अरविंद कुमार की पीठ ने जगताप की मुख्य जमानत याचिका पर भी सुनवाई टाल दी।

न्यायमूर्ति सुंदरेश ने कहा, ‘हम अंतरिम जमानत देने के इच्छुक नहीं हैं।’ जगताप ने उन्हें जमानत देने से इनकार करने के हाईकोर्ट के 17 अक्तूबर 2022 के आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है। हाईकोर्ट ने कहा था कि जगताप के खिलाफ राष्ट्रीय अन्वेषण अभिकरण (NIA) का मामला प्रथम दृष्टया सही है और वह प्रतिबंधित भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी) द्वारा रची गई साजिश का हिस्सा थी।

हाईकोर्ट ने कहा था कि जगताप उस कबीर कला मंच (केकेएम) समूह की सक्रिय सदस्य थीं, जिसने 31 दिसंबर, 2017 को पुणे शहर में एल्गार परिषद सम्मेलन में अपने नाटक के दौरान न केवल आक्रामक, बल्कि अत्यधिक भड़काऊ नारे लगाए। सम्मेलन में केकेएम के अन्य सदस्यों के साथ भड़काऊ नारे लगाने की आरोपी जगताप को सितंबर 2020 में गिरफ्तार किया गया था और तब से वह मुंबई के भायखला महिला कारागार में हैं।

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जांचकर्ताओं के अनुसार, सम्मेलन में दिए भड़काऊ भाषणों के कारण एक जनवरी 2018 को पुणे के बाहरी इलाके में कोरेगांव-भीमा में हिंसा भड़की। जगताप पर गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) कानून के तहत मुकदमा दर्ज है।

बॉम्बे हाई कोर्ट खारिज कर चुका है जमानत याचिका

गौरतलब है कि भीमा कोरेगांव में मामले की आरोपी एक्टिविस्ट के भेष में छुपी अर्बन नक्सल ने जमानत के लिए बॉम्बे हाई कोर्ट में याचिका दायर की थी, लेकिन कोर्ट ने उसकी याचिका को खारिज कर दिया था। इसके बाद ज्योति जगताप ने सुप्रीम कोर्ट में इसे चुनौती दी थी। ज्योति जगताप प्रतिबंधित वामपंथी संगठन सीपीआई और 2018 में हुई भीमा कोरेगांव हिंसा के मामले में गिरफ्तार किए जाने के बाद से 2020 से जेल में बंद हैं।

क्या है पूरा मामला

गौरतलब है कि महाराष्ट्र के पुणे में 31 दिसंबर 2017 को पुणे में आयोजित एल्गार परिषद कार्यक्रम का आयोजन वामपंथियों और अर्बन नक्सलियों द्वारा किया गया। इनका उद्येश्य दलितों और अन्य समुदायों की भावनाओं को भड़काने और भीमा कोरेगांव सहित महाराष्ट्र में कई जगहों पर हिंसा करना था। साथ ही इनकी कोशिश भारत सरकार के खिलाफ युद्ध छेड़ना था। इस मामले में राष्ट्रीय जांच एजेंसी (NIA) ने 24 अगस्त 2021 को एक मसौदा पेश किया था। इसमें 15 आरोपियों के नाम थे। सभी आरोपी ‘वार्षिक तौर पर एम-4 (परिष्कृत हथियार) की सप्लाई’ के लिए 8 करोड़ रुपये जुटाने की भी साजिश रची थी और आतंकी गतिविधियों को अंजाम देने के लिए देश भर के विश्वविद्यालयों से छात्रों को अपने साथ जोड़ा था।

इन पर लगे थे आरोप

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हालांकि, आरोपियों पर जहां 16 सामान्य धाराओं के तहत मामले दर्ज किए गए थे, वहीं उन पर अन्य धाराओं के तहत अलग-अलग आरोप भी लगाए गए थे। जैसे एकडेमिशियन आनंद तेलतुम्बडे पर सबूत नष्ट करने से संबंधित एक धारा के तहत आरोप लगाया गया थे। एनआईए ने जिन अन्य लोगों के खिलाफ आरोप लगाए थे; उनमें सुधीर धवले, रोना विल्सन, सुरेंद्र गॉडलिंग, शोमा सेन, महेश राऊत, पी. वरवरा राव, वर्नोन गोंजाल्वेज, अरुण फेरिरा, सुधा भारद्वाज, गौतम नवलखा, हैनी बाबू, रमेश गायचोर, ज्योति जगताप और सुरेंद्र गोरखे भी शामिल हैं। मसौदे में फादर स्टैन स्वामी का भी जिक्र है, हालांकि पिछले महीने मौत के बाद उनके खिलाफ मामला रोक दिया गया है। इसके अलावा मामले में अन्य लोगों का जिक्र है, जिन्हें फरार करार दिया गया है।

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