वर्तमान प्रकरण में, बॉम्बे हाईकोर्ट के न्यायमूर्ति एस.एम.मोदक ने इस मुद्दे पर अपनी राय दी कि क्या एक हिंदू पुनर्विवाहित विधवा मृत पति की संपत्ति में अपने हिस्से का दावा कर सकती है?
केस के तथ्य-
मृतक भारतीय रेलवे में प्वॉइंटमैन के पद पर कार्यरत था। उसकी शादी प्रतिवादी से हुई थी। मृतक की मृत्यु 19 अप्रैल, 1991 को हुई थी। मृतक का अपने प्रतिवादी (पत्नी) के साथ विवाद है और प्रतिवादी मृतक से दूर रह रहा था। मृतक की मौत के बाद प्रतिवादी ने दूसरी शादी कर ली।
वादी (मृतक की मां) ने भारतीय रेलवे से बकाया का दावा किया और प्रतिवादी के पुनर्विवाह की भी सूचना दी। चूंकि वादी को नियोक्ता का पक्ष नहीं मिला, इसलिए उसने दीवानी वाद दायर किया। निचली अदालत ने वादी के पक्ष में वाद का फैसला सुनाया। अपील पर, प्रथम अपीलीय न्यायालय ने प्रतिवादी के हिस्से को मान्यता दी और भारतीय रेलवे को वादी (मां) और प्रतिवादी (पत्नी) को राशि वितरित करने का निर्देश दिया।
वादी की प्रस्तुति-
वादी ने प्रस्तुत किया है कि पुनर्विवाह के बाद, प्रतिवादी मृतक की संपत्ति में अपने सभी अधिकार खो देता है।
प्रतिवादी का तर्क-
प्रतिवादी ने तर्क दिया है कि हिंदू विधवा का पुनर्विवाह अधिनियम, 1856 वर्ष 1983 में निरस्त कर दिया गया था और यहां तक कि धारा 24 को हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम, 1956 से प्रभावी रूप से हटा दिया गया है।
मा न्यायालय के तर्क और निर्णय-
बॉम्बे उच्च न्यायालय ने कहा कि यदि उत्तराधिकार खुलने पर विधवा ने पुनर्विवाह नहीं किया है, तो 1956 के अधिनियम की धारा 24 के तहत अयोग्यता लागू नहीं होगी। बेशक, प्रतिवादी ने मई, 1991 (अर्थात 19 अप्रैल, 1991 को उत्तराधिकार के उद्घाटन के बाद) में पुनर्विवाह किया। अत: वादी का यह तर्क कि प्रतिवादी को अपात्र घोषित किया जा सकता है, स्वीकार नहीं किया जा सकता। वादी और प्रतिवादी वर्ग 1 के वारिस होने के कारण मृतक की संपत्ति में समान हिस्सा पाने के हकदार हैं।
जैसा कि 1956 के अधिनियम की धारा 10 के तहत विचार किया गया था, विधवा (नियम 1) और निर्वसीयत की मां (नियम 2) एक-एक हिस्सा लेती हैं। तो दोनों मृतक की संपत्ति से 50% पाने के हकदार हैं।
अपील का निपटारा किया जाता है।
CASE – Smt. Jaiwantabai w/o Shenuji Wankhade Vs Sunanda w/o Ganesh Dode others
Case No.- SECOND APPEAL NO.144 OF 2007
IN THE HIGH COURT OF JUDICATURE AT BOMBAY NAGPUR BENCH : NAGPUR
CORAM : S.M. MODAK, J.